ऐसे थे प्रजापिता ब्रह्मा बाबा सिंध प्रांत के हैदराबाद शहर में सन 1876 में दादा लेखराज का जन्म कृपलानी परिवार में हुआ था । बचपन से ही उनकी बुद्धि कुशाग्र थी अपने बाल्यकाल में माता-पिता के देहांत के पश्चात वह अपने चचेरे भाई की राशन की दुकान पर काम करने लगे । काम करते-करते वे गरीबों को राशन दान करने लग गए थे जिसे देख चचेरे भाई ने उन्हें दुकान से निकाल दिया । तत्पश्चात मुंबई आकर उन्होंने हीरे जवाहरात का ज्ञान प्राप्त किया और कुछ समय बाद अपना खुद का व्यवसाय प्रारंभ किया । प्रखर व तीक्ष्ण बुद्धि होने के कारण अल्प आयु में उन्होंने अपने धीरे जवाहरात के व्यपार को न केवल कोलकाता राजस्थान व मुंबई बल्कि विदेश में भी बढ़ाया । वे अत्यंत रहमदिल तथा सात्विक स्वभाव की थे । उनके संस्कार पूर्णतया राजकुलोचित थे तथा वे शाकाहारी भी थे । दादा लेखराज का राजा महाराजाओं के महल में बहुत विशेष व राजसी रूप से आदर सत्कार व स्वागत किया जाने लगा । दादा की सौम्यता तथा राजकुलोचित संस्कारों को देख अनेक राजाओं के मुख से निकल ही जाता था कि ईश्वर को सचमुच राजा तो दादा को बनाना चाहिए था। दादा लेखराज ने अपने जीवन में 12 गुरु किए थे । वे नित्य गीता पाठी थे । सफर में भी गीता पाठ अवश्य करते थे । दादा के पास पॉकेट साइज की छोटी गीता भी रहती थी । सन 1936 में दादा की आयु जब 60 साल की हुई तब उनमें अचानक बदलाव आने लगा । दादा एकांत प्रिय बनने लगे और ईश्वरीय चिंतन में मगन रहने लगे । इसी समय उन्हें अनेक साक्षात्कार हुए - अहम विष्णु चतुर्भुज - तत्वम ! ऐसे महावाक्य उनके कानों में गूंजने लगे और गुरुजी के पास जाकर उन्होंने अपनी यह बात रखी । परंतु गुरु जी भी इन बातों से अवगत नहीं थे और इस तरह के साक्षात्कार गुरुजी को भी अचंभित करते थे । इसी श्रृंखला में दादा अधिकाधिक एकांत प्रिय होने लगे और उन्हें अनेकानेक साक्षात्कार होने लगे जैसे कि उन्हें परमपिता परमात्मा शिव तथा सृष्टि के महा विनाश का भयंकर साक्षात्कार हुआ। उस समय परमाणु हथियार कल्पना में भी नहीं था परंतु परमाणु हथियारों से चारों तरफ अग्नि फैल रही है लोगों में तनाव दहशत व भय है तथा कई जगह मारकाट हो रही है रक्त की नदियां बह रही है - इस प्रकार के साक्षात्कार दादा को हुए । तब दादा को इस विषय में अधिक जानने की रुचि अंदर से उत्पन्न होने लगी । इन्हीं दिनों एक दिन गुरु का सत्संग हो रहा था । दादा सत्संग के बीच कभी नहीं उठते थे परंतु उस दिन उठकर अपने कमरे में चले गए । उनके पीछे-पीछे उनकी बहू ब्रिजइंद्रा गई जिन्होंने कमरे के बाहर से एक अनोखा नजारा देखा जो कभी नहीं देखा था । दादा प्रभु प्रेम में लवलीन थे उनकी आंखों तथा मुखमंडल पर अलौकिक तेज था दादा का कमरा लाल प्रकाश से तेजोमय हो गया था और बहुत ही अलौकिक सुंदर सुख आभास हो रहा था उतने में ही दादा के मुखारविंद से यह शब्द निकले - निजानंद स्वरुपम शिवोहम शिवोहम ज्ञान स्वरुपम शिवोहम शिवोहम प्रकाश स्वरूपम शिवोहम शिवोहम कुछ समय दादा की आंखें बंद रही । यह दृश्य देखते ही देखते उनकी बहु ब्रिजइंद्रा जी भी अशरीरी हो गई थी । दादा ने आंखें खोलते ही इस दिव्य अनुभव का जिक्र अपनी बहू से किया । इसके उपरांत परमात्मा शिव ने दादा को आत्मा का साक्षात्कार कराया और स्वयं का परिचय दिया । परमात्मा ने विश्व के परिवर्तन हेतु दादा को अपना साकार माध्यम बनाया और