- गृहस्थ से साधक बनने की अनूठी यात्रा - दिनचर्या: साधना और तप का संगम - पूरे देश से पहुंच रहे हैं श्रद्धालु प्रयागराज (ईएमएस)। महाकुंभ का पावन अवसर श्रद्धा, तप और भक्ति का संगम है। हर 12 साल में आयोजित होने वाले इस दिव्य आयोजन में लाखों कल्पवासी माघ के पूरे महीने प्रयागराज की पवित्र धरती पर अपने जीवन को साधना, संयम और तपस्या के रंग में रंगते हैं। इस बार 13 जनवरी से शुरू हुए महाकुंभ में बड़ी संख्या में कल्पवासी महाकुंभ नगर पहुंच रहे हैं। ये साधक अपनी गृहस्थी को समेटकर गाड़ियों में जरूरत का सामान लादे यहां तपस्या के लिए आते हैं और तंबू में रहते हुए एक अलग ही जीवन जीते हैं। कल्पवासियों के जीवन की शुरुआत घर से ही तपस्या की तैयारी के साथ होती है। वे ट्रक, ट्रैक्टर, पिकअप और अन्य वाहनों में अपनी आवश्यक वस्तुएं जैसे बर्तन, बिस्तर, लकड़ी, राशन, और पूजा सामग्री लेकर प्रयागराज पहुंचते हैं। महाकुंभ नगर में अपने तंबू लगाकर वे 45 दिनों तक रहने की तैयारी करते हैं। इस दौरान वे अपनी पूरी दिनचर्या को साधना और संयम के नियमों के अनुसार ढाल लेते हैं। कल्पवासी सुबह सूर्योदय से पहले गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी संगम में स्नान करके अपने दिन की शुरुआत करते हैं। इसके बाद वे ध्यान, भजन और प्रवचन में समय बिताते हैं। एक समय भोजन करने वाले ये साधक साधारण आहार लेते हैं और अधिकतर समय भक्ति और साधना में लीन रहते हैं। उनकी दिनचर्या में कथा और सत्संग सुनना, दान-पुण्य करना और धार्मिक अनुष्ठान शामिल होते हैं। रात में तंबू में साधारण बिस्तर पर सोकर वे अगले दिन फिर से साधना के लिए तैयार होते हैं। माघ मास में कल्पवास का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दौरान संगम में स्नान और तपस्या करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कल्पवास से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस साधना से आत्मशुद्धि होती है और व्यक्ति ईश्वर से जुड़ने का अनुभव करता है। महाकुंभ में कल्पवास करने वाले श्रद्धालु पूरे भारत से आते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और दक्षिण भारत तक से श्रद्धालु इस पावन अवसर पर प्रयागराज पहुंच रहे हैं। उनके वाहनों में लदे सामान से यह साफ झलकता है कि वे अपनी पूरी गृहस्थी यहां समेटकर लाए हैं। महाकुंभ केवल धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा आध्यात्मिक अवसर है जो श्रद्धालुओं को ऊर्जा और नई दिशा प्रदान करता है। यहां कल्पवासियों को आत्मचिंतन और साधना के लिए जो माहौल मिलता है, वह उन्हें ईश्वर के और करीब ले जाता है। महाकुंभ में कल्पवास केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह संयम, त्याग और तपस्या का जीवंत उदाहरण है। साधारण जीवन जीते हुए, केवल एक बार भोजन करने और भक्ति में समय बिताने वाले ये साधक जीवन को एक नई दृष्टि से देखना सिखाते हैं। उनके जीवन का यह कठिन तप समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बनता है। महाकुंभ का यह आयोजन सिर्फ एक धार्मिक मेला नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और अध्यात्म की गहराई का परिचायक है।