भारत की वर्तमान आर्थिक स्थिति कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रही है। विदेशी निवेशक (एफआईआई और एफडीआई) बड़ी मात्रा में भारतीय बाजार से धन निकाल रहे हैं। पिछले केवल एक सप्ताह में 54,000 करोड़ रुपये का निवेश विदेशी निवेशकों ने निकाल लिया है। शेयर बाजार की अनिश्चितता से विदेशी निवेशकों का शेयर बाजार को लेकर डर के कारण भगदड़ की स्थिति को दर्शा रहा है। इस आर्थिक अस्थिरता का एक प्रमुख कारण अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद अमेरिका की आर्थिक नीतियों के बदलाव से देखा जा रहा है। डोनाल्ड ट्रंप के भारत विरोधी रुख और अप्रवासियों को लेकर कड़े फैसलों से भारतीय उत्पादों और रोजगार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। इसके अतिरिक्त, भारत में गिरती जीडीपी, महंगाई की वृद्धि दर, डॉलर के मुकाबले रुपये का लगातार अवमूल्यन जो 86.31 पर पहुंच गया है। सेबी की कार्यप्रणाली ने देश-विदेशी निवेशकों की चिंताओं को बढ़ा दिया है। भारत के घरेलू मोर्चे पर, ऑटोमोबाइल, रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में मांग की कमी देखने को मिल रही है। प्राकृतिक गैस की खपत में गिरावट,उत्पादन और लॉजिस्टिक्स के कमजोर होने के संकेत मिलने से बाजार में आर्थिक मंदी देखी जा रही है। भारत में बढ़ते कर्ज, मांग में कमी, भारतीय कंपनियों और वित्तीय संस्थानो के प्रति बढ़ते अविश्वास से भारतीय शेयर बाजार और भारतीय अर्थव्यवस्था मे बड़ी घबराहट फैल रही है। भारत में पिछले कई वर्षों में जिस तरह से मध्यम और निम्न वर्ग पर टेक्स बढ़ाये जा रहे हैं। उससे आम आदमी कर्ज का शिकार हो गया है। उसकी क्रय क्षमता पहिले की तुलना में कम हो गई है। सरकार की टैक्स नीतियों की आशंका ने देसी और विदेशी निवेशकों को शेयर बाजार में निवेश करने से डरा दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रिस्क-टेकिंग बयान और सरकार की अप्रत्याशित नीतियां ने निवेशकों की चिताओं को बढ़ा दिया है। भारत सरकार आर्थिक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करने के स्थान पर राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रही है। जिस तरह से डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत लगातार गिरती जा रही है। उसने विदेशी निवेशकों की चिंता को बढ़ा दिया है। भारत का निर्यात व्यापार घट रहा है। वहीं आयातित वस्तुओं की कीमत बढ़ती चली जा रही है। इसका असर बाजार की मांग पर पड़ रहा है। आर्थिक चुनौतियों के इस दौर में सभी की निगाहें आगामी बजट और सरकार की नीतियों पर टिकी हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारों पर जिस तरह से देसी और विदेशी कर्ज बढा है। बजट का एक बड़ा हिस्सा कर्ज और ब्याज की अदायगी के साथ-साथ लोक लुभावन योजनाओं में खर्च किया जा रहा है। 2017 के बाद से लगातार मध्यम वर्ग और गरीब वर्ग पर जीएसटी के माध्यम से प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष करों का बोझ बढ़ाया गया है। सरकार की टैक्स से आय हर साल बढ़ती जा रही है। उसके बाद भी सरकार का खर्च पूरा नहीं हो पा रहा है। केंद्र एवं राज्य सरकारें लगातार कर्ज लेकर खर्च पूरा कर रही हैं। भारत के गरीब और मध्यम वर्ग के ऊपर कर्ज बढ़ रहा है। बेरोजगारी बढ रही है। खर्च की तुलना में आय कम होती जा रही है। सरकार और सेबी द्वारा जो आंकड़े, आर्थिक विकास एवं कंपनियों के जारी किये जा रहे हैं। उस पर निवेशक विश्वास नही कर रहे हैं। ना ही जनता को विश्वास हो पा रहा है। जिसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था बद से बदहाल स्थिति में पहुंच रही है। भारतीय रिजर्व बैंक में वित्त विशेषज्ञ के स्थान पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को गवर्नर पद पर नियुक्त किये जाने से आर्थिक स्थिति और भी गड़बड़ा गई है। नीति आयोग के सदस्यों पर सरकार के इशारे पर काम करने से भारत की आर्थिक स्थिति दिनों-दिन खराब होती जा रही है। शेयर बाजार से विदेशी निवेशक तेजी के साथ निवेश निकालकर भाग रहे हैं। पिछले वर्षों मे भारतीय करोड़पति और अरबपति भारत से पैसा निकालकर विदेश में निवेश कर विदेशी नागरिकता ले रहे हैं। जिसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था अपने सबसे बुरे दौर पर पहुंच गई है। अर्थशास्त्रियों का मानना है,जिस तरह से सरकारी खर्च को बढ़ाया जा रहा है। टैक्स की दरें भारत में सबसे ऊंची है। कॉरर्पोरेट से कम टैक्स वसूल किया जा रहा है। कारपोरेट की आय चार गुना पिछले 10 वर्षों में बढ़ गई है। वहीं गरीब एवं मध्यवर्ग की बचत पिछले 10 वर्षों में सबसे कम हो गई है। गरीब एवं मध्यम वर्ग पर कर्ज का बोझ बढ़ गया है। जिस तरीके से शेयर बाजार में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। उसने पूरे अर्थतंत्र की जड़ों को हिलाकर रख दिया है। रही सही कसर अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पूरी कर रहे हैं। शेयर बाजार में डर एवं भय का वातावरण बन गया है। शेयर बाजार की गिरावट का असर भारत के बैंकों एवं अन्य वित्तीय संस्थानों में पड रहा है। अर्थ शास्त्रियों का कहना है। भारत के लिए यह सबसे बड़ी चिंता का विषय है। सरकार ने समय रहते यदि ठोस कदम नहीं उठाए। तो भारत की हालत भी पाकिस्तान और श्रीलंका जैसी हो सकती है। ईएमएस / 13 जनवरी 25