लेख
12-Jan-2025
...


जहां एक ओर अमित शाह द्वारा लोकसभा में किए गए बाबासाहेब के घोर अपमान की सारे देश में तीव्र निंदा हो रही है, वहीं दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादी विचारक और चिंतक यह आख्यान सृजित करने में जुटे हुए हैं कि बाबसाहेब और सावरकर-आरएसएस तथा विशेषकर भाजपा में साम्यता थी (बलबीर पुंज एक्स परः द रिसरेस्क्शन ऑफ डॉ. अम्बेडकर)। वे बाबासाहेब अम्बेडकर (बीए) के विस्तृत रचना संसार में से चुनिंदा हिस्से, कुछ इधर से और कुछ उधर से, उठाकर ऐसी तस्वीर पेश करने का प्रयास कर रहे हैं कि बाबासाहेब हिंदुत्व की विचारधारा के प्रशसंक थे। वे अंबेडकर के इस कथन का हवाला देते हैं कि “स्वामी श्रद्धानंद अस्पृश्यों के सबसे संजीदा हितैषी थे”। वे इस बात को नजरअंदाज कर देते हैं कि स्वामी मुस्लिमों को हिंदू बनाने के ‘शुद्धिकरण’ के कार्य से जुड़े हुए थे। इससे मुस्लिम मौलवी नाराज थे। इस शुद्धि के बारे में अम्बेडकर का कहना था “यदि हिंदू समाज अपना अस्तित्व कायम रखना चाहता है, तो उसे अपनी संख्या बढ़ाने पर ध्यान देने के बजाए अपनी एकजुटता को मज़बूत करने का प्रयास करना चाहिए। और इसका मतलब है जाति का उन्मूलन। जाति के उन्मूलन से ही हिंदू संगठित हो सकते हैं और जब वे जाति के उन्मूलन के जरिए संगठित होंगे, तब शुद्धि की जरूरत ही नहीं रहेगी”। यह तबलीगी जमात की तंजीम के समानांतर और उसके विपरीत धारा थी, जो हिंदुओें का धर्मपरिवर्तन कर उन्हें मुसलमान बनाने के प्रयासों में जुटी थी। हालांकि श्रद्धानंद बाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए, लेकिन वे हिंदू संगठन से भी जुड़े हुए थे, जो हिंदू राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्ध हिंदू महासभा का हिस्सा था। कई नए-नए दावे किए जा रहे हैं जैसे अम्बेडकर और सावरकर एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यह सच है कि सावरकर ने पतित पावन मंदिर का निर्माण करवाया था जिसमें दलितों को आने की इजाजत थी। अम्बेडकर का मानना था कि यह एक ऐसा मंदिर बनकर रह जाएगा जिसमें सिर्फ दलित आएंगे। ‘बहिष्कृत भारत’ के 12 अप्रैल 1929 के अंक में प्रकाशित संपादकीय में जिक्र है कि अम्बेडकर ने शुरू से ही पतित पावन मंदिर के निर्माण का विरोध किया था। उनका मानना था कि ऐसे मंदिरों को बाद में अछूतों के मंदिरों के नाम से पुकारा जाने लगेगा। हालांकि अम्बेडकर ने सावरकर के प्रयासों की प्रशंसा की मगर उनका मानना था कि ऐसे प्रयास अप्रासंगिक हैं। इसी तरह की कुछ और बातें हिंदुत्ववादी विचारक कहते हैं। वे अम्बेडकर और कांग्रेस में मतभेदों का मुद्दा बढ़-चढ़कर उठाते हैं। उनका तर्क यह रहता है कि गांधी और पटेल की मृत्यु के बाद नेहरू निरंकुश हो गए और विपक्ष की उपेक्षा करने लगे। जैसा कि अमित शाह ने कहा कि अम्बेडकर ने नेहरूजी की मंत्रिपरिषद से इस्तीफा अनुच्छेद 370, विदेश नीति और अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग की स्थिति जैसे मुद्दों पर नेहरूजी से मतभेदों के कारण दिया। वास्तविकता यह है कि अम्बेडकर द्वारा मंत्रिपरिषद से इस्तीफा दिए जाने का सबसे बड़ा कारण था हिंदू कोड बिल के प्रति अपनाए जा रहे उपेक्षापूर्ण रवैये को लेकर उनकी निराशा। आरएसएस द्वारा इसका जबरदस्त विरोध किया जा रहा था और सभाएं आयोजित की जा रही थीं। उसके कार्यकर्ता संसद के समक्ष प्रदर्शन कर रहे थे। इसका शीर्ष था दिल्ली के रामलीला मैदान में 11 दिसंबर 1949 को किया गया आयोजन जिसमें नेहरू और अंबेडकर के पुतले जलाए गए। हिंदू कोड बिल का विरोध करते हुए आर्गनाईजर ने 7 दिसंबर 1949 के अंक में लिखा “हम हिंदू कोड बिल का विरोध करते हैं। हम इसका विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि यह एक अपमानजनक बिल है जो अनैतिक एवं विदेशी विचारों पर आधारित है। यह हिंदू कोड बिल नहीं है। इसमें हिंदू जैसा कुछ भी नहीं है”। आरएसएस के इस आक्रामक अभियान का नतीजा यह हुआ कि हिंदू