*उत्तर रेलवे ने 140 वर्ष पुरानी हस्त चालित क्रेन को रिकॉर्ड समय में पुनः बहाल कर जीवंत किया* ओल्ड एज गोल्ड की कहावत तो आप सभी ने सुनी होगी।खास कर हमारे देश भारत में यह कहावत काफी ही प्रचलित है।तभी तो भारत की पहचान सम्पूर्ण विश्व में सबसे अलग व विश्वनीय है।आज हम आप को बता रहे है कि भारतीय रेलवें अपनी पुरानी यादों को सहेज व संजोय कर भविष्य में आने वाले पीड़ी के लिए संरक्षित व सुरक्षित रखने में पीछे नही है।आप चौकिये मत -आज हम आप के समक्ष भारतीय रेल के उत्तर रेलवे का दिल्ली मंडल ने भी अपनी प्रतिबद्धता का परिचय देते हुए एक सहराणीय कार्य किया है।यह बात उस समय की है,जब विज्ञान इतना आधुनिक नही होता है।ऐसे में विकाश कार्य में भारीभरम रेल की पटटी व अन्य सामान को एक स्थान से दुससे जगह कैसे ले जाता होगा । तो हम बता दें , रेल की निर्माण कार्य रेलवे लाईन व अन्य कार्य से मशीन व अन्य सयंत्र आदि कोइधर से उधर करने के लिए उस समय क्रेन होती थी,जिसे हाथ से चलाया जाता होगा।इसका उदाहरण देखनें को मिला है।भारतीय रेल के नार्दन रेलवे के दिल्ली मंडल नें 140 वर्ष पुरानी हस्त चालित क्रेन को अपनी कड़ी मेहनत व पूर्ण लगन से सफलता पूर्वक ठीक ही किया बल्कि भारतीय रेल की धरोहर के स्मृति चिन्ह में एक नयी जान फूंक दी है।सर्व विदित रहे कि एली और मैक्लेन इंजीनियर, ग्लास्गो स्कॉटलैंड द्वारा सन 1885 में निर्मित इस क्रेन को पहली बार अवध और रोहिलखण्ड रेलवे,जिसे सन 1925 में ईस्ट इंडिया रेलवे में शामिल कर रेलवे कार्य में इस्तेमाल में लगाया था। इस संदर्भ में नार्दन रेलवे के युवा अधिकारी हिमांशु शेखर उपाध्याय (सी पी आर ओ० ) के अनुसार भारतीय रेल अपनी यात्रियों की सेवा कर्त्तव्य का ना केवल पालन करती है बल्कि पुरानी विरासत को संभालकर संरक्षित करता है।ताकि भविष्य में उस पर अनुसंसाधन हो सके ,उससे जुड़े हुए सभी सदस्यों को सम्मान किया जाय।रेलवे की विरासत की श्रंखला में एक नई पहल की गई है । 140 वर्ष पुरानी इस क्रेन की पुनः बहाली हर सभी के लिए उल्लेखनीय उपलब्धि रही।जिसे मात्र तीन दिन में पूरा किया गया।आप को बता दे कि देश की राजधानी दिल्ली स्थित शकूरबस्ती रेलवे स्टेशन के निकट यह क्रेन बेहद ख़राब हालत में पड़ी थी। जिसके पहिये जमीन में दबे हुए थे और इसका बूम टूट कर मुड गया था। साथ ही इसके कई ज़रूरी कलपुर्जे भी नहीं थे।सर्व विदित रहे स्टीम लोकोमोटिव शेड रेवाड़ी ने इस क्रेन को मरम्मत करने की चुनौती सहर्ष स्वीकार किया ।स्टीम लोकोमोटिव शेड रेवाड़ी व शकूरबस्ती स्थित कैरिज एवं वैगन स्टाफ की मदद ली।बेकार व खो चुके कलपुर्जो को फिर से कुशल इंजीनियरों तकनीकी सहयोगी सहयोगी टीम बनाया गया । जिन्होने खराब बूम को ठीक किया गया और इसका मूल स्वरुप बहाल किया गया। इस बीच इंजीनियरिंग विभाग ने शकूरबस्ती ईस्ट केबिन के निकट एक पेडस्टल बनाने के लिए रात भर काम किया।एक मोबाइल क्रेन की मदद से तैयार किये गए सामान को उठाकर पेडस्टल पर लगा दिया। इस क्रेन के रंग रोगन का काम एक दिन में ही पूरा कर लिया गया। इस प्रकार एक मृतप्राय धरोहर को जीवंत रूप दिया गया। पुनः र्जीणोंद्वार की दस टन क्षमता वाली इस क्रेन का उद्धघाटन 16. 01 .2025 को उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक अशोक कुमार वर्मा द्वारा एक कार्यक्रम में किया गया। इस अवसर पर मंडल रेल प्रबंधक सुखविंदर सिंह एवं अन्य गणमान्य द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में इंजीनियर एवं सहायक टीम के समर्पण एवं दक्षता को सराहा गया। उत्तर रेलवे के महाप्रबन्धक अशोक कुमार वर्मा ने अपने उद्बोधन में रेल की विरासत को संरक्षित रखने में हमारे कर्मचारियों की प्रतिबद्धता का प्रमाण है। (स्वतंत्र पत्रकार ) .../ 20 जनवरी /2025