नई दिल्ली (ईएमएस)। ताजा शोध के बाद भारतीय डॉक्टरों ने भारतीय आबादी के लिए मोटापे की परिभाषा को नया रूप दिया गया है। हाल ही में किए गए इस शोध में एम्स दिल्ली के विशेषज्ञों का भी योगदान था। अब तक मोटापे को परिभाषित करने के लिए बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) का उपयोग किया जाता था, जो वजन और ऊंचाई के अनुपात पर आधारित था। हालांकि, इस नए अध्ययन में पेट के आसपास की चर्बी, जिसे एब्डॉमिनल ओबेसिटी कहा जाता है, और उससे जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं को परिभाषा का आधार माना गया है। इस अध्ययन का उद्देश्य भारतीयों में मोटापे से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं को बेहतर तरीके से समझना और उनका समाधान ढूंढना है। एम्स दिल्ली के प्रोफेसर डॉ. नवल विक्रम ने इस पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीयों के लिए मोटापे की अलग परिभाषा बेहद जरूरी थी, ताकि इससे जुड़ी बीमारियों का समय रहते पता लगाया जा सके और उनका सही इलाज किया जा सके। फोर्टिस सी-डॉक अस्पताल के डॉ. अनूप मिश्रा ने भी इस नए शोध की सराहना करते हुए कहा कि भारत में मोटापा एक बढ़ती हुई समस्या है, खासकर ग्रामीण इलाकों में, और नई गाइडलाइंस से मोटापे से जुड़ी बीमारियों का समय पर इलाज संभव होगा। नई परिभाषा के अनुसार, मोटापे को दो चरणों में बांटा गया है। पहले चरण में शरीर में वसा की मात्रा बढ़ने से शारीरिक कार्यों पर कोई असर नहीं पड़ता, लेकिन यह बाद में दूसरे चरण में प्रगति कर सकता है। दूसरे चरण में पेट के मोटापे के साथ-साथ अन्य शारीरिक समस्याएं भी विकसित हो सकती हैं, जैसे घुटनों और कूल्हों का दर्द, या टाइप 2 मधुमेह की उपस्थिति। अध्ययन में यह सुझाव दिया गया है कि मोटापे से जुड़ी समस्याओं का प्रभावी समाधान निकालने के लिए वजन घटाने की रणनीतियों को नए तरीके से तैयार किया जाना चाहिए। पेट के मोटापे को खास इसलिए माना गया है क्योंकि यह इंसुलिन प्रतिरोध से जुड़ा होता है और भारतीयों में अधिक पाया जाता है। सुदामा/ईएमएस 19 जनवरी 2025