प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट स्मार्ट सिटी का था। इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रत्येक सिटी को 500 करोड रुपए राज्य सरकार द्वारा 500 करोड रुपए स्मार्ट सिटी के लिए आवंटित किए गए थे। केंद्र एवं राज्य सरकारों ने निर्धारित समय सीमा में स्मार्ट सिटी को अरबों रूपयों का यह धन मुहैया कराया। स्मार्ट सिटी की प्लानिंग में जनप्रतिनिधियों को दूर रखा गया था। स्मार्ट सिटी की कल्पना इस तरह से की गई थी, अधिकारी बेहतर प्लानिंग करें, समय सीमा पर स्मार्ट सिटी का मॉडल पेश करें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह प्रोजेक्ट अधिकारियों के हवाले कर स्मार्ट सिटी की परिकल्पना की थी। वह परिकल्पना कहीं पर भी साकार नहीं हुई। स्मार्ट सिटी के लिए विशेष अधिकार दिए गए। इसे नगरीय निकायों से बाहर रखा गया। जनप्रतिनिधियों का भी कोई प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं था। स्मार्ट सिटी की प्लानिंग में संभागीय कमिश्नर, कलेक्टर तथा निगम कमिश्नर को अधिकार दिये गए थे। स्मार्ट सिटी की सफलता और असफलता के लिये यही तीनों अधिकारी जिम्मेदार है। इसके बाद भी किसी भी स्मार्ट सिटी में ऐसा कोई काम नहीं हुआ। जिसे स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित बताया जा सके। देश में बनी लगभग स्मार्ट सिटी में भ्रष्टाचार और मनमानी की गंगा बही। तीनों अधिकारियों ने कमाई की। जनप्रतिनिधि देखते ही रह गये। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल बनने 1957 के बाद नये भोपाल को विकसित किया गया था। अधिकारियों ने नए भोपाल को ही स्मार्ट सिटी बनाने का बीड़ा उठाया। यहां पर अधिकांश जमीन सरकारी थी। न्यू मार्केट से लगी होने के कारण जमीन बेशकीमती थी। स्मार्ट सिटी के लिए 500 करोड रुपए केंद्र सरकार से 500 करोड़ राज्य सरकार से और 400 करोड रुपए स्मार्ट सिटी की जमीन बेचकर जुटाए गए। इसमें से 1351 करोड रुपए अधिकारियों ने खर्च कर दिए। इसमें से 663 करोड रुपए उन कामों में खर्च किए गए, जो स्मार्ट सिटी के अधिकार क्षेत्र के नहीं थे। कई काम नगर निगम भोपाल और भोपाल डेवलपमेंट अथॉरिटी के प्रोजेक्ट को स्मार्ट सिटी के बजट से पूरा करने के लिए खर्चाकर दिए। सरकारी मकानों को तोड़कर स्मार्ट सिटी विकसित की गई। कोई भी काम प्लानिंग से नहीं किया गया। स्मार्ट सिटी ने जिस प्रोजेक्ट पर काम किया, वह सभी प्रोजेक्ट अधूरे पड़े हैं। अधूरे प्रोजेक्ट को पूरे करने के लिए स्मार्ट सिटी के पास अब बजट नहीं है। जो जमीन स्मार्ट सिटी के लिए अधिग्रहित की गई थी। प्रोजेक्ट में सही तरीके से काम नहीं होने के कारण स्मार्ट सिटी की जमीन और प्लाट भी नहीं बिक पा रहे हैं। जिसके कारण स्मार्ट सिटी के विकास का काम अब पूरी तरह से रुक गया है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने भी बजट देने पर हाथ खड़े कर लिए हैं। भोपाल के जिन सरकारी मकानों को तोड़ा गया। उसकी कुछ जमीन पर मल्टी स्टोरी बनाकर 471 करोड रुपए मकान बनाने में खर्च कर दिए। यह मकान अभी तक आवंटित नहीं हो पाए हैं। सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को पहले बेघर किया गया। कई वर्षों के बाद भी सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को निर्मित भवनों का आवंटन नहीं हो पा रहा है। जिस जल्दबाजी में स्मार्ट सिटी के काम कराए गए, वह सब गुणवत्ता विहीन रहे। बनने के साथ ही उसकी मरम्मत में बजट खर्च होने लगा। स्मार्ट सिटी की सड़कों की हालत काफी दयनीय है। स्मार्ट सिटी के जो काम शुरू किए थे। वह भी बंद हो गए हैं। स्मार्ट सिटी की विफलता से विधायक और पार्षद भी नाराज हैं। हजारों करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी स्मार्ट सिटी में कोई ऐसे काम नहीं हुए जिसको बताकर वह चुनाव जीत सके। अब जनप्रतिनिधि भी स्मार्ट सिटी को लेकर सवाल जवाब करते हुए नजर आ रहे हैं। स्मार्ट सिटी के नाम पर निर्माण कार्यों और खरीदी में भारी भ्रष्टाचार हुआ है। अब उसकी चर्चा देशभर की स्मार्ट सिटी में होने लगी है। स्मार्ट सिटी के अधिकारियों पर यह आरोप लग रहे हैं। देशभर में स्मार्ट सिटी के निर्माण में अधिकारियों ने भारी भ्रष्टाचार कियसा है। स्मार्ट सिटी के काम अधूरे पड़े हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस महत्वाकांक्षी योजना का यह हाल होगा। इसका इंदाजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी नहीं रहा होगा। पंचायती राज योजना में राजीव गांधी ने जिला योजना आयोग में जनप्रतिनिधि और जिला पंचायत के सीईओ को अधिकार दिये थे। पंचायती राज का क्या हश्र हुआ। यह सभी जानते हैं। स्मार्ट सिटी भी कागजों पर बनकर रह गई है। ईएमएस / 06 जनवरी 25