लेख
10-Jan-2025
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आज से करीब सात दशक पहले एक काफी लोकप्रिय फिल्म आई थी, जिसमें एक गीत में दिल्ली को भारत की दिल बताया गया था, उस गीत के बोल थे- ‘‘दिल्ली है दिल हिन्दुस्तान का, ये तो तीरथ है सारे जहान का....’’ आज उसी पचहत्तर वर्षीय बुजुर्ग भारत के दिल की धड़कने कुछ अजीब तरीके से धड़कने लगी है, अब ‘दिल’ के इस ‘रोग’ के लिए आज की राजनीति को दोषी माना जाए या राजनेताओं को यह तो अपनी-अपनी सोच का विषय है। किंतु यह सही है कि आज देश पर राज करने वाली पार्टी के धुरंधरों को एक किशोर राजनीतिक दल और उसकी बढ़ती पहचान पसंद नही आ रही है और अब इस राजनीति का स्तर निचले पायदन की ओर अग्रसर है, जिसका स्तर राजनीति से गिरकर बंगलों तक आ गया है, आज देश की राजधानी के नाम से प्रदेश में मुख्यमंत्री अवश्य है, किंतु राजनेताओं की नजर उसके बंगले पर है। यद्यपि मुख्यमंत्री जी अपने अधीकृत मुख्यमंत्री निवास में नही रहती है, उनके नाम मंत्राणी के रूप में दो बंगले पहले से ही आवंटित है, जिनमें से एक में वे निवासरत् है, किंतु दिल्ली चुनाव के राजनीतिक दंगल ने दिल्ली के आम वोटर की परेशानियों की चिंता छोड़ इसी राजनीतिक मुद्दें को चुनावी मुद्दा बना लिया है और इन दिनों दिल्ली को आम वोटर को ‘दर्शक दीर्घा’ में बैठकर यही राजनीतिक नाटक खेला जा रहा है, कभी राजनेता मुख्यमंत्री के नाम से अधीकृत बंगले पर जाकर उसके निरीक्षण के नाम पर प्रशासन व पुलिस से उलझ रहे है तो कभी आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू कर देते है। दिल्ली प्रदेश की विधनसभा में सत्तर सीटें है, जिन पर चुनाव आयोग ने पांच फरवरी को मतदान कराने की घोषणा की है और आठ फरवरी को चुनाव परिणाम आने है, किंतु उक्त महत्वपूर्ण मतदान के पच्चीस दिन पहले (याने आज) ऐसा लगता नही कि वहां कोई चुनाव होने वाला है, फिलहाल तो वहां राजनीतिक दंगल के परिदृष्य नजर आ रहे है। यहां यह भी आश्चर्यजनक उल्लेखनीय है कि दिल्ली प्रदेश के पिछले दो चुनावों (अर्थात् 2015 और 2020) में जो राजनीतिक दल इकाई से दहाई का आंकड़ा पार नही कर पाया, वह इस बार सत्ता प्राप्ति का दावा कर रहा है, वह दल देश पर राज करने वाली भाजपा है, जिसे 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 में से 03 सीटें मिल पाई थी और पांच साल बाद 2020 के चुनाव में 08 सीटें ही मिल पाई थी और वरिष्ठ समाजसेवी अन्ना हजारे के कथित तत्कालीन शिष्य अरविंद केजरीवाल ने बंपर जीत हासिल की थी और पिछले एक दशक से वे ही मुख्यमंत्री रहे, फिलहाल उनकी शिष्या मुख्यमंत्री है। इस तरह अब दिल्ली में मुख्य चुनावी मुकाबला ‘आप’ और भाजपा के बीच ही है, जहां तक कांग्रेस का सवाल है, उसके सूर्य के अस्त होने की बारी दिल्ली तक पहुंच गई है। ....लेकिन दिल्ली का यह चुनाव देश के अन्य चुनावों से थोड़ा अलग इसलिए ही है क्योंकि यहां फिलहाल मतदाताओं की चिंता किसी को भी नही है, फिलहाल दोनों प्रमुख दल आप और भाजपा अपना ही गौरवगान अलापने में व्यस्त है और दिल्ली का आम वोटर ‘‘दर्शक दीर्घा’’ में बैठकर यह ‘नाटक’ देखने को मजबूर है। अब देखना यही है कि ‘आप’ अपनी सत्ता के सिलसिलें को आगे बढ़ने में कामयाब होता है या देश पर राज करने वाला दल ‘दहाई’ के अखाड़े में कुदता है? ईएमएस / 10 जनवरी 25