लेख
20-Jan-2025
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भगवान श्री राम की श्री रामब्धि शुक्ति मणि जिसमें श्री का अर्थ है देवी लक्ष्मी सार्वभौमिक शक्ति जो सीता के रूप में जन्मी थीं, पूर्व की उत्पत्ति समुद्र से हुई थी और बाद में पृथ्वी में पैदा हुई थी, राम ने स्वयं में शिव और विष्णु के महत्वपूर्ण बीजों को मिलाया, अब्धि का अर्थ है सागर और शुक्तिमणि जिसका अर्थ है मोती। तो यह समझा जा सकता है कि जब हम रामायण के महासागर को छूते हैं, तो हमें दो मोती मिलेंगे, एक महान सेतु (महान पुल) और दूसरा लंकानगर (लंका का शहर), दोनों का निर्माण महासागर पर किया गया था। विश्वकर्मा (दिव्य आर्कटिक), ब्रह्मा के निर्देश के तहत दिव्य शिल्पकार, निर्माता ने त्रिदेवों में से एक भगवान शिव के निवास के रूप में लंका शहर का निर्माण किया था। उसी तरह हिंदू किंवदंतियों के चित्रण राजा नल ने विश्वकर्मा के महत्वपूर्ण तत्वों से पैदा हुए लंका नगरी और महान सेतु दोनों ही जल से संबंधित निर्माण हैं क्योंकि दोनों ही समुद्र पर बने थे। सेतु और लंका दोनों ही रामायण के दो मोती हैं। ये दोनों ही चमकदार मोती हैं, जिस पुस्तक का विषय उनके इर्द-गिर्द घूमता है, उससे यह आशा की जाती है कि यह भगवान श्री राम के आभूषणों की एक श्रृंखला की तरह चमकेगी जो असंख्य सूर्यों का प्रकाश बिखेरती है, और बदले में हम पर प्रकाश डालती है और हमारे जीवन को उद्देश्यपूर्ण बनाती है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि रामचंरित्र मानस में प्रत्येक तथ्य विज्ञान और हमारी भारतीय संस्कृति के अनुरूप है। हिंदू किंवदंतियाँ, पौराणिक कथाएँ, प्राचीन इतिहास, सूर्य सिद्धांत और आधुनिक विज्ञान सभी इसके के निर्माण में शब्द को लाए गए हैं। पुस्तक श्रीमद्रामायण में वर्णित राम सेतु और लंका नगर के बारे में कुछ जानने के लिए, हमें कुछ संबंधित तथ्यों को जानना आवश्यक है। रामायण में वर्णित तथ्य वर्तमान के अनुरूप हैं। विज्ञान की हर शाखा रामायण से जुड़ी हुई है। पुस्तक का उद्देश्य यह है की द्वीप में, भारत वर्ष (भारत की भूमि) स्थित है, कैसे हमारे देश को भारत खंड (भारत का महाद्वीप और भारत वर्ष, भारत की भूमि) के रूप में जाना जाता है और हमारे देश से अलग हुए द्वीपों के नाम क्या हैं। पुस्तक सूर्य सिद्धांत में पाई जाने वाली माप की योजन इकाइयों के बारे में मजबूत जानकारी देती है, जो दूरी मापने की वर्तमान इकाई के अनुसार इसकी गणना प्रदान करती है। रावण का लंका नगर और वर्तमान श्रीलंका, जो भारत से अलग हो गए थे, दो दूर के द्वीप हैं और एक नहीं हैं। रामायण में राम के काल में केवल एक द्वीप लंका नगर का वर्णन मिलता है। भौगोलिक परिवर्तन के कारण लंका नगर की 90% भूमि समुद्र में डूब गई और शेष 10% भूमि सिंहल द्वीप में विलीन नहीं हुई। परिणामस्वरूप वर्तमान श्रीलंका के लोग कहते हैं कि उनकी भूमि (श्रीलंका) रामायण के अवशेषों से भरी हुई है, जिसका अर्थ है कि रामायण की लंका कुछ और नहीं बल्कि उनकी अपनी भूमि है, जिसमें महान सेतु का 90% हिस्सा समुद्र में डूबा हुआ है, शेष भाग वर्तमान में दानुष्कोटि (भारत में) और थलीमन्नार (श्रीलंका में) के बीच देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि महान सेतु का शेष भाग भी उत्तर पूर्व की ओर चला गया होगा। समय के साथ भौगोलिक परिवर्तन का एक विवरण। इस पुस्तक में हमारे देश पर शासन करने वाले सम्राटों और राजाओं के साथ-साथ आधुनिक काल में हमारे राज्य के राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों और राज्यपालों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। पुस्तक का उद्देश्य श्रीमद्रामायण और अन्य मानक कार्यों के साथ-साथ भागवत और विभिन्न पौराणिक कथाओं के आधार पर यह तथ्य स्थापित करना भी है कि रावण का लंकानगर और सिंहल (वर्तमान श्रीलंका) दो अलग-अलग संस्थाएँ हैं और जैसा कि सार्वभौमिक रूप से माना जाता