लेख
15-Jan-2025
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छत्तीसगढ़ में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण को लेकर छिड़े राजनीतिक विवाद ने हाल के दिनों में राज्य के सामाजिक और राजनीतिक माहौल को गर्म कर दिया है। यह विवाद न केवल एक विशेष वर्ग के अधिकारों और सामाजिक न्याय का सवाल खड़ा करता है, बल्कि राज्य की राजनीतिक दिशा को भी प्रभावित कर रहा है। कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप के इस संघर्ष ने इसे और भी तीव्र बना दिया है। राज्य में ओबीसी आरक्षण का मुद्दा नया नहीं है, लेकिन वर्तमान स्थिति ने इसे एक नए रूप में प्रस्तुत किया है। जिला पंचायत अध्यक्ष पदों में ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण को हटाने का आरोप भाजपा सरकार पर लगाया जा रहा है। कांग्रेस का कहना है कि यह कदम सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से ओबीसी वर्ग के साथ अन्यायपूर्ण है। ओबीसी वर्ग को आरक्षण का लाभ पहली बार मंडल कमीशन की सिफारिशों के आधार पर 1990 के दशक में मिला। इसका उद्देश्य सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाना था। छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में, जहां ग्रामीण आबादी का बड़ा हिस्सा ओबीसी वर्ग से आता है, आरक्षण का प्रभाव व्यापक रहा है। ओबीसी वर्ग ने आरक्षण के माध्यम से शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में व्यापक प्रगति की है। इसी के साथ, राजनीतिक क्षेत्र में भी उनकी भूमिका बढ़ी है। पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी वर्ग की सक्रिय भागीदारी किसी भी राजनीतिक दल के लिए निर्णायक हो सकती है। छत्तीसगढ़ में ओबीसी आरक्षण विवाद का मुख्य कारण जिला पंचायत अध्यक्ष पदों में इस वर्ग के लिए आरक्षण का समाप्त होना है। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा सरकार ने जानबूझकर ओबीसी वर्ग को प्रतिनिधित्व से वंचित कर दिया है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज का कहना है कि बस्तर और सरगुजा जैसे इलाकों में ओबीसी वर्ग को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है। उन्होंने इसे आरक्षण नीतियों में हेरफेर करार दिया और कहा कि इससे ओबीसी वर्ग का राजनीतिक और सामाजिक अधिकार छीन लिया गया है।कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर आक्रामक रुख अपनाए हुए है। पार्टी ने आरोप लगाया है कि भाजपा सरकार सामाजिक समावेश के प्रति संवेदनशील नहीं है और उसने ओबीसी वर्ग के अधिकारों को नजरअंदाज किया है। कांग्रेस का कहना है कि यह फैसला सामाजिक असमानता को बढ़ावा देने वाला है। पार्टी ने इस मुद्दे पर प्रदेशव्यापी धरना प्रदर्शन की घोषणा की है। कांग्रेस का मानना है कि इस आंदोलन से वह ओबीसी वर्ग के समर्थन को मजबूत कर सकेगी। पार्टी ने यह भी कहा है कि सरकार को जल्द से जल्द आरक्षण नीतियों की समीक्षा करनी चाहिए। दूसरी ओर, भाजपा ने कांग्रेस के आरोपों को खारिज कर दिया है। उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने कहा कि कांग्रेस इस मुद्दे को राजनीतिक रंग दे रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भाजपा अनारक्षित सीटों पर ओबीसी उम्मीदवारों को खड़ा कर उनके प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करेगी। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण देव ने भी कहा कि पार्टी का उद्देश्य सामाजिक समरसता और समान प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना है। उन्होंने यह दावा किया कि ओबीसी वर्ग को पार्टी द्वारा उचित अवसर दिया जाएगा और उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। छत्तीसगढ़ में ओबीसी वर्ग की आबादी बड़ी संख्या में है। राज्य के ग्रामीण इलाकों में यह वर्ग निर्णायक भूमिका निभाता है। पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी वर्ग के समर्थन के बिना किसी भी राजनीतिक दल का जीतना मुश्किल है। ओबीसी वर्ग का समर्थन न केवल चुनावी राजनीति में बल्कि राज्य की नीतियों और योजनाओं को बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस वर्ग की नाराजगी या समर्थन राज्य की राजनीति को सीधे प्रभावित कर सकता है। आरक्षण विवाद का प्रभाव केवल छत्तीसगढ़ तक सीमित नहीं है। यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक और राजनीतिक बहस को भी प्रभावित कर सकता है। ओबीसी आरक्षण का सवाल सामाजिक न्याय के साथ-साथ राजनीतिक ध्रुवीकरण का भी कारण बनता है। राष्ट्रीय स्तर पर, ओबीसी वर्ग का महत्व चुनावी राजनीति में लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में छत्तीसगढ़ का यह विवाद अन्य राज्यों को भी प्रभावित कर सकता है। आरक्षण विवाद का समाधान राजनीतिक इच्छाशक्ति और संवाद से ही संभव है। सरकार को चाहिए कि वह सभी संबंधित पक्षों को शामिल करते हुए आरक्षण नीतियों की समीक्षा करे। ओबीसी वर्ग को यह विश्वास दिलाना जरूरी है कि उनके अधिकार सुरक्षित हैं। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आरक्षण न केवल सामाजिक समावेशन का साधन बने, बल्कि यह राजनीतिक और सामाजिक असमानता को भी समाप्त करे। छत्तीसगढ़ में ओबीसी आरक्षण को लेकर उभरा विवाद न केवल राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का मुद्दा है, बल्कि यह सामाजिक न्याय और प्रतिनिधित्व का सवाल भी है। कांग्रेस और भाजपा दोनों इस मुद्दे को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश कर रही हैं। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह विवाद किस दिशा में जाता है और इसका राज्य की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है। .../ 15 जनवरी /2025