दिल्ली चुनाव में किसे मिल रहा है फ्रीबीज का असल फायदा? ये सब बड़ा सवाल हो गया है, चूंकि अब सारी की सारी पार्टियां मुफ्त रेवड़ियों के आसरे ही चुनाव लड़ रहीं हैं l विकास, सुशासन जैसे मुद्दे अब गौण हो चले हैं l दरअसल मुफ़्त रेवड़ी अब चुनाव जीतने की गारंटी बन गईं हैं l यही कारण है कि अब सारी की सारी पार्टियां चुनाव जीतने के लिए मुफ़्त रेवड़ियों बांटने के लिए वायदों की बौछार कर रही हैं l एक समय रेवड़ी बांटने वाली पार्टियों को प्रधानमंत्री मोदी ने आड़े हाथों लिया था, लेकिन आज पीएम मोदी खुद रेवड़ी बांटने एवं रेवड़ी के वायदे करने वालों में टॉप पर हैं l दूसरी तरफ़ फ्रीबीज पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा था l पिछले एक साल में केंद्र सरकार यह नहीं बता पाई है कि असल में फ्रीबीज है क्या? इधर दिल्ली में मुफ्त वादों की झड़ी लग गई है l वादे करने में सभी पार्टियां आगे चल रही है l फ्रीबीज यानी राजनीतिक फायदे के लिए चुनाव से पहले मुफ्त की योजनाएं (रेवड़ी) मुहैया कराने की कोई कानूनी परिभाषा अभी नहीं है l शायद इसे परिभाषित करना भी जटिल है, इसलिए केंद्र सरकार एक साल से इसका जवाब ढूंढ रही है, कि क्या ज़वाब दिया जाए l पिछले कुछ चुनावों के अनुभव हक़ीक़त बयान कर रहे हैं कि जहां रेवड़ियाँ बांटी गईं हैं वहाँ वहाँ तमाम पार्टियों ने चुनाव जीत लिए हैं, चाहे एमपी, हरियाणा में भाजपा हो, महाराष्ट्र में एनडीए हो, फिर चाहे झारखंड में मुक्ति मोर्चा हो सभी को रेवड़ी के नाम पर जबरदस्त फायदा हुआ है l हालांकि अब कुछ सवाल शुरू हो गए हैं और उन्हें पूछना भी ज़रूरी हो जाता है l दिल्ली की राजनीति से शुरू हुई यह कवायद किसी वायरस की तरह अन्य राज्यों में फैलने लगी है l हकीकत ये है कि देश की राजधानी की प्रति व्यक्ति आय देश में तीसरे स्थान पर है, जबकि बेरोजगारी में सबसे कम दर वाले राज्यों में दिल्ली का नाम आता है l फिर क्यों जनता को मुफ्त की रेवड़ी की जरूरत है? अर्थशास्त्रियों, कानूनविदों की माने तो फ्रीबीज के राजनीतिक फायदे का आकलन दलों ने भी किया l यही वजह है कि दिल्ली के बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान समेत कई राज्यों में चुनाव के दौरान किया गया l आर्थिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो भारत में वोटर तीन स्तरों का है- उच्च वर्ग, मध्य वर्ग और निम्न वर्ग या गरीब l इनमें सब कैटेगरी भी है, लेकिन महंगाई, टैक्स, बेरोजगारी की जद्दोजहद और सुविधाओं को जुटाने की कवायद सबसे ज्यादा मध्यम वर्ग को झेलनी पड़ती है l इसमें भी तीन स्तर हैं- उच्च मध्यम वर्ग, सामान्य मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग, फ्रीबीज का सीधा फायदा इन्हें भी मिलता है l हाशिए पर रहने वालों को निशाने पर रखकर राजनीति का दौर फ्रीबीज के आने पर पुराना हो गया है l इसके गलत और सही होने का फैसला या परिभाषित करने का हल सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले से निकल आएगा, लेकिन आंकड़ों की हकीकत ये सवाल उठाती है कि देश की राजधानी में रहने वाली जनता सक्षम है तो उसे फ्रीबीज की क्या जरूरत है? कई विद्वान बढ़ती टैक्स और महंगाई की दरों के चलते इसे जायज करार देते हैं, जबकि एक धड़ा इसके बिल्कुल खिलाफ है l हालांकि मैनिफेस्टो यानी चुनावी घोषणापत्र में राजनीतिक दल सरकार बनने पर सुविधाएं मुहैया कराने का ब्यौरा दे सकती है l तमाम अर्थशास्त्रियों कहना है कि फ्रीबीज की कानूनी परिभाषा तय होना जरूरी है l केंद्र से सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस पर सवाल किए हुए एक साल से ज्यादा समय हो चुका है l देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार इस पर अदालत को क्या सुझाती है, लेकिन इस हकीकत को कोई नहीं नकार सकता कि साल 2023-24 में दिल्ली की प्रति व्यक्ति आय 4,61,910 रुपये सामने आई थी, जो देश में गोवा और सिक्किम के बाद सबसे ज्यादा है l दिल्ली की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय स्तर की प्रति व्यक्ति आय 1,84,205 रुपये से दोगुनी से अधिक है l यही नहीं, दिल्ली सरकार द्वारा प्रतिवर्ष जारी की जाने वाली हैंडबुक पर गौर किया जाए तो राष्ट्रीय राजधानी की प्रति व्यक्ति आय में 7.4 प्रतिशत वार्षिक बढ़ोतरी का अनुमान भी है l जबकि आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) द्वारा गतवर्ष सितंबर में जारी एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक बेरोजगारी दर में भी दिल्ली अन्य राज्यों से काफी निचले पायदान पर है l रिजर्व बैंक के मुताबिक, मार्च 2024 तक सभी राज्य सरकारों पर कुल 75 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था जो मार्च 2025 तक बढ़कर 83.31 लाख करोड़ से भी ज्यादा हो जाएगा l देश में सबसे ज्यादा कर्ज तमिलनाडु पर है l तमिलनाडु पर 8.34 लाख करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश पर 7.69 लाख करोड़ रुपये, महाराष्ट्र पर 7.22 लाख करोड़, पश्चिम बंगाल पर 6.58 लाख करोड़ रुपये, कर्नाटक पर 5.97 लाख करोड़ रुपये, राजस्थान पर 5.62 लाख करोड़ रुपये, आंध्र प्रदेश पर 4.85 करोड़ रुपये, गुजरात पर 4.67 लाख करोड़ रुपये, केरल पर 4.29 लाख करोड़ रुपये, मध्य प्रदेश पर 4.18 लाख करोड़ रुपये, तेलंगाना पर 3.89 लाख करोड़ रुपये, पंजाब पर 3.51 लाख करोड़ रुपये, हरियाणा पर 3.36 लाख करोड़ रुपये, बिहार पर 3.19 लाख करोड़ रुपये और असम पर 1.51 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है l ये मुफ़्त की रेवड़ियाँ विकास का मॉडल नहीं अपितु राजनीतिक पार्टियों का चुनाव जीतने का उपाय बन गया है, जिसने विकास के मुद्दो को गौण कर दिया है l (लेखक पत्रकार हैं) .../ 21 जनवरी /2025