उन्हें प्रजापिता ब्रह्मा नाम दिया । बाबा बंबई में अपने सारे कारोबार को समेटकर हैदराबाद लौट आए । अब यहां नित्य रूप से शिव बाबा ब्रह्मा बाबा के मुखारविंद से नए ज्ञान का उच्चारण करने लगे । धीरे धीरे सिंध में यह बात तेजी से फैल गई और महिलाएं अधिक संख्या में आने लगी । बाबा के घर में नित्य रूप से सत्संग चलने लगा जिसे उस समय ओम मंडली कहा जाता था । बाबा ने अपनी सब चल अचल संपत्ति महिलाओं की एक कमिटी बनाकर संस्था के नाम पर कर दी । परमात्मा के इस सत्संग की एक बात बहुत ही निराली थी की जो भी इस सत्संग में आता था उसे सहज ही श्री कृष्ण विष्णु स्वर्ग इत्यादि का साक्षात्कार हो जाता था । बहुतो को घर बैठे भी ब्रह्मा बाबा व श्री कृष्ण का साक्षात्कार हो रहा था । इस कारण अनेकानेक ब्रह्मावत्स परमात्मा की ओर आकर्षित हुए और उन्होंने अपना जीवन उन्हें समर्पित कर दिया । सन 1936 से सन 1950 यानी 14 साल तक बाबा के साथ सिंध तथा कराची में लगभग 350 छोटे बड़े महिलाओं तथा भाइयों ने ज्ञान व योग की गहन तपस्या की भारत विभाजन के बाद यह संस्था कराची से माउंट आबू पर स्थानांतरित हुआ जिसे मधुबन कहते है । इसी भूमि से महान तपस्वी व सौम्यता की प्रतिमूर्ति प्रजापिता ब्रह्मा ने विश्व कल्याणार्थ के इस कार्य को दसों दिशाओं में प्रसारित किया । भारत तथा अनेकानेक देशों की ब्रह्मावत्स इस पावन भूमि पर आकर धन्य धन्य होने लगे यहां ब्रह्मा बाबा को साकार में प्रकार सभी बाह्य जगत की सारी बातें भूल जाते थे तथा अलौकिकता का अनुभव सर्व प्रति स्वरूप का अनुभव करते थे । बाबा को जो भी मिलते थे उन्हें सहज ही अपने आत्मिक स्वरूप का आभास हो जाता था ब्रह्मा बाबा की आत्मिक स्थिति के शिखर ऐसे थे कि जो भी उनके सम्मुख जाता था वह सारी दुख दर्द बीमारी देह के कार्यकलाप देह की दुनिया भूल जाता था । प्रजापिता ब्रह्मा के सानिध्य में आकर उनकी पालना पाकर लोग महसूस करते थे कि वे किसी फरिश्ते से मिल रहे हैं अपने सच्चे अलौकिक पिता से मिल रहे हैं साथ ही वे ब्रह्मा बाबा में उपस्थित निराकार परमात्मा शिव के साथ मिलन का भी प्रत्यक्ष अनुभव करके जाते थे । किन्तु नश्वर कलेवर को छोड़कर एक दिन सबको जाना ही होता है सबके स्मृति पटेल पर अमिट छाप छोड़ प्रजापिता ब्रह्मा बाबा ने 18 जनवरी 1969 को कर्मातीत स्थिति को प्राप्त किया और अपने साकार शरीर का त्याग किया । अव्यक्त होकर वे सूक्ष्म वतन की ओर उड़ चले , जहां उन्होंने अपने फरिश्ता स्वरूप से सेवा का और अधिक विस्तार किया 18 जनवरी के महान दिवस में बाबा ने जो अंतिम महावाक्य उच्चारण किए वे थे बच्चे निराकारी निर्विकारी और निरहंकारी इन तीन शब्दों के दिव्य वरदान द्वारा उन्होंने ब्रह्मवत्सों में रूहानी शक्ति भर दी । विश्व परिवर्तन के कार्य में प्रजापिता ब्रह्मा बाबा आज भी परमपिता परमात्मा शिव के सहयोगी हैं वे आज भी अव्यक्त रूप में बच्चों की अलौकिक पालन कर रहे हैं ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी ज्ञानियों के भी ज्ञानी मुनियों में सर्वश्रेष्ठ राज ऋषि सर्व के अलौकिक पिता प्रजापिता ब्रह्मा बाबा को उनकी स्मृति दिवस पर 140 देश में फैले अनेकानेक ब्रह्मवत्स कोटि-कोटि नमन व श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं । (ब्रह्माकुमारी पुष्पा बहन, राजयोग सेवाकेंद्र, वरदान भवन लालबाग राजनंदगांव) ईएमएस, 17 जनवरी 2025