कोड बिल को पारित करने में देरी हुई और इसके प्रावधानों को कमज़ोर कर दिया गया। यह बाबासाहेब के लिए अत्यंत पीड़ादायी क्षण था और इसी कारण उन्होंने इस्तीफा दिया। मनुस्मृति व चातुर्वर्ण्य ऐसे मुद्दे थे जिन पर अम्बेडकर एक ओर और सावरकर से लेकर भाजपा दूसरी ओर नजर आते हैं और दोनों पक्षों में गंभीर मतभेद हैं। जहां 25 दिसंबर 1927 को बाबासाहेब ने मनुस्मृति का दहन किया वहीं आरएसएस के द्वितीय सरसंघचालक एम। एस। गोलवलकर ने अपने लेखन में मनुस्मृति का स्तुतिगान किया। सावरकर चातुर्वर्ण्य के प्रति अपने समर्थन की चर्चा विस्तार से करते हैं और मनुस्मृति की प्रशंसा करते हैं। “मनुस्मृति वह शास्त्र है जो हिंदू राष्ट्र के लिए वेदों के बाद सबसे अधिक पूजनीय है और जो प्राचीनकाल से हमारी संस्कृति, रीति-रिवाजों, विचारों और क्रियाकलापों का आधार रहा है। इस पुस्तक ने सदियों से हमारे देश के आध्यात्मिक एवं दैवीय विकास कको संहिताबद्ध किया है। आज भी करोड़ों भारतीय मनुस्मृति पर आधारित नियमों का पालन करते हैं। आज मनुस्मृति हिंदुओं का विधिशास्त्र है। यह हमारा मूल आधार है”। और “भारत के नए संविधान के बारे में सबसे बुरी बात यह है कि उसमें कुछ भी भारतीय नहीं है। । । इसमें प्राचीन भारतीय विधि, संस्थानों, और शब्दावली का जरा सा भी जिक्र नहीं है”। अम्बेडकर और हिन्दुत्व विचारधारा के सबसे मुख्य मतभेदों को छिपाया जा रहा है। 13 अक्टूबर 1935 कों नासिक के निकट येओला में एक सभा को संबोधित करते हुए अम्बेडकर ने एक धमाकेदार बात कही, “मैं एक हिंदू के रूप में नहीं मरूंगा”। उनके अनुसार इस धर्म में स्वतंत्रता, करूणा और समानता के लिए कोई स्थान नहीं है। उनकी पुस्तक “थाट्स ऑन पाकिस्तान” के संशोधित संस्करण में वे इस्लामिक पाकिस्तान के निर्माण का विरोध इसलिए करते हैं क्योंकि इससे हिंदू राज या राष्ट्र का मार्ग प्रशस्त होगा और यह यहां की जनता के लिए एक बड़ी त्रासदी होगी। उनकी इस घोषणा के बाद उन पर सिक्ख या इस्लाम धर्म ग्रहण करने के लिए बहुत दबाव डाला गया। हिंदू महासभा के डॉ. मुंजे ने उनसे एक समझौता किया कि यदि वे इस्लाम धर्म ग्रहण नहीं करेंगे तो हिंदू महासभा उनके धर्मपरिवर्तन का विरोध नहीं करेगी। बाबासाहेब ने अपने गहन अध्ययन के आधार पर बौद्ध धर्म को चुना। आज भाजपा यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि वह बाबासाहेब की प्रतिमाओं की स्थापना कर, उनकी स्मृति में अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय बना कर व अन्य सांकेतिक कार्य करके वह उनका सम्मान कर रही है। ये सब पहचान से जुड़े मुद्दे हैं जबकि बाबासाहेब के मूल्यों की उपेक्षा की जा रही है। जब मंडल आयोग की रपट लागू की गई तब भाजपा कमंडल राजनीति पर उतर आई। जब आडवानी को उनकी रथयात्रा के दौरान (जो कमंडल राजनीति का हिस्सा थी) गिरफ्तार किया गया तब भाजपा, जो वी. पी. सिंह सरकार का समर्थन करने वाले दलों में से एक थी, ने अपना समर्थन वापिस ले लिया और वी. पी. सिंह की सरकार का पतन हो गया। कांग्रेस ने भी लोकसभा चुनाव में हिंदू महासभा की तरह अम्बेडकर का विरोध किया था। लेकिन वह कांग्रेस ही थी जिसने बाद में यह सुनिश्चित किया कि वे राज्यसभा के सदस्य बनें। उन्हें अंतरिम सरकार में शामिल किया गया और भारतीय संविधान की मसौदा समिति का अध्यक्ष बनाया गया। भाजपा यह साबित करने के लिए बैचेन है कि वे हिंदुत्व राजनीति का हिस्सा थे। यह एक कुटिल चाल है जिसका उद्धेश्य एक ऐसे व्यक्ति का सहारा लेकर अपनी स्वीकार्यता बढ़ाना है जो पूरी तरह से हिंदू राष्ट्र के विचार के विरूद्ध था। यह कितना विडंबनापूर्ण है कि हिंदू राष्ट्र के समर्थक और पैरोकार, उन अम्बेडकर को अपने सैद्धांतिक परिवार का सदस्य साबित करना चाहते हैं जो हिंदू राष्ट्र के विरोधी थे और लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र के हामी थे। (अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं) .../ 12 जनवरी /2025