इसमें कोई दो राय नहीं कि हिंदी अब धीरे - धीरे रोजगार की भाषा बनती जा रही है। हिंदी राष्ट्रीय स्तर हो या अंतरराष्ट्रीय स्तर, हर स्तर पर छाई हुई है। अस्सी - नब्बे के दशक के बाद जब तकनीकी क्रांति जोर पकड़ने लगी तो अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों का भारत में आगमन हुआ। तकनीकी वस्तुओं का प्रचलन अधिक हुआ, कंप्यूटर-मोबाइल जैसे तकनीक उपकरणों आदि का वर्चस्व स्थापित हो गया। इन सब कार्यों में अंग्रेजी का भरपूर उपयोग होता था, तब ऐसा लगा कि अंग्रेजी छा जाएगी और हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं का अस्तित्व खत्म हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि हिंदी और आगे बढ़ती गई। हिंदी की लोकप्रियता हर मापदण्डों को पछाड़ते हुई और भी ज्यादा बढ़ी है। इन सब बातों के अलावा एक कसक भी है कि हिंदी बदलते दौर के साथ अपना स्वरूप भी बदल रही है। कई ऐसे तीख़े सवाल भी है, जो हिंदी हमसे पूछती है लेकिन उनके जवाब हमारे पास नहीं होते। कसक ये है कि हम हिंदी भाषी होने पर गर्व से फूले नहीं समाते लेकिन हिंदी के उच्चारण, वर्तनी और लेखन में शुद्धता पर कभी ध्यान ही नहीं देते हैं। एक उदाहरण ही लें तो बाज़ार में लोग हिंदी भाषा में अपनी दुकानों के नामों का उपयोग करते हैं लेकिन ज्यादातर लोग इस बात पर कभी गौर नहीं करते कि हिंदी में अशुद्धियां कितनी ज्यादा है ? इसका कारण है कि हमने अब हिंदी लिखने के लिए गूगल का सहारा लेना शुरु कर दिया है, अब पत्र और डायरी लिखना बीते ज़माने की बातें हो गई। बाकि, हिंदी दिवस पर हमारा चिंतन इसी बात को लेकर रहता है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाना है। हिंदी दिवस पर आयोजित कार्यक्रमों में हिंदी चिंतकों और प्रेमियों द्वारा उपयोग किये गए शेर, शायरी से लेकर लच्छेदार भाषणों का केंद्र यही होता है, लेकिन असलीयत यही है कि हिंदी ग्लोबल तो हो रही है लेकिन कहीं न कहीं सिकुड़ती भी जा रही है। हालांकि, हिंदी का मान बढ़ाने में महती भूमिका मीडिया जगत के अलावा हिंदी फिल्मों, टेलीवीजन पर बनने वाले नाटकों ने भी निभाई है। यदि हम बात क्लिष्ट अर्थात् शुद्ध हिंदी की करें तो व्यक्ति व्याकरण के भंवर में उलझ सकता है। यकीनन, शुद्ध हिंदी सबके बस की बात नहीं है, तभी तो सामान्य बोलचाल की भाषा में अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, अरबी समेत तमाम भाषाओं के शब्दों का उपयोग हम हिंदी में सामान्य रूप से करते हैं। हिंदी ने हर भाषा को स्वीकार कर उसके शब्दों को अपने अस्तित्व में ढाल लिया, इसीलिए इसे भाषाओं की मां का दर्जा दिया गया है, क्योंकि हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसमें भावनाएं भी सहज रूप से प्रतीत होती है। यदि हम बात रोज़गार की करें तो इसे रोज़गार परक बनाने में मीडिया की बड़ी भूमिका है, इस जगत में अनेक हिंदी समाचार चैनलों, समाचार पत्र व पत्रिकाओं के आगमन से पत्रकारिता के क्षेत्र में रोजगार की बिल्कुल भी कमी नहीं है। अब तो गूगल ने भी हिंदी का महत्व समझते हुए हिंदी पर काफी काम किया है, इतना ही नहीं माइक्रोसॉफ्ट कंप्यूटर के निर्माण के समय हिंदी को पूरा महत्व देता है और हिंदी फॉन्ट की उपलब्धता आज बेहद आसान हो गई है। इन सबका एक ही प्रमुख कारण है कि हिंदी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा बनकर अपना अस्तित्व समूचे विश्व के सामने बना रही है। इस भाषा के बोलने वालों की संख्या अब 50 करोड़ को पार कर गई है तथा इस भाषा को समझने वाले लोगों की संख्या पूरे विश्व में 1 अरब से भी ज्यादा है। अतः हिंदी में निरंतर रोजगार की संभावनाएं बढ़ती ही जा रही है। अब वो समय गया जब लोग कहते थे कि अंग्रेजी रोजगार की भाषा है। खैर, चिंतन फ़िर भी जारी है कि हिंदी भले ही समूचे विश्व की तीसरे नंबर की भाषा बन गई हो। आज दुनिया भर में बोली जाने वाली सभी भाषाओं में हिंदी तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। वर्ल्ड लैंग्वेज डेटाबेस के 22वें संस्करण इथोनोलॉज में बताया गया कि दुनियाभर की 20 सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में 6 भारतीय भाषाएं हैं, जिनमें हिंदी तीसरे स्थान पर है, यानि दुनियाभर में 61.5 करोड़ लोग हिंदी भाषा का उपयोग करते हैं, लेकिन भारत में हिंदी आज भी राष्ट्रभाषा के दर्जे से अछूती है। (शोधार्थी एवं पत्रकार हैं) ईएमएस / 09 जनवरी 25