लेख
18-Jan-2025
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महाकुम्भ मेला,2025 प्रयागराज में बाबा अभय सिंह का नाम चर्चा का विषय बन गया है अभय सिंह उर्फ़ पूर्व छात्र आईआईटी बाबा कनाडा में भी नौकरी करके आए, वहां इन्हें साल का 36 लाख का पैकेज था मगर इन्होंने उसे छोड़ दिया, यही नहीं इन्होंने स्वयं कबूला है कि इनकी 4 साल तक एक गर्ल फ्रेंड भी रही है, यह दारू, सिगरेट सब कुछ पीते थे, इनका शादी से भरोसा इसलिए उठा क्योंकि इनके पेरेंट्स आपस में लड़ाई करते थे जबहर जगह दुनिया से भरोसा उठा तो अभय सिंह ने संन्यास का मार्ग अपना लिया और ईश्वर की खोज में निकल पड़े। भी आई आई टी रूडकी का पूर्व छात्र हूँ और माया के बंधन से निकल कर कुछ दिन शांति कुंज में बिताये लेकिन जब अंतर्यामी परमात्मा ने कहा उनका रो रो कर बुरा हाल हो गया है और वापस जाओ क्योंकि यदि ऐसा नहीं करते तो माता पिता का भरोसा गुरू के प्रति उठ जायेगा अतः वापस आना पड़ा और शादी भी हुई और सही में शांति नहीं मिली जो सुखद अनुभूति गुरू के ध्यान में मिला वैसी अनुभूति नहीं मिली पैसा घर सम्पूर्ण सजोये गए सामान का एक दिन नाश होना तय है तो सच्चा धन तो भगवान श्री राम के चरणों में है अतः मैं उनके इस बात से मैं सहमत नहीं हूँ कि माता पिता की बात को नहीं मानना चाहिए माँ जो अपने कोख में बच्चे को 9महीने तक रखती है और पिता अपने पुत्र को पढ़ाता लिखाता है अतः माता पिता ही आपके भगवान है जो भगवान श्री राम से प्रेरणा लेनी चाहिए भगवान श्री राम को 14वर्ष के वनवास का आदेश अपने पिता राजा दशरत से मिला और ऐ तो किसी भी पुत्र के लिए पिता के प्रति घोर नाराजगी होनी चाहिए लेकिन भगवान श्री राम ने सहर्ष स्वीकार किया औऱ अहंकारी रावण के घमंड को चकनाचूर कर दिया रावण को भय उसके कुकर्म के कारण हुआ धर्म और पाप का अंतर जानना हो तो आपके ही अंतःकरण से बड़े अन्य किसी प्रमाण की अवश्यकता ही नहीं। धर्म आत्मबल बढ़ाता है, पाप आत्मबल क्षीण कर देता है। रावण, सोने की लंका का राजा, प्रकाण्ड विद्वान, महाबली, मायावी, देवता भी जिसके भय से अपने पत्नी बच्चे छोड़कर पहाड़ों की गुफाओं में जा छिपते थे, आज सीता जी को उठा ले जा रहा है, पर हालत क्या है? थर थर काँप रहा है, बार बार दाँए बाँए देखता है, पसीना छूट रहा है, तुरंत लंका पहुँच जाना चाहता है। जबकि सीता जी के पास कुछ नहीं है, न राम, न लक्ष्मण, न कोई और, अकेली हैं। धनबल, तनबल, सैन्यबल, कुछ भी नहीं है। कोई अस्त्र भी नहीं है, कोई रक्षक नहीं है। फिर भी निर्भयता का परिचय दे रही हैं। सीता जी ने भगवान को याद किया, और रावण को ललकारा। रुक रुक! ठहर दुष्ट! अभी भगवान आ ही रहे हैं। रावण इतना डर गया है कि उससे रथ तक नहीं हांका जा रहा है। सोचता है कि कहीं राम आ न जाएँ, जितनी जल्दी हो सके भागूँ यहाँ से। बस यही चरित्रशीलता और चरित्रहीनता में अंतर है। चरित्रहीनता दुर्बल बना देती है। चाहे कुछ भी हो, सब कुछ ही क्यों न हो, चरित्र न हो, तो कुछ भी नहीं है। कुछ भी न हो, पर चरित्र हो, तो सब है।और रावण तो इतना अधिक भय खा रहा है, कि उसे अपना पिछला कुकर्म भी याद आ रहा है, जब उसने अपने भाई कुबेर की ही पुत्रवधु का बलात्कार करने का प्रयास किया था, और वह श्रापग्रस्त हो गया था, कि भविष्य में किसी स्त्री को पाप दृष्टि से छुएगा भी, तो उसके सिर के सौ टुकड़े हो जाएँगे। यही कारण है कि उसकी सीता जी को छूने तक की हिम्मत नहीं हो रही। जिस कर्म को करते हुए हमारा आत्मबल क्षीण मालूम पड़े, उस कर्म को पापकर्म जानकर उसका विचार तक त्याग देना चाहिए।अतः कुछ ऐसे लोगों से हमेशा बचना चाहिए जो शराब सिगरेट, मांस का सेवन करते है क्योंकि उनकी मानसिकता भी उसी खान पान के वजह से विकृत हो चुकी होगी और वो अपने अहंकार में आपको कुछ भी बोल सकता है लेकिन आप शांति से काम लें और जब लगे सर पानी से ऊपर बह रहा है तो भगवान श्री राम का ध्यान करें भगवान श्री राम सिर्फ भगवान ही नहीं है बल्कि एक अच्छा मित्र भी हैं जो आपको बिलकुल सही मार्गदर्शन देंगे उन्होंने कभी अपने को भगवान नहीं कहा लेकिन उनके कर्म ही भगवान का दर्जा देता है जो स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष भी उन्हें ईश्वर का रूप मानते हैं। ईएमएस /18 जनवरी 25