नई दिल्ली (ईएमएस)। दिल्ली में करीब 12 फीसदी मुस्लिम आबादी, जिसके चलते हर आठवां मतदाता मुसलमान है। दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 8 विधानसभा सीटों पर भी मुस्लिम मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा कुछ अन्य क्षेत्रों में भी उनकी खासी अहमियत दिखती है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सभी मुस्लिम सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है। कांग्रेस ने दिल्ली की 70 में से 63 सीटों पर टिकट की घोषणा कर दी, जिसमें से 7 सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। कांग्रेस ने अपने दिग्गज और पुराने नेताओं में सिर्फ बल्लीमरान सीट से पूर्व मंत्री हारुन यूसुफ को उतारा है जबकि बाकी मुस्लिम बहुल सीटों पर नए और युवा चेहरों पर दांव खेला है। ऐसे में क्या कांग्रेस अपने कोर वोटबैंक माने जाने वाले मुस्लिम समाज का विश्वास जीत पाएगी? साल 1993 में दिल्ली में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे, उसके बाद से 2013 तक हुए चुनावों में मुस्लिम बहुल सीटों पर कांग्रेस का दबदबा कायम रहा। अरविंद केजरीवाल के सियासी पिच पर उतरने के बाद पहली बार 2013 में हुए चुनाव में कांग्रेस को 8 सीटों पर जीत मिली जिसमें 4 मुस्लिम बहुल सीटें भी शामिल थीं। कांग्रेस के 5 बड़े मुस्लिम नेता थे और वो अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनते और चुनाव लड़ते रहे, लेकिन इस बार के चुनाव में हारुन यूसुफ के अलावा सभी नदारद हैं। केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में 1993 से विधानसभा चुनाव बहाल हुआ तो कांग्रेस के मुस्लिम चेहरे के तौर पर हारुन यूसुफ, परवेज हाशमी, चौधरी मतीन और अहमद हसन जैसे दिग्गज नेता उभरे। इसके अलावा शोएब इकबाल ने अपनी अलग पहचान बनाई, लेकिन बाद में कांग्रेस का दामन थाम लिया। कांग्रेस के पांचों मुस्लिम चेहरे चुनाव लड़ते और जीतते रहे हैं, कांग्रेस के ये बैकबोन भी माने जाते थे। लेकिन, 2015 के बाद दिल्ली की सियासी स्थिति बदल गई है और नई मुस्लिम लिडरशिप उभरी है। आम आदमी पार्टी ने इन्हीं नए मुस्लिम नेताओं को आगे बढ़ाया है। अजीत झा / देवेन्द्र/ नई दिल्ली/ईएमएस/15/ जनवरी /2025