-- सांस्कृतिक एकता और आस्था का प्रतीक महाकुंभ मेला संस्कृति, धर्म, परंपराओं, सांस्कृतिक एकता और आस्था का प्रतीक है। महाकुंभ का पहला ऐतिहासिक उल्लेख चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृतांतों में मिलता है। महाकुंभ मेले को यूनेस्को द्वारा मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल किया गया है। यह आयोजन भारत की विविधता, आस्था और संस्कृति को वैश्विक स्तर पर पेश करता है। मुगल काल के दौरान बादशाह अकबर के ज़माने में भी महाकुंभ के दौरान खास इंतेजामात किए जाते थे। महाकुंभ मेला हर 12 साल में एक बार चार अलग-अलग स्थानों पर आयोजित किया जाता है, हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), उज्जैन और नासिक। वर्ष 2025 का महाकुंभ प्रयागराज में आयोजित होने वाला है, जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों का संगम होता है। महाकुंभ मेले का इतिहास हजारों साल पुराना है। यह मेला वैदिक काल से चला आ रहा है, जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था। समुद्र मंथन से अमृत कलश निकला जिसे पाने के लिए संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों पर गिरीं, हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक। यही स्थान महाकुंभ मेले के आयोजन के केंद्र बन गए। महाकुंभ मेला तब आयोजित किया जाता है जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रह विशेष खगोलीय स्थिति में होते हैं। इस विशेष समय पर त्रिवेणी संगम में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाकुंभ, कुंभ और अर्धकुंभ के बारे में भी जानना जरूरी है। कुंभ मेला हर तीन साल में एक बार आयोजित होता है। अर्ध कुंभ मेला छ साल में एक बार और पूर्ण कुंभ मेला 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है। 12 कुंभ मेला पूर्ण होने पर एक महाकुंभ मेले का आयोजन होता है। इससे पहले महाकुंभ प्रयागराज में वर्ष 2013 में आयोजित हुआ था। प्रयागराज मंे महाकुंभ मेला 13 जनवरी 2025 से 26 फरवरी 2025 तक आयोजित होने जा रहा है। प्रयागराज को तीर्थराज के नाम से भी जाना जाता है। प्रयागराज महाकुंभ और भी खास होगा क्योंकि यह 4000 हेक्टेयर में फैला हुआ है। प्रयागराज में 2019 कुंभ मेले में क्षेत्रफल 3200 हेक्टेयर था जो 2025 में बढ़ गया है। खास बात ये है कि महाकुंभ इतना बड़ा आयोजन है कि अंतरिक्ष से भी श्रद्धालुओं की भीड़ को देखा जा सकता है। इस कुंभ मेले में 40 करोड़ श्रद्धालुओं के शामिल होने की उम्मीद है। महाकुंभ में किन्नर अखाड़े के अनुयायी भी खास आकर्षण हैं। इसके अलावा दांडी संन्यासी, अखाड़ों के महामंडलेश्वर, योगी और वैष्णव संत भी महाकुंभ में शामिल हो रहे हैं। कल्पवासी पूजा एक बहुत ही अनोखा समारोह है जिसमें कल्पवासी पवित्र भजन गाते हैं और रेत में धूनी या अगरबत्ती जलाते हैं। महाकुंभ में 13 अखाड़े भाग ले रहे हैं और उनके करीब 15 लाख अनुयायी कुंभ मेला मैदान में तंबुओं में डेरा डाल चुके हैं। महाकुंभ में अक्षयवट वृक्ष भी आस्था का केन्द्र बना हुआ है। ये एक बहुत पुराना अंजीर का पेड़ है जो प्रयागराज का मुख्य आकर्षण भी है। यह वृक्ष हिंदुओं के लिए अत्यंत पवित्र वृक्ष है और इसका उल्लेख हिंदू धर्मग्रंथों में भी मिलता है। ऋषि भारद्वाज का आश्रम भी एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण हैं। इसके अलावा संगम स्थल, संकटमोचन हनुमान मंदिर, वेणी माधव मंदिर, तक्षकेश्वर नाथ मंदिर, शिवकुटी, नारायण आश्रम, पत्थर गिरजाघर, प्रयागराज किला, शंकर विमान मंडपम, ललितादेवी मंदिर, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, गंगा पुस्तकालय, दशाश्वमेध मंदिर, श्री अखिलेश्वर महादेव मंदिर, नागवासुकी मंदिर, अलोपी देवी मंदिर, खुसरोबाग, कल्याणी देवी, काली बाड़ी, मिंटो पार्क, सार्वजनिक पुस्तकालय, आनंद भवन और अल्फ्रेड पार्क भी यहां आने वाले भक्तों और पर्यटकों के लिए आकषर्ण का केन्द्र होते हैं। महाकुंभ मेला 2025 के लोगो पर टैगलाइन सर्वसिद्धिप्रद कुंभ है। कुंभ का आयोजन हर 12 साल में भारत के 4 धार्मिक शहरों हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में होता है। दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े धार्मिक आयोजन कुंभ का इतिहास सदियों पुराना है। मुगल काल में भी अकबर के समय इस आयोजन के लिए खास इंतेजामात किए जाते थे। इतिहासकार डॉ हेरम्ब चतुर्वेदी अपनी किताब कुंभ-ऐतिसाहिक वांग्मय में मुगल काल में हुए कुंभ के आयोजन का जिक्र किया