डिजिटल युग में, डेटा किसी भी देश का सबसे महत्वपूर्ण संसाधन ओर खजाना बन गया है। जिस प्रकार प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण आवश्यक है, उसी प्रकार व्यक्तिगत जानकारी, प्राकृतिक जानकारी तथा विभिन्न किस्म का नॉलेज और संवेदनशील डेटा की सुरक्षा और प्राथमिकता तय करना सरकार की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। डेटा सुरक्षा कानून लंबे समय से चर्चाओं में है। इसका उद्देश्य व्यक्तिगत डेटा की गोपनीयता बनाए रखना और जानकारियों का दुरुपयोग रोकना महत्वपूर्ण है। डेटा सुरक्षा कानून कब भारत में लागू होगा, यह सवाल आज भी एक बड़ी चिंता के साथ मौजूद है। सोशल मीडिया, ई-कॉमर्स, और अन्य डिजिटल प्लेट फ़ॉर्म्स पर करोड़ों की संख्या में उपयोगकर्ता प्रतिदिन लाखों-करोड़ों डेटा को आपस में साझा करते हैं। इस डेटा का प्रयोग न केवल व्यापारिक कार्य के लिए किया जाता है बल्कि इस डेटा को अनुचित तरीकों से साझा करने और बेचने की हजारों-लाखों घटनाएं सामने आ चुकी हैं। यह उपयोगकर्ताओं के निजी एवं व्यापारिक हितों पर गंभीर प्रभाव डालकर, आर्थिक एवं निजी संबंधों के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है। उदाहरण स्वरूप, व्यक्तिगत डेटा की चोरी के कारण साइबर अपराध, धोखाधड़ी, पहचान की चोरी जैसे मामलों में लोगों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। कई मामलों में निजी प्रतिष्ठा में नुकसान उठाना पड़ा है। इस तरह की घटनाओं में लगातार वृद्धि होती जा रही है। डेटा सुरक्षा कानून को लागू करने में देरी के कई कारण सामने आ रहे हैं। सबसे बड़ा कारण डेटा सुरक्षा से जुड़े कानून को संतुलित और प्रभावी रूप से तैयार करना सरकार और विधि विशेषज्ञों के लिए चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसको लेकर केंद्र एवं राज्यों के बीच में भी सहमति नहीं बन पा रही है। भारत सरकार ने वैश्विक स्तर पर डेटा सुरक्षा के जो कानून हैं, उनका भी अध्ययन अभी तक गंभीरता के साथ नहीं कराया गया है। सरकार को सुनिश्चित करना होगा, कानून के माध्यम से भारतीय नागरिकों एवं उपयोगकर्ताओं के अधिकारों की रक्षा हो, डिजिटल प्लेटफॉर्म पर नागरिकों की निजता बनी रहे। व्यापारिक गतिविधियों में कोई बाधा अथवा आर्थिक नुकसान ना हो। डेटा सुरक्षा कानून में प्रशासनिक प्रक्रियाओं में अधिकारिता, पारदर्शिता और स्पष्टता सुनिश्चित की जाए। भारत सरकार ने डेटा सुरक्षा कानून के प्रारूप को तैयार करने और संसद में प्रस्तुत करने के लिए पूर्व में कई प्रयास किये हैं। हाल के वर्षों में, डेटा संरक्षण बिल को लेकर कई सुझाव सरकार को विभिन्न माध्यमों से भेजे गए हैं। डेटा सुरक्षा कानून लागू करने के लिए वर्तमान सरकार की मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है। संबंधित हितधारकों के बीच तालमेल ना होना सबसे बड़ी बाधा है। डेटा सुरक्षा कानून जल्द से जल्द लागू करना वर्तमान समय की सबसे बड़ी जरूरत है। जैसे-जैसे डिजिटल नेटवर्क के माध्यम से सामाजिक एवं अर्थव्यवस्था का विस्तार हो रहा है, डिजिटल लेन-देन से आम आदमी का जोखिम बढ़ रहा है। डेटा सुरक्षा कानून में देरी होने से आम जनता को भारी नुकसान हो रहा है। इसका प्रभाव आम लोगों की गोपनीयता आर्थिक लेन-देन, अपराधिक घटनाओं और डेटा की सुरक्षा पर पड़ रहा है। जिसके कारण