लेख
17-Jan-2025
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मैं अपनी सहेली के यहां काफी दिन बाद गई थी। वह मुझे देखकर बहुत खुश हुई। काफी देर तक हम दोनों चाय की चुस्कियों के साथ गपशप करते रहे। तभी सहेली के मोबाईल पर उसके किसी रिश्तेदार का फोन आया, जिसे सुनकर सहेली के चेहरे की चमक फीकी पड़ गई। मेरे पूछने पर उसने बताया कि उसकी ननंद अपने बच्चों के साथ गर्मियों की छुट्टियां बिताने के लिए यहां आ रही है। अब हमें अपना बाहर जाने का और घूमने- फिरने का प्रोग्राम कैंसिल करना पड़ेगा और ननंद व उसके बच्चों की सेवा में लगना पड़ेगा। मैं घर आकर सोचने लगी कि कहां गए वो दिन, जब हम मुंडेर पर बैठे कोए के बोलने पर ही अनुमान लगा लेते थे, कि घर में कोई मेहमान आने वाले हैं। जिससे हमारी खुशी कईं गुना बढ़ जाती थी और हम आने वाले मेहमान की खातिरदारी की तैयारी में जुट जाते थे। सेवा मेरे पति के दोस्त हमारे घर आए, मैं उनके लिए पानी का गिलास लेकर गई तो वह मेरे पति को बता रहे थे कि दादी की सेवा करने की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं की है। इसलिए वें ऑफिस जाने से पहले अपनी दादी को स्नान कराने से लेकर खाना खिलाने तक का सारा काम कर देते हैं, तभी ऑफिस जाते हैं। मैं उनकी बातें सुनकर खुश हो रही थी कि आज के जमाने में भी ऐसे इंसान हैं जो अपने बुजुर्गों का ख्याल रखते हैं। मेरे पति भी उनकी इस बात पर उनकी तारीफ करने लगे। तभी वह हंसकर बोले भाई साहब सेवा करने का मेवा भी तो मुझे ही मिलेगा। दादी के पास जितना भी जेवर है, दादी के बाद वह मेरी पत्नी को ही मिलेगा। उनके इस वाक्य ने हमारा उनके प्रति नजरिया ही बदल दिया। ईएमएस / 17 जनवरी 25