है। उनके अनुसार बादशाह अकबर के शासनकाल में साल 1589 में कुंभ के रखरखाव पर 19 हजार से ज्यादा मुगलियां सिक्के खर्च किए गए थे। इसी साल इस आयोजन से 41 हजार सिक्कों की आमदनी हुई थी। बादशाह अकबर ने कुंभ मेले की व्यवस्था की देखरेख के लिए दो अफसर भी नियुक्त किए थे। एक अफसर को मीर ए बहर कहा जाता था और दूसरे अफसर को मुस्द्दी कहा जाता था। इन अफसरों का काम भक्तों के लिए बुनियादी सहुलियतें मुहैया कराना, कुंभ के दौरान साफ सफाई करवाना, घाटों की साफ सफाई और आने वाले लोगों को सुरक्षा उपलब्ध करवाना था। यहां ये बताना लाजमी होगा कि इस बार भी महाकुंभ से सरकार को खासी आमदनी होने की उम्मीद है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाकुंभ की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव को लेकर बड़ा दावा किया है। सीएम ने कहा कि कोई पर्यटक या श्रद्धालु प्रदेश में आता है तो ट्रेन, बस, टैक्सी या प्लेन का उपयोग करता है। वह होटल, टेंट या धर्मशाला में रुकता है। होटल, रेस्टोरेंट या ढाबे पर खाना खाता है। कुछ खरीदारी भी करता है। इस तरह एक व्यक्ति औसतन 5000 रुपये खर्च करता है। महाकुंभ मेला में 40 करोड़ लोगों के आने का अनुमान है। योगी ने इस आधार पर कहा कि यह आयोजन 2 लाख करोड़ का योगदान देश और प्रदेश की अर्थव्यवस्था में देगा। ये तो सभी जानते हैं कि चाहे सभी नदियों का कहीं ना कहीं संगम होता है। इन सब में त्रिवेणी संगम का खासा महत्व है। त्रिवेणी संगम में तीन नदियां गंगा, जमुना और सरस्वती आपस में मिलती हैं। इन तीनों नदियों का मिलन प्रयागराज के संगम में होता है, लिहाजा प्रयागराज का तीर्थस्थल के रूप में विशेष महत्व है। हालांकि प्रयागराज के संगम में गंगा और यमुना नदियां अलग दिखती हैं लेकिन सरस्वती अलग नहीं दिखती। वैसे सरस्वती नदी में भी उसमें मिली हुई होती है, सरस्वती को अदृश्य माना गया है इसलिए इसे त्रिवेणी कहा गया है। इसी तरह महाकंुभ, कुंभ और अर्धकुंभ आदि में साधु संत स्नान करते हैं। इनमें से कुछ विशेष तिथियों में शाही स्नान होते हैं। महाकुंभ और कुंभ के दौरान ग्रह और नक्षत्रों की विशेष या शुभ स्थिति पर किए जाने वाले स्नान शाही स्नान कहलाते हैं। शाही स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है ऐसी मान्यता है। महाकुंभ में अखाड़े आकर्षण का प्रमुख केंद्र होते हैं। इस दौरान अखाड़ों का पेशवाई और नगरप्रवेश होता है। अखाड़ों की शुरुआत आदि शंकराचार्य ने की थी। अभी कुल 13 अखाड़े हैं, जिन्हें तीन कैटेगरी शैव, वैष्णव और उदासीन में बांटा गया है। इन अखाड़ों के अंतर्गत कई उप-अखाड़े हैं। शैव अखाड़े मंे शैव संप्रदाय के कुल सात अखाड़े हैं। इनमें जूना, अग्नि, आव्हान, निरंजनी, आनंद, महानिर्वाणी और अटल अखाड़ा है। इनके अनुयायी भगवान शिव की पूजा करते हैं। वैष्णव अखाड़े में वैष्णव संप्रदाय के तीन अखाड़े हैं, जो भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा करते हैं। वैष्णवों में वैरागी, उदासीन, रामानंद अखाड़े हैं। उदासीन संप्रदाय के भी तीन अखाड़े हैं, इस अखाड़े की अनुयायी श्ॐश् की पूजा करते हैं। इनमें श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा, श्री पंचायती अखाड़ा और श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा शामिल है। बड़ा उदासी संप्रदाय सिख-साधुओं का एक सम्प्रदाय है। इसके संस्थापक गुरू नानक जी के पुत्र श्रीचंद थे। अखाड़ों के इतिहास से पता चलता है कि निर्मोही अखाड़े के साथ ही निर्वाणी और दिगंबर अखाड़ों का भी गठन किया गया था। इन अखाड़ों के गठन का श्रेय स्वामी बालानंदाचार्य को दिया जाता है। वह रामनंदीय संप्रदाय के शीर्ष आचार्य थे। श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा को शैव संप्रदाय का सबसे बड़ा अखाड़ा माना गया है। इसकी स्थापना उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में 1145 में हुई थी। इस अखाड़े के इष्ट देव शिव और रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं, इसका मुख्यालय वाराणसी में हैं। नागा साधुओं की सबसे ज्यादा तादाद इसी अखाड़े में है, इसमें लगभग पांच लाख नागा साधु और महामंडलेश्वर संन्यासी हैं। इस अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज हैं और अंतरराष्ट्रीय संरक्षक श्रीमहंत हरिगिरी हैं। जूना अखाड़े की पेशवाई में स्वर्ण रथ और हाथी भी नजर आते हैं। कुल मिलाकर, 6 हजार करोड़ से ज्यादा के खर्च पर हो रहे इस दिव्य और भव्य महाकुंभ को पूरी दुनिया देखेगी। ईएमएस / 12 जनवरी 25