17 लाख करोड़ सरकार ने जीएसटी में जनता से वसूला देश के शेयर बाजार में पिछले 109 दिनों से जारी गिरावट ने निवेशकों को भारी आर्थिक नुकसान पहुंचाया है। निवेशकों को 26 सितंबर 2024 के बाद से अब तक बाजार से लगभग 61 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। मिड कैप और स्मॉल कैप शेयरों में 13 से 14 फीसदी की गिरावट ने शेयर बाजार के निवेशकों में हाहाकार मचा दिया है। गरीब और मध्यम वर्ग से सरकार ने टैक्स संग्रह में 17 लाख करोड़ रुपये का टैक्स वसूल करके नया कीर्तिमान स्थापित किया है। जीएसटी का यह टेक्स पिछले वर्ष की तुलना में 15.9 प्रतिशत अधिक है। जीएसटी टैक्स में करीब 65 फ़ीसदी हिस्सेदारी सबसे गरीब और मध्यवर्ग की होती है। भारतीय शेयर बाजार में गिरावट के प्रमुख कारण वैश्विक और घरेलू घटनाक्रम है। अमेरिका में मजबूत जॉब डेटा ने फेड की रेट कट की उम्मीदों को कमजोर किया है, जिससे वैश्विक बाजारों पर दबाव बढ़ा है। भारत में इसका असर सबसे ज्यादा हुआ है। इसके अतिरिक्त, रुपये में लगातार गिरावट के कारण शेयर बाजार में हाहाकार मच गया है। डॉलर के मुकाबले 83.2 से बढ़कर 13 जनवरी 2025 को 86.61 तक पहुंच गया है। कच्चे तेल और आयातित वस्तुओं की कीमतों में रुपए के मुकाबले डॉलर के उछाल ने भारतीय बाजार में कंपनियों के लिए नई मुसीबत पैदा कर दी है। भारत में डॉलर के मुकाबले रुपया के कमजोर होने से महंगाई तीन से चार फीसदी तक बढ़ गई है। शेयर बाजार के विशेषज्ञों के अनुसार, म्यूचुअल फंड और पब्लिक निवेश में निवेशकों की हिस्सेदारी 27 फीसदी के आसपास है। 61 लाख करोड़ के नुकसान में लगभग 16.47 लाख करोड़ की हिस्सेदारी म्युचुअल फंड के निवेशकों की है। इससे स्पष्ट है कि जनता के मेहनत की कमाई शेयर बाजार में बैंक, वित्तीय संस्थानों, भारतीय जीवन बीमा निगम म्युचुअल फंड के माध्यम से जो शेयर बाजार में निवेश किया गया है, डूब रही है। इसके कारण आम और छोटे निवेशकों को हर तरह से पिछले कई महीनों से नुकसान उठाना पड़ रहा है। सरकार का टैक्स संग्रह लगातार बढ़ रहा है। जीएसटी के दायरे में सभी सेवाओं और वस्तुओं को शामिल किया गया है। इनकी टैक्स दरें भी पहले की तुलना में बढ़ा दी गई हैं। पिछले वर्ष 14.5 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले इस साल 17 लाख करोड़ रुपये का संग्रह जीएसटी में हुआ है। यह ऐसा टैक्स है जो गरीब से गरीब आदमी को भी चुकाना पड़ रहा है, जिसके कारण बाजार में महंगाई और टैक्स के कारण आम नागरिकों और मध्यम वर्ग के पास खर्च करने के लिए पैसे ही नहीं बचे हैं। सरकार बाजार को स्थिर रखने, महंगाई और टैक्स कम करने के लिए ठोस कदम नहीं उठा रही है, जिसके कारण शेयर बाजार और भारतीय अर्थव्यवस्था में लगातार नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह समय सरकार के लिए गंभीर रूप से आत्म-मंथन करने का है। घरेलू आर्थिक नीति निर्माण और बाजार की मांग और आपूर्ति पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया, तो निवेशकों का भरोसा शेयर बाजार में और भी कमजोर हो सकता है। शेयर बाजार में बिकवाली का दबाव बढ़ सकता है। रिजर्व बैंक और सरकार को डॉलर के मुकाबले रुपये को स्थिर करने, विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने, विदेशी निवेशकों का भारतीय शेयर बाजार में भरोसा बढ़ाने, तेल संकट और आयातित वस्तुओं के बढ़ते दाम से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। निवेशकों के लिए यह समय सतर्कता का है। बाजार की मौजूदा स्थिति से साफ है, सही जानकारी और विवेकपूर्ण निर्णय से निवेशक इस संकट से बाहर निकल सकते हैं। शेयर बाजार में जिस तरह की अफरा तफरी मची हुई है, इसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़ी तेजी के साथ पड़ रहा है। अर्थ शास्त्रियों का कहना है, जिस तरह से मार्केट में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है, महंगाई और बढ़ते टैक्स के कारण आम आदमी और मध्यम वर्ग का जीना बड़ा मुश्किल हो गया है। पिछले एक दशक में लोगों की खर्च के मुकाबले आय नहीं बढी है। खर्च लगातार बढ़ते चले जा रहे हैं। जिसके कारण आम आदमी की पहले बचत खत्म हुई, अब वह कर्जदार हो गया है। अब गरीब और मध्यम वर्ग को कर्ज मिलना भी बंद हो गया है, जिसके कारण बाजार में मांग तेजी के साथ कम हो रही है। वर्तमान स्थिति में भारतीय अर्थव्यवस्था उलटी दिशा में दौड़ने लगी है। सरकार ने समय रहते आर्थिक नीतियों में बदलाव नहीं किया। टैक्स को कम नहीं किया। शेयर बाजार की गिरावट को नहीं रोका, डॉलर के मुकाबले रुपए की गिरती हुई कीमतों को नहीं रोका, तो जो स्थिति 2008 में अमेरिका की हुई थी वही स्थिति अब भारत में भी आ सकती है। सरकार को समय रहते हुए इस पर ध्यान देने की जरूरत है। रिजर्व बैंक जैसे महत्वपूर्ण संस्थान में अर्थशास्त्रियों की नियुक्ति करना होगी सेबी में ऐसे लोगों की नियुक्ति करनी होगी जिसके कारण विदेशी निवेशकों का शेयर बाजार पर विश्वास बढ़े। नीति आयोग में अर्थ विशेषज्ञों को लाना होगा। सरकार को अर्थ विशेषज्ञों की सलाह माननी होगी। यदि ऐसा नहीं हुआ तो भारतीय अर्थव्यवस्था का भगवान ही मालिक है। एसजे/ 14 जनवरी /2025