छत्तीसगढ़, भारत के मध्य में स्थित एक खनिज संपन्न राज्य है, जो नक्सलवाद से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक है। राज्य का बड़ा हिस्सा घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों से आच्छादित है, जो नक्सलियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह का काम करता है। पिछले कुछ दशकों में नक्सलवाद ने छत्तीसगढ़ के सामाजिक, आर्थिक और सुरक्षा परिदृश्य को गहराई से प्रभावित किया है। इस लंबी लड़ाई में अनगिनत सुरक्षा बलों ने अपने प्राणों की आहुति दी है, और यह सवाल उठता है कि आखिर यह समस्या कब समाप्त होगी। हाल ही में, 4 जनवरी 2025 को दंतेवाड़ा और नारायणपुर जिलों की सीमा पर अबूझमाड़ के जंगलों में सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई। इस मुठभेड़ में चार नक्सली मारे गए और दंतेवाड़ा डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) के हेड कांस्टेबल सन्नू कारम शहीद हुए। यह घटना न केवल सुरक्षा बलों की वीरता को उजागर करती है, बल्कि यह भी याद दिलाती है कि नक्सलवाद के खिलाफ यह लड़ाई कितनी कठिन और लंबी है। छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद का प्रभाव सबसे अधिक बस्तर क्षेत्र में है, जिसमें दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर और कोंडागांव जिले शामिल हैं। यह क्षेत्र आदिवासी बहुल है और यहां की जनसंख्या शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। नक्सलियों ने इस स्थिति का फायदा उठाकर आदिवासियों को अपने आंदोलन में शामिल कर लिया। नक्सलवाद का समाधान केवल सुरक्षा बलों के ऑपरेशनों से संभव नहीं है। इसे समाप्त करने के लिए एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है, जिसमें विकास, पुनर्वास और सामाजिक न्याय शामिल हों। सरकार ने नक्सलवाद के उन्मूलन के लिए कई कदम उठाए हैं। छत्तीसगढ़ में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), राज्य पुलिस और डीआरजी जैसे बलों को तैनात किया गया है, जो नियमित रूप से नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशनों को अंजाम देते हैं। राज्य सरकार ने आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के पुनर्वास के लिए विशेष योजनाएँ बनाई हैं। आत्मसमर्पण करने वालों को रोजगार, शिक्षा और अन्य सुविधाएँ प्रदान की जा रही हैं ताकि वे समाज की मुख्यधारा में लौट सकें। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सड़क, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है। स्कूलों और अस्पतालों की स्थापना भी इन क्षेत्रों में हो रही है। आदिवासी समुदायों को नक्सलवाद से दूर रखने के लिए उनकी जरूरतों और समस्याओं को समझकर समाधान प्रदान किए जा रहे हैं। हालांकि, नक्सलवाद के उन्मूलन में कई चुनौतियाँ हैं। घने जंगल और पहाड़ी इलाकों के कारण सुरक्षा बलों के लिए ऑपरेशन चलाना मुश्किल होता है। नक्सलियों ने आदिवासियों का विश्वास जीतने के लिए उन्हें संरक्षण और सुरक्षा का आश्वासन दिया है। इस विश्वास को तोड़कर उन्हें मुख्यधारा में शामिल करना एक बड़ी चुनौती है। आदिवासी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करना नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण कदम होगा। साथ ही, स्थानीय समुदायों को नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में भागीदार बनाना आवश्यक है। सरकार, सुरक्षा बल और जनता के समन्वित प्रयासों से नक्सलवाद का अंत संभव है। नक्सलवाद के उन्मूलन के लिए एक ठोस और दीर्घकालिक नीति के साथ ही जिसका समाधान केवल सुरक्षा बलों की कार्रवाई से संभव नहीं है। इसके लिए विकास, न्याय और सामाजिक सशक्तिकरण की आवश्यकता है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मार्च 2026 तक नक्सलवाद समाप्त करने का लक्ष्य रखा है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस दिशा में कितनी प्रगति करती है। आखिर छत्तीसगढ़ को नक्सलवाद से मुक्त होने के लिए हमारे जवानों की और कितनी सहादत देनी होगी? ईएमएस / 09 जनवरी 25