प्रयागराज में चल रहे महाकुम्भ को देखकर मन में आता है कि जब देश में धर्म की रक्षा के लिए इतने साधू-संत,अखाड़े और शृद्धालु मौजूद हैं तो इस देश में हिन्दू धर्म को खतरा कहाँ है ? क्यों भारतीय जनता पार्टी और उस जैसे तमाम राजनीतिक और गैर राजनीतिक संगठनों ने धर्म की रक्षा के लिए अपने घोड़े खोल रखे हैं ?। जैसा कुम्भ भारत में उपलब्ध है, वैसा तो दुनिया में कहीं और है नहीं। दरअसल धर्म के खतरे में होने की बात कभी हिन्दू धर्म के लिए जीवन समर्पित करने वाले साधू-संतों की और से की ही नहीं गयी। ये नारा तो नेताओं का नारा है और कुछ धर्माचार्य इस नारे का निनाद करने लगे ,क्योंकि उन्हें इसी में अपना भविष्य नजर आने लगा। हिन्दुस्तान में अघोषित रूप से हिन्दुओं की संख्या सबसे ज्यादा है ,फिर भी आजादी के बाद हिंदुत्व की उदारता की वजह से भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित नहीं किया गया,जबकि 1947 में भी हिन्दू धर्म की ध्वजा उठाने वाले चारों शंकराचार्य और 13 अखाड़े मौजूद थे। इन सभी ने देश की आजादी के लिए उतनी लड़ाई नहीं लड़ी जितनी सार्वजनिक जीवन में काम करने वाले दूसरे नेताओं ने लड़ी । महात्मा गाँधी ने लड़ी ,नेताजी सुभास चंद्र बोस ने लड़ी,भगत सिंह ने लड़ी। असंख्य भारतियों ने लड़ी। लेकिन किसी ने धर्म खतरे में है का नारा न आजादी के पहले दिया और न आजादी के बाद दिया। महाकुम्भ का नजारा देखकर मुझे कभी लगता ही नहीं कि भारत में हिन्दू धर्म को किसी से भी कोई खतरा है। हिन्दू धर्म की रक्षा करने के लिए अभी तक तो केवल शैव,वैष्णव और उदासीन अखाड़े ही थे लेकिन अब इनमें किन्नरों का अखाड़ा भी शामिल हो गया है भले ही अभी इस नए अखाड़े को अखाड़ा परिषद ने मान्यता नहीं दी है। इन अखाड़े से जुड़े असंख्य साधू-सन्यासी धर्म की रक्षा के लिए ही सांस ले रहे हैं। इनकी संख्या भारत की सशस्त्र सेना से ज्यादा है। लेकिन ये साधू समाज भी कभी किसी दूसरे धर्म के पूजाघर गिराने के लिए सामने नहीं आये । अयोध्या में बाबरी मस्जिद इन धूतों-अवधूतों ने नहीं बल्कि भाजपा कार्यकर्ताओं और बजरंगियों ने गिराई थी। हिन्दू धर्म के खतरे में होने की बात कम से कम मेरे तो गले नहीं उतरती ,हिन्दू धर्म यदि इतने बड़े फ़ौज-फांटे के रहते हुए यदि खतरे में है तो इस धर्म के होने या न होने का कोई मतलब नहीं है। इस समय मै प्रयागराज में नहीं होकर भी ,वहीं हूँ । लगभग सभी टीवी चैनलों के जरिये बाबाओं के उद्घोष सुन रहा हू। पढ़े-लिखे और अनपढ़ सभी किस्म के बाबा कहते हैं कि वे तो विश्व कल्याण के लिए साधनारत हैं ,लेकिन उनकी कठोर साधना का प्रतिफल विश्व को तो छोड़िये भारत को ही नहीं मिल पा रहा है। इतने प्राचीन और विशाल धर्म के होते हुए भी इस देश में नफरत की आंधियां चल रहीं है। भय का वातावरण है। हैरानी तो इस बात की होती है कि देश का ये विशाल साधक समुदाय हिन्दू धर्म के अपहृत्त होने के खिलाफ अपनी धर्म ध्वजाएं नहीं उठाता । कोई अखाड़ा किसी रजनीतिक दल से नहीं पूछता कि उनके रहते हिन्दू धर्म को खतरे में क्यों बताये जा रहा है ? क्यों हिंदुओं के नाम पर वोट मांगा जा रहा है । क्यों किसी ने अपने आपको हिन्दू धर्म का स्वयंभू ठेकदार घोषित कर रखा है ? महाकुम्भ में आम आदमी भी आ रहा है और ख़ास आदमी भी । आम आदमी के लिए यहां जितने इंतजाम हैं उससे कहीं ज्यादा और बेहतर इंतजाम ख़ास आदमी के लिए हैं। अखाड़ों में भी देशी भक्तों की वजाय विदेशी भक्तों की पूछ-परख है। कोई यहाँ केवल पुण्य प्राप्ति के लिए आ रहा है तो कोई अपने घोषित और अघोषित पाप धोने के लिए। गंगा को मैला सभी कर रहे हैं। दुनिया में कौन सी ऐसी पुण्य सलिला है जो एक दिन में दो से ढाई करोड़ से ज्यादा आबादी का पाप धो दे ? महाकुम्भ को लेकर जितने सवाल मेरे मन में पैदा हो रहे हैं उतने सवाल आपके मन में शायद पैदा न हों क्योंकि आप इस महा आयोजन के प्रति केवल शृद्धा से भरे हैं। शृद्धा से मै भी भरा हू। किन्तु मै प्रश्नाकुल हूँ। हमारा मीडिया प्रश्नाकुल नहीं है ।हमारा मीडिया,हमारी सरकार,हमारी जनता इस समय भाव-विभोर है । आल्हादित है । उसे महाकुम्भ के सामने इस समय न दिल्ली के षणयंत्र दिख रहे हैं और न किसानों का आंदोलन। उसे न डालर के मुकाबले भारतीय रूपये की कुगति दिख रही है और न भारत की सम्प्रभुता पर मंडराते खतरे। पूरा देश इस समय धर्म की हिलोरें ले रहा है । केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि अब तो बंगाल की सरकार भी धर्म का धंधा करने पर उत्तर आयी है। बंगाल की सरकार ने महाकुम्भ के जबाब में गंगासागर स्नान के लिए दो-दो पेज के विज्ञापनों से देश के सभी भाषाओँ के अखबार पाट दिए हैं। बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी को लगता है कि एक अकेले उत्तर प्रदेश के मुख्य्मंत्री योगी आदित्यनाथ धर्म के ठेकेदार क्यों बने रहें ? बहरहाल यदि आपको मेरी बात पर भरोसा है तो निश्चिन्त हो जाइये हिन्दू धर्म को लेकर। हिन्दू धर्म को देश में कोई खतरा नहीं है है । खतरे में हैं तो केवल राजनीतिक दल और उनके नेता और ये ही देश के लिए सबसे बड़े खतरा हैं। लेकिन मुश्किल ये है कि न आप नेताओं से बच सकते हैं और न नाग-धड़ंग बाबाओं से। बाबा जहाँ त्याग की प्रतिमूर्ति हैं,वहीं उनके महंत और महा-मांडलेश्वर तथा नेता लूट-खसोट और भ्र्ष्टाचार की प्रतिमूर्ति।कुल मिलाकर हर-हर महादेव बोलिये और अपने ज्ञानचक्षु खोलिये। .../ 15 जनवरी /2025