नागरिकों को आर्थिक एवं निजता के मामले में बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए, कि डेटा सुरक्षा कानून जल्द से जल्द लागू हो। नागरिकों की सुरक्षा और उनके हित सुनिश्चित हों। डिजिटल तकनीक के क्षेत्र में जिम्मेदार और सुरक्षित राष्ट्र के रूप में भारत की पहचान दुनिया में हो। डेटा सुरक्षा कानून का लागू होना, केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं है, यह प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकारों से जुड़ा हुआ प्रश्न भी है। सरकार जिस तरह से डिजिटल प्लेटफॉर्म को आम नागरिकों के ऊपर कानूनन अनिवार्य करती चली जा रही है, उसके बाद सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अपने नागरिकों के मौलिक अधिकारों के साथ-साथ उनकी निजता, सामाजिक और आर्थिक आधार को सुरक्षा प्रदान करे। भारत सरकार ने कानून बनाकर डिजिटल लेनदेन, ऑनलाइन सेवाओं तथा सोशल मीडिया को जिस तरह से बढ़ावा दिया है, उससे उसकी जिम्मेदारी और बढ़ गई है। पिछले कुछ वर्षों में डिजिटल लेनदेन के माध्यम से अरबों रुपए के घोटाले और ठगी हुई है। पुलिस में शिकायत करने के बाद भी आम आदमी को ठगी और घोटालों का शिकार होना पड़ रहा है। सरकार की अनिवार्यता से आम जनता को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है। जबकि नागरिकों की कोई गलती नहीं थी। सरकार जिम्मेदारी लेने से बचती रही है। बैंक और वित्तीय संस्थान भी अपनी जिम्मेदारी आम नागरिकों पर डाल देते हैं। भारत में कॉपीराइट के अधिकार गूगल, यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया वाली की कंपनियों ने अवैध तरीके से हासिल कर लिए हैं। जबकि दूसरे देशों में वह, वहां के बनाए गए कानूनों का पालन कर रहे हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत के 80 करोड़ उपभोक्ताओं को सुनियोजित रूप से लूटने का काम कर रही हैं। इसके बाद भी सरकार की चुप्पी से लोगों की नाराजी बढ़ने लगी है। हर देश अपने नागरिकों की सुरक्षा का ध्यान रखता है। भारत में सरकार ने जिस तरह से बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपना एकाधिकार बनाने का मौका दिया है, एकाधिकार के बल पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारतीय नागरिकों को लूटने का जो लाइसेंस दिया है, उससे आम आदमी की लगातार नाराजी बढ़ रही है। हाल ही में माइक्रोसॉफ्ट ने विंडो के सॉफ्टवेयर अपग्रेड करने के लिए मासिक फीस अनिवार्य कर दी है। मासिक सब्सक्रिप्शन नहीं दिए जाने पर जिन लोगों ने पहले माइक्रोसॉफ्ट के लाइसेंस लिए थे, उन भारतीय नागरिकों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। डिजिटल तकनीकी में कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों का भारत में एकाधिकार हो गया है। इस कारण आम आदमी को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। गूगल में उसका डाटा सुरक्षित नहीं है। कभी भी गूगल उसे हटा देता है, या उसमें कॉपीराइट लगा देता है। अंतर्राष्ट्रीय लूट का एक नया सिलसिला शुरू हो गया है। सरकार को जल्द से जल्द डेटा सुरक्षा कानून, डिजिटल और सोशल मीडिया की कंपनियों के लिए भारतीय नागरिकों के हित सुरक्षित बनाए रखने की दिशा में कानून बनाने की आवश्यकता है। यह काम केंद्र सरकार को जल्द से जल्द करना चाहिए। ईएमएस / 10 जनवरी 25