बीजिंग,(ईएमएस)। यह सही हैं कि ताइवान चीन की दुखती रग है। आए दिन शी जिनपिंग ताइवान पर हमला करने की धमकी देते हैं। ताइवान को डराने के लिए अक्सर उसके बेहद करीब चीन की पीपल लिबरेशन आर्मी यानी पीएलए युद्ध अभ्यास करती है। चीन ताइवान को अपने देश का ही एक हिस्सा मानता है। दूसरी ओर अमेरिका ताइवान को पूरी तरह से चीन से संरक्षण दिए हुए है। अगर चीन और ताइवान के इतिहास पर गौर करे तब यह कहना गलत नहीं होगा कि एक वक्त ऐसा भी था जब चीन ताइवान के आगे पानी भरता दिखा था। ताइवान की सेना चीन के पांच हजार से ज्यादा सैनिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर चुकी है। पहले चीन और ताइवान एक ही देश का हिस्सा थे। इस संयुक्त चीन के रूप में जाना जाता था। बीजिंग कभी भी युद्ध में ताइवान पर कब्ज़ा नहीं कर सका है। चीन ने ताइवान से दो युद्ध निर्णायक रूप से हारे हैं। साल 1949 से पहले चीन को एक लोकतांत्रिक देश के रूप में जाना जाता था। पूरे देश का नेतृत्व कुओमितांग पार्टी ने किया था, जिसकी स्थापना 1912 में हुई थी। पार्टी के संस्थापक सन यात-सेन थे। वे लोकतांत्रिक मूल्यों को मानने वाले थे। कुछ सालों बाद माओत्से तुंग के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट ताकते देश में तेजी से बढ़ने लगी। इसके बाद चीन में गृह युद्ध शुरू हो गया था। चीनी गृह युद्ध 1949 में माओत्से तुंग के कम्युनिस्ट आंदोलन की जीत और चियांग काई-शेक की सत्तारूढ़ कुओमितांग पार्टी की हार के साथ खत्म हुआ था। कुओमिन्तांग ने ताइवान में शरण ली। पिछले 76 सालों से चीन और ताइवान के बीच ऐसी ही स्थिति बनी हुई है। ताइवान को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी चीन गणराज्य का एक हिस्सा मानती है। इसी कड़ी में तब दो बार ताइवान पर कब्जा कर पूरे चीन को एक करने का प्रयास किया गया। कम्यूनिस्ट पाटी के माओत्से तुंग ने फैसला किया कि ताइवान पर कब्जा करने के लिए सबसे पहले उसके करीबी द्वीप किनमेन और मात्सु पर कब्ज़ा जरूरी है। किनमेन में दो बड़े द्वीप और तेरह छोटे द्वीप हैं। ताइवानी क्षेत्रों में से सबसे करीब होने के कारण तुंग ने पहले इन पर निशाना साधने का फैसला किया। किनमेन की भौगोलिक स्थिति ताइवानी सेना के लिए फायदेमंद साबित हुई। पहले करीब 10,000 सैनिक द्वीप पर भेजने की योजना थी। यह प्लान बनाया कि द्वीप पर कब्जा करने के बाद अतिरिक्त 10 हजार सैनिक भेजे जाएंगे। उन्हें लगा कि यह ताइवान की सेना को परास्त करने के लिए सही रणनीति है। 3 दिन में द्वीप उनके कब्जे में होगा और ताइवान की सेना हताश होकर घुटने टेक देगी। लेकिन ताइवान की सेना ने तट पर करीब 7,500 बारूदी सुरंगें बिछा दी थीं। द्वीप के बाकी हिस्सों पर कई खदान बनाई गई ताकि वहां जल्द से जल्द सैनिकों को जरूरी समान सप्लाई कर सके। ताइवान की सेना के अलावा दो टैंक रेजिमेंट सहित अपने बख्तरबंद डिवीजनों को ताइवान ने तैनात किया। चीन का तीन दिनों में द्वीप पर नियंत्रण हासिल करने का प्लान था लेकिन दूसरे दिन के अंत तक चीनी सैनिकों के पास खाना व अन्य आपूर्ति खत्म हो गई। तीसरे दिन की सुबह ताइवान के कम्युनिस्ट सेना पर पूरा कंट्रोल कर उनके 5,000 से ज्यादा सैनिकों को युद्ध बंदी बनाकर रख लिया। किनमेन को न केवल ताइवान ने अपने पास रखा बल्कि कम्युनिस्ट सेना ने गुनिंगटौ पर भी नियंत्रण खो दिया। यह माओत्से और पीएलए के लिए अपमानजनक हार थी। 1950 के दशक और उसके बाद चीन ने ताइवान के द्वीपों पर कई आक्रमण किए। लेकिन हर बार चीन को हार का सामना ही करना पड़ा। बाद में अमेरिका भी ताइवान की रक्षा के लिए सामने आ गया। आशीष दुबे / 08 जनवरी 2025