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07-Jan-2025
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सौरभ जैन अंकित - युवाओं और शिक्षित वर्ग को आकर्षित करने में सफल पटना (ईएमएस) । बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर (पीके) ने अपनी अलग पहचान बनानी शुरू कर दी है। नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव जैसे राजनीतिक दिग्गजों के बीच पीके का उदय राज्य की राजनीति को नया आयाम देता दिख रहा है। अपने “जनसुराज अभियान” के माध्यम से प्रशांत किशोर बिहार की तीन दशक पुरानी राजनीतिक व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं। - नीतीश-तेजस्वी के लिए बढ़ी मुश्किलें प्रशांत किशोर ने बीते दिनों अपनी रणनीतिक चतुराई और जमीनी पकड़ से विरोधियों को चौंका दिया। गांधी मैदान में धरना देने और गिरफ्तारी के बाद बिना शर्त जमानत लेने से इनकार करना उनके साहसी राजनीतिक कदमों को दर्शाता है। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि उनका यह आंदोलन सिर्फ उनका व्यक्तिगत मुद्दा नहीं है, बल्कि बिहार के युवाओं और खराब व्यवस्था के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन है। नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने अब तक प्रशांत किशोर को हल्के में लिया था, लेकिन अब उनके फैसलों और राजनीतिक शैली ने इन्हें मुश्किल में डाल दिया है। खासकर नीतीश कुमार की पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई ने पीके को जनता के बीच सहानुभूति दिलाने का काम किया है। -रणनीति से लैस पीके प्रशांत किशोर बिहार की जातिगत राजनीति में अपनी जगह बना रहे हैं। उनके पास पर्याप्त संसाधन और एक स्पष्ट विजन है। पटना में उनके लिए उपलब्ध कराए गए आवास और वैनिटी वैन ने यह साफ कर दिया है कि जनता अब पारंपरिक राजनीति से हटकर कुछ नया देखना चाहती है। पीके ने बेरोजगारी, शिक्षा और युवाओं के पलायन जैसे अहम मुद्दों को केंद्र में रखा है। उनका कहना है कि अगर उन्हें मौका मिला, तो छठ पर घर लौटे युवाओं को रोज़गार की तलाश में फिर से बिहार छोड़कर बाहर नहीं जाना पड़ेगा। यह चुनौतीपूर्ण वादा भले ही कठिन हो, लेकिन असंभव नहीं है। - खुला आमंत्रण प्रशांत किशोर ने बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को इस आंदोलन में शामिल होने का न्योता दिया। उन्होंने कहा कि बच्चों के भविष्य के लिए सभी नेताओं को सड़क पर उतरना चाहिए। पीके ने ऐलान किया कि यदि अन्य नेता इस आंदोलन का हिस्सा बनते हैं, तो वे उनके पीछे बैठकर समर्थन करेंगे। - बिहार की राजनीति में नई लहर बिहार की मौजूदा राजनीति में पीके का उभरना नई संभावनाओं का संकेत है। राज्य की पारंपरिक राजनीति में जहां जातिगत समीकरण हमेशा हावी रहे हैं, प्रशांत किशोर शिक्षा, रोजगार और प्रशासनिक सुधार जैसे मुद्दों पर फोकस कर रहे हैं। वर्तमान में तेजस्वी यादव और चिराग पासवान जैसे चेहरे विपक्ष की अगुवाई कर रहे हैं, लेकिन प्रशांत किशोर का आगमन एक नई चुनौती पैदा कर रहा है। वे युवाओं और शिक्षित वर्ग को आकर्षित करने में सफल हो रहे हैं, जो वर्षों से एक नई सोच और नेतृत्व की तलाश में थे। -राजनीति के शैशवकाल में पीके प्रशांत किशोर की राजनीति अभी शुरुआती दौर में है। लेकिन उनके हालिया कदमों और जनता के बीच बढ़ती पकड़ ने यह साबित कर दिया है कि वे बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में एक मजबूत विकल्प बन सकते हैं। पीके की यह यात्रा नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के लिए चुनौतीपूर्ण होगी। आगामी चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि पीके अपनी रणनीति को किस तरह आकार देते हैं और बिहार की राजनीति को किस दिशा में ले जाते हैं।