है, रामेश्वरम (भारत में) और श्रीलंका के बीच राम सेतु का निर्माण किया गया था। भौगोलिक स्थिति मनुष्य अपनी माँ के गर्भ से बाहर निकलते ही पृथ्वी की गोद में प्रवेश करता है। जब तक वह जीवित रहता है, पृथ्वी उसका आश्रय बनी रहती है। ईश्वर ने उसके जन्म से पहले ही उसके पदार्थ की व्यवस्था कर दी है। इसलिए भौगोलिक स्थिति को मनुष्य की यात्रा का पहला चरण माना जाता है। जैविक स्थिति: पृथ्वी मनुष्य के स्थिर विकास का आधार है। वेदों और विज्ञान के अनुसार पृथ्वी पर 84 करोड़ जीव-जंतु मौजूद हैं। प्रकृति की अनियमितताओं और परिवर्तनशीलता के कारण कुछ जानवर विलुप्त हो गए हैं।अतः आप इधर उधर की बातें से अच्छा भगवान श्री राम का स्मरण करते रहें जैसे प्रभु के ध्यान में पूज्य हनुमान को शक्ति मिलती है जब जब राम को मन मंदिर में पुरी तरह बसा नहीं लेते तब तक शांति नहीं मिलेगी और आपकी ऊर्जा नष्ट होते रहेगी जिसमें काम, क्रोध, मद, लोभ, द्वेष आदि का अंत नहीं कर देते तब तक प्रभु राम को समझना मुश्किल होगा आप ऐ तो जाने ऐ तो मेरे प्रभु राम ही थे जिसके चरण स्पर्श से पत्थर की अहिल्या जीवित हो उठी तभी तो केवट भगवान श्री राम के चरणों क़ो अपने अश्रु से ही धो डालता है भगवान श्री राम दया के सागर हैं औऱ वही अमृत भी है जब तक ध्यान रहेगा आप सुरक्षित रहेंगे जैसे जो मछली मछुआरा के पैर तले आती है तो उसके जाल में नहीं फंसती है इसी तरह प्रभु श्री राम के चरणाविंद में रहते हैं तब तक आपका क़ोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है भगवान श्री राम महाकुम्भ जैसे ही तो हैं जिसमें ना जाने अपने अंदर कितने अ अंशख्य साधु संतो क़ो अपने विराट ह्रदय में समाहित किए है या फिर अथाह समुद्र जैसे जो उसमें एक बार डुबकी लगा देता है वो माया मोह के बंधन से मुक्त हो जाता है विशाल से विशाल कुंभ मेला में किसी कारण वश नहीं जा सके तो इसमें चिंता करने की बात नहीं है ऐ कुछ समय के लिए एक आध्यात्मिक वातावरण प्रदान करता है लेकिन प्रभु श्री राम तो अनन्त रूपों में व्याप्त है जो कभी भी किसी भी समय उपस्थित हो जायेंगे बस एक बार सच्चे मन से ध्यान कर के देखिये असली अमृत प्रभु राम के चरणों में छिपा है जो आपको शक्ति प्रदान करता है बस उन लोगों से दूर रहें जो मांस, मदिरा,का सेवन करते हैंऔऱ भोग विलास औऱ क्रोधित हो जाते हैं संगत का प्रभाव पड़ता है जैसी संगती वैसी रंगत। अतः एकांत में रहकर प्रभु का ध्यान करते रहें आपक़ो इससे अधिक ख़ुशी कभी नहीं मिलेगी जैसे भूगर्भीय परिस्थितियों में कुछ जानवर सूक्ष्मदर्शी से देखे जा सकते हैं और कुछ सूक्ष्मदर्शी से भी दिखाई नहीं देते। मनुष्य जन्म लेता है और अपने पिछले जन्मों के कर्मों का फल भोगता है। इसे कर्म का नियम कहते हैं। ब्रह्मा द्वारा ब्रह्मांड की रचना भी इसी में वर्णित है। जैविक स्थिति में मनुष्य का अपनी माँ के गर्भ से धरती पर आना दूसरी अवस्था मानी जाती है। 3। कालानुक्रमिक स्थिति: यह उपरोक्त दोनों स्थितियों से संबंधित है। समय धरती पर होने वाले परिवर्तनों और मनुष्य के विकास को मापने का एक पैमाना है। समय का पहिया अनंत काल तक घूमता रहता है। सभी अवतार, ब्रह्मा का समय (सृष्टि) और मानव जाति की आयु समय सारणी के विशाल दायरे में फैली हुई है। समय भूवैज्ञानिक और जैविक परिवर्तन का आधार है। इसलिए इसे तीसरी स्थिति कहा जाता है। ज्योतिषीय समय से संबंधित है। समय के साथ ग्रहों, तारों की स्थिति और उनकी चाल मनुष्य के साथ-साथ उसके व्यक्तित्व पर भी परिवर्तन लाती है।जो प्रभु राम के नियंत्रण में है आपके किसी भी कर्म क़ो माध्यम हवा, पानी पकड़ लेती है और उसका आकार प्रभु क़ो दिख जाता है अतः किसी भी कुकर्म क़ो ना करें उसकी छवि सामने बनकर घटना के रूप में परिवर्तित हो जाती है और जब समय घूमते हुए फिर वही आपके पास रोग लेकर आ जाती है।जिसको भोगना पड़ता है क्योंकि पृथ्वी घूमती है जिससे दिन औऱ रात होता है। ईएमएस/20/01/2025