लेख
14-Jan-2025
...


(सड़क सुरक्षा सप्ताह 11 जनवरी से 17 जनवरी 2025 ) बेशक प्रतिवर्ष की तरह 11 जनवरी2025से 17 जनवरी 2025 तक पूरे भारतवर्ष में सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया जा रहा है ऐसे आयोजनों पऱ करोड़ों रुपया खर्च किया जा रहा है सेमिनार लगाए जा रहे हैं और कार्यक्रम किये जा रहे हैं l यातायात के प्रति लोगों को जागरूक किया जा रहा है लेकिन सड़क हादसे कम नहीं हो रहे हैं l सड़क हादसे अभिशाप बनते जा रहे हैं lमानव जीवन अनमोल है। देश के नागरिको को यातायात के नियमों का पालन करना चाहिए ताकि सड़क हादसों पर रोक लग सके। सड़क सुरक्षा के ऐसे आयोजन औपचारिकता भर रह गए हैं। प्रतिवर्ष सड़क सुरक्षा हेतू करोडों रुपया बहाया जाता है मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात ही निकलता है अगर सही तरीके से पैसा खर्चा किया जाए तो इन हादसो पर विराम लग सकता है मगर ऐसा नहीं हो रहा है। हर वर्ष लाखों लोग मारे जा रहे है। प्रतिवर्ष डेढ लाख लोग सड़क हादसों में मारे जाते है। नववर्ष 2025 के पहले सप्ताह से ही लोग सड़क हादसों में मारे जा रहें है। देश में हर रोज इतने भीषण हादसे हो रहे है कि पूरे के पूरे परिवार मौत की नीद सो रहे हैं। कोहरे के कारण हजारों सड़क हादसे हो रहे है प्रतिदिन लोग मारे जा रहे है। यातायात के नियमों का पालन न करने पर ही इन हादसों में निरंतर वृद्वि हो रही है। क्योकि प्रशासन द्वारा लोगों को इन सात दिनों में यातायात नियमों के बारे में बताया जाता है फिर पूरा वर्ष लोग अपनी मनमानी करते है और यातयात नियमों का उल्लंघन करते है ओैेर मौत के मुंह में समाते जा रहे है। लापरवाही से सड़कें रक्तरंजित हो रही है। चिराग बूझ रहें हैं। बच्चे अनाथ हो रहे हैं। आज युवा लापरवाही के कारण जान गंवा रहे है। युवा देश के कर्णधार है जो देश का भविष्य है। प्रतिवर्ष लाखों युवा हादसों में बेमौत मारे जा रहे है। इकलौते चिराग अस्त हो रहे है। कोखें उजड़ रही है। माताओं व बहनों का सिंदूर मिट रहर हेैं। बच्चे अनाथ हो रहे है। युवाओं को जागरुक करना होगा क्योकि युवा ही विकराल हो रही सड़क हादसों की समस्या को रोक सकते है। लाॅकडाउन में सड़क हादसों पर लगाम लग गई थी। सड़क सुरक्षा सप्ताह पर लाखों रुपया बहाया जाता है मगर फिर भी सुधार नहीं होता। जब तक लोग यातायात के नियमों का उल्लधन करते रहेंगे तब तक इन हादसों में लोग बेंमौत मरतें रहेंगंे। देश में जब 22 मार्च 2020 को जब लाॅकडाउन लगा था तब हादसे पूरी तरह रुक गए थे। लाॅकडाउन के खुलते ही सड़क हादसों में अप्रत्याशित वृद्वि हो गई। कोरोना महामारी में हादसे कम हो गए थे। लाॅकडाउन में जगली जानवर सड़को पर विचरण करते थे। परिवहन पूरी तरह बंद था। प्रदूषण भी शून्य हो गया था। साल 2020 के अप्रैल व मई माह में यातायात के साधन बंद हो गए थे। जून माह में ज्यों ही लाॅकडाउन खुल गया था तो फिर से करोडों वाहन सड़को पर दौड़ पड़े। जनवरी 2025 से ही सड़क हादसों की रफतार बढ़ती जा रही है । साल 2024 में भी सड़क हादसों का सिलसिला पूरी साल अनवरत चलता रहा था और लोग लाखो लोग हादसों का शिकार होते रहे थे। देश के सैंकडों सैनिक भी सड़क हादसों में शहीद हो गए थे। हजारों लोग बेमौत मारे जा रहे है। प्रतिदिन हो रही दुर्घटनाओं में हजारों लोग अपंग हो गए जो ताउम्र हादसों का दंश झेलते रहेगंे। देश में हर चार मिनट में एक व्यक्ति सड़क हादसे में मारा जाता है। प्रतिदिन देश की सडकें रक्तरजित हो रही है नौजवानों से लेकर बुजुर्ग काल का ग्रास बन रहे हैं। आंकडें बताते है कि सड़क दुर्घटनाओं में भारत अन्य देशों से शीर्ष पर हैं। शराब पीकर बाहन चलाना तथा चलते वाहनों में मोबाइल का प्रयोग ही हादसों का मुख्य कारण माना जा रहा है। इसके कारण ही लाखो लोग सड़क हादसों में मौत का शिकार हुए। 