-माला का अपमान होने पर ऋषि दुर्वासा ने इंद्र को दिया था श्राप प्रयागराज,(ईएमएस)। महाकुंभ 2025 13 जनवरी से प्रयागराज में शुरु होने जा रहा है। महाकुंभ में पौष पूर्णिमा से शुरु होने वाले दिव्य स्नान की परंपरा धर्म, अध्यात्म और पौराणिक कथाओं का अभिन्न हिस्सा है। महाकुंभ का आयोजन किसी वरदान का नहीं, बल्कि एक श्राप का परिणाम है? यह कथा देवताओं के अभिमान, ऋषि दुर्वासा के क्रोध और समुद्र मंथन की उस घटना से जुड़ी है, जिसने चार पवित्र स्थलों पर अमृत की स्थापना की। पुराणों के मुताबिक स्वर्ग का वातावरण युद्ध में विजय के बाद आनंद से भर गया था। देवताओं के अधिपति इंद्र, अपनी जीत और ऐश्वर्य के मद में, अपने कर्तव्यों को भूल गए थे। देवगुरु बृहस्पति और सप्तऋषि, इस स्थिति से चिंतित थे। इंद्र को उनके कर्तव्यों की याद दिलाने ऋषि दुर्वासा वहां गए। रास्ते में दुर्वासा ऋषि को देवर्षि नारद ने बैजयंती माला भेंट की, जिसे उन्होंने इंद्र को सौंपी, लेकिन इंद्र ने उस माला का उपहास उड़ाते हुए उसे ऐरावत के गले में डाल दी। ऐरावत ने माला को पैरों तले रौंद दिया। यह अपमान देखकर दुर्वासा ऋषि को गुस्सा आ गया और उन्होंने इंद्र को श्राप दिया कि उनका ऐश्वर्य और धन छिन जाएगा। ऋषि के श्राप के कारण लक्ष्मीजी सागर में समा गईं और स्वर्ग में गरीबी छा गई। दानवों के राजा बलि ने देवताओं को हराकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। विष्णुजी ने समुद्र मंथन का सुझाव दिया। समुद्र मंथन से अमृत कलश निकला, जिसे लेकर देवताओं और दानवों में छीना-झपटी होने लगी। इस संघर्ष में अमृत की बूंदें चार स्थानों पर गिरीं—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। इन्हीं स्थानों पर कुंभ का आयोजन किया जाता है। महाकुंभ का यह आयोजन न केवल आस्था और संस्कृति का संगम है, बल्कि यह नीति और नैतिकता की शिक्षा का प्रतीक भी है। कुंभ के स्नान की मान्यता है कि स्नान करने से पापों से मुक्ति दिलाने और आध्यात्मिक उत्थान का मार्ग प्रशस्त करता है। सिराज/ईएमएस 12 जनवरी 2025