आज देश की राजनीति किस दिशा में ले जाई जा रही है? इसका उत्तर न राजनेताओं के पास है न राजनीति के जानकारों के पास? इसके चलते यदि हम हमारे संविधान वर्णित पक्ष की बात करें तो हमारा संविधान स्पष्ट कहता है कि धर्म को राजनीति से बिल्कुल अलग रखा जाना चाहिए, किंतु आज तो ऐसा लग रहा है कि राजनेताओं का राजनीति ही मूल धर्म हो गया है, इसलिए आज मानव की सबसे कमजोर कड़ी धर्म को राजनीति का सहारा बना लिया गया है और इसलिए आज हर छोटे-बड़े मामले में धर्म और राजनीति का प्रवेश कर दिया जाता है, इसका ताजा उदाहरण उत्तरप्रदेश का संभल तथा राजस्थान का अजमेर है, जहां कथित दरगाहों को कभी मंदिर, बताया जाता है तो कभी मस्जिद और इसी मुद्दें को अब राजनीतिक रूप दे दिया गया है। नवम्बर माह में जिस केन्द्र सरकार के पुरातत्व विभाग ने अपने सर्वेक्षण के बाद अपनी रिपोर्ट में चैकाने वाली जानकारी यह दी कि देश की प्रमुख मस्जिदें मंदिरों को जमींदोज करके बनाई गई है, उसी सरकार के प्रधानमंत्री अपने एक केबीनेट मंत्री के हाथों चादर चढ़ाने के लिए भेजते है, यह कितना हास्यास्पद है कि जिसकी सरकार मंदिरों को तोड़ कर मस्जिदें बनाने का दावा करती है, उसी के प्रधानमंत्री उसी विवादित स्थल के लिए चादर भेजते है? अब ऐसी विकृत राजनीति को क्या नाम दिया जाए? किंतु आज देश को इसी राजनीति को देखना समझना पड़ रहा है। आज एक ओर जहां देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट देश के न्यायालयों को मंदिर-मस्जिद विवादों पर कोई फैसला नही सुनाने की हिदायत देती है, वहीं देश के प्रधानमंत्री कथित विवादित धर्मस्थल के लिए चादर भिजवा रहे है? सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस सख्त आदेश के साथ यह भी कहा है कि देश के न्यायालय मस्जिद-दरगाहों के सर्वेक्षण के भी आदेश न दें, साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र से भी इस मामले में जवाब तलब कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है। यद्यपि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से देशभर में चल रहे कई मामलों पर असर होगा, जैसे मथुरा, भोजशाला, ज्ञानवापी, संभल आदि से जुड़े मामलों पर सुनवाई चलती रहेगी पर इन पर फैसला नही आ पाएगा। जौनपुर की अटाला मस्जिद के सर्वेक्षणका मामला भी कोर्ट में है, लेकिन सर्वेक्षण का आदेश यहां भी नही दिया जा सकेगा। इसी संदर्भ में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के वरिष्ठ अधिवक्ता राजूराम मोहन ने कोर्ट को बताया कि इसी संदर्भ के करीब डेढ़ दर्जन मामले विभिन्न न्यायालयों में चल रहे है, जिन पर अब रोक लग जाएगी। वैसे 1991 का पूजा कानून ‘‘प्लेसेस आॅफ वर्शिप एक्ट’’ कहता है कि देश भर के सभी धर्मो के स्थल 15 अगस्त 1947 की स्थिति में बने रहेंगे पूजा स्थलों को कोर्ट या सरकार नही बदलेगें, यह स्थिति धार्मिक स्थलों पर फिर से दावा करने या स्वरूप के बदलाव के बाद वाद दायर करने पर रोक लगाता है, यहां यह उल्लेखनीय है कि अयोध्या के बाद भोजशाला सहित मंदिर-मस्जिद के नौ विवाद न्यायालयों में पहुंच चुके है। इस प्रकार कुल मिलाकर मानव की सबसे कमजोर नस (धर्म) को आज की राजनीति अपना सहारा बनाने को आतुर है, यह देश के कितने हित में है? यह आज के महान कर्णधार (राजनेता) जाने। .../ 6 जनवरी /2025