2025 में भी सडक हादसे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं तथा प्रतिदिन दुर्घटनाओं का आंकड़ा बढता ही जा रहा है इसे सरकारों की लापरवाहीे की संज्ञा देना गलत नहीं होगा। ज्यादातर सड़क हादसे सर्दियों में होते है। लापरवाही के कारण हजारों सड़क हादसे हो रहे है सडक हादसे अभिशाप बनते जा रहे हैं। धंुध के कारण आपसी टक्कर में दुर्घटनाएं होती हैं। देश के प्रत्येक राज्यों में हादसों की दर बढती जा रही है दुर्घटना के बाद मुआवजे की राशि बांटने में व समाचार पत्रों में सुखिर्यों में रहने में प्रशासन व नेता लोग आगे रहते हैं नेताओं द्वारा घड़ियाली आंसू बहाए जातें है। सड़क हादसों को रोकने के लिए एक नीति बनानी होगी। जागरुकता अभियान चलाने होगें। देश की सड़को पर लाशों के चिथड़े बिखर रहे हैं। पंजाब, दिल्ली व उतरप्रदेश व हिमाचल प्रदेश में धूंध के कारण दर्जनों हादसों में सैकड़ों लोग मारे जा रहे हैं। मगर राज्यांे की सरकारों को इससे कोई सरोकार नहीं है। देश के प्रत्येक राज्यों में हादसों की दर बढती जा रही है दुर्घटना के बाद मुआवजे की राशि बांटने में व समाचार पत्रों में सुखिर्यों में रहने में प्रशासन व नेता लोग आगे रहते हैं नेताओं द्वारा घड़ियाली आंसू बहाए जातें है। सड़क हादसों को रोकने के लिए एक नीति बनानी होगी। जागरुकता अभियान चलाने होगें। सरकारों को लोगों को यातयात नियमों से संबधित शिविरों का आयोजन करना चाहिए। आज करोडों के हिसाब से वाहन पंजीकृत है मगर सही ढंग से वाहन चलाने वालो की संख्या कम है क्योकि आधे से ज्यादा लोगों को यातयात के नियमों का ज्ञान तक नहीं होता। पुलिस प्रशासन चालान काटकर अपना कर्तव्य निभा रहे है मगर चालान इसका हल नहीं है इसका स्थायी समाधान ढूंढना होगा। बिना हैलमैट के नाबालिग से लेकर अधेड़ उम्र के लोग वाहनो को हवा में चलाते है और दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे हैं। जानबूझकर व नशे की हालत में दुर्घटना करने वाले चालकों के लाईसैस रदद करने चाहिए। ज्यादातर हादसे में नाबालिग चालक ही मारे जाते हैं। प्रशासन की लापरवाही के कारण भी इसमें साफ झलकती है आज ज्यादातर युवा व लोग शराब पीकर व अन्य प्रकार का नशा करके वाहन चलाते है नतीजन खुद ही मौत को दावत देते हैं भले ही पुलिस यन्त्रों के माध्यम से शराब पीकर वाहन चलाने वालों पर शिकंजा कस रही है मगर फिर भी लोग नियमों का उल्लघन करने से बाज नहीं आ रहे हैं। राज्यों की सरकारों द्वारा पुलिस को दी गई हाईवे पैट्रोलिंग की गाड़ियां भी यातायात को कम करने में नाकाम साबित हो रही हैं। बढती सड़क दुर्घटनाओें के अनेक कारण है सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि 80 प्रतिशत हादसे मानवीय लापरवाही के कारण होते हैं। लापरवाह लोग सीट बैल्ट तक नहीं लगाते और तेज रफतार में वाहन चलाते हैं। देश में सड़क हादसों में स्कूली बच्चों के मारे जाने के हादसे भी समय-समय पर होते रहते हैं मगर कुछ दिन चैक रखा जाता है फिर वही परिपाटी चलती रहती है। जबकि होना तो यह चाहिए कि इन लापरवाह चालको को सजा देनी चाहिए ताकि मासूम बेमोत न मारे जा सके। अक्सर देखा गया है कि वाहन चालकों के पास प्राथमिक चिकित्सा बाकस तक नहीं होतें ताकि आपातकालिन स्थिती में प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध करवाई जा सके । प्रत्येक साल नवरात्रों में श्रध्दालू मंदिरों में ट्रको में जाते है और गाड़ियां दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है तथा मारे जाते हैं। ओबरलोडिग से भी ज्यादातर हादसे होते हैं। सरकार को इन हादसों से सबक लेना चाहिए और व्यवस्था की खामियों को दूर करना चाहिए। सरकारों को अपना दायित्व निभाना चाहिए ताकि सड़क दादसों पर पूरी तरह रोक लग सके। सडक हादसे अभिशाप बनते जा रहे हैं। बेलगाम हो रहे यातायात पर लगाम लगाना सरकार व प्रशासन का कर्तव्य है लोगों को भी इसमें सहयोग करना होगा तभी इस समस्या का स्थायी हल हो सकता है यदि लोग सही तरीके से यातायात नियमों का पालन करते है तो सड़को पर हो रहे मौत के तांडव को रोका जा सकता हैकेन्द्र सरकार को इस पर गौर करना होगा तथा देश में बढ रही सड़क दुर्घटनाओ पर रोक के लिए कारगर कदम उठाने होगें नही ंतो देश के प्रत्येक महानगरों व शहरों से लेकर गांवों तक हर रोज लाशें बिछती रहेगी लोग मरते रहेंगें। दुर्घटनाओं का कहर बरपता रहेगा। यदि सरकारे ऐसे ही सोती रहेगी तो देश की सड़के खून से लाल होती रहेगी। मावन जीवन को बचाना होगा क्योकि मानव जीवन दुर्लभ है। तभी सड़क सुरक्षा सप्ताह की सार्थकता होगी। ईएमएस / 14 जनवरी 25