भारत त्योहारों का देश है अनोखा अति मतवाला। पग-पग पर यह तो नित खुशियां बिखेरने वाला।। रौनक है,नाच-गान और मस्तियों के मेले हैं। सारे उमंग में भरे हैं,कोई भी यहां नहीं अकेले हैं।। कहीं सूर्य नारायण के उत्तरायण होने का पर्व है। तो कहीं मतवाले पोंगल पर हो रहा सबको गर्व है।। कहीं लोहड़ी का हो रहा सच में व्यापक सम्मान है। तो कहीं नदी स्नान से पावनता की बढ़ी आन है।। संक्रांति सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का उत्सव है। तो भांगड़े की तान पर थिरकता हुआ मानव है।। खिचड़ी का स्वाद है,तो तिली के लड्डू का जलवा है। बिखर रहा भाईचारा,प्रेम,नहीं किसी तरह का बल्ला है।। आकाश में छाई है आकर्षक पतंगों की निराली छटा। नदियों के किनारे लगे झूले,भरे मेरे,है सुंदर घटा।। दान-पुण्य के प्रति व्यापक अनुराग पल रहा है। जो है उल्लास से दूर वह आँखों को मल रहा है।। ईएमएस/प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे /13जनवरी2025