नई दिल्ली (ईएमएस)। उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में शीतलहर ने जनजीवन को प्रभावित किया है। मौसम के कारण पुलों और बांधों जैसी महत्वपूर्ण संरचनाओं को नुकसान हो सकता है। इस प्रकार की स्थिति से आवाजाही में रुकावटें और जीवन के सामान्य प्रवाह में बाधाएं उत्पन्न होती हैं। जब तापमान 4 डिग्री सेल्सियस या उससे कम हो जाता है, तो शीतलहर की स्थिति बनती है। बर्फबारी और ठंडी हवाओं के कारण कई जगहों पर परिवहन व्यवस्था प्रभावित हुई है, जिससे लोग और माल दोनों की आवाजाही में भारी मुश्किलें आ रही हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से इस मौसम में उतार-चढ़ाव देखे जा रहे हैं। समय से पहले बर्फ का पिघलना और कलियों का जल्दी खिलना जैसे दृश्य अब आम हो गए हैं, जो पर्यावरणीय असंतुलन को दर्शाते हैं। यह बदलाव वन्यजीवों के लिए खतरा पैदा कर रहा है, क्योंकि अत्यधिक बर्फबारी से पेड़-फूल और जंगल की आग की घटनाएं बढ़ सकती हैं। इसके अतिरिक्त, ठंड के मौसम में बर्फ पेड़ की शाखाओं पर बहुत अधिक दबाव डालती है, जिससे वे टूटकर गिर सकते हैं और महत्वपूर्ण उपकरणों जैसे ट्रांसफॉर्मर, पवनचक्कियां, सौर पैनल, और तेल-गैस पाइपलाइनों को भी नुकसान पहुंच सकता है। इससे ऊर्जा आपूर्ति में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है, जैसा कि 2021 में टेक्सास में हुआ था, जहां शीतलहर के कारण बिजली की आपूर्ति पूरी तरह से ठप हो गई थी और लोगों को पीने का पानी भी नसीब नहीं हो रहा था। इसके अलावा, शीतलहर का विमानन उद्योग पर भी प्रभाव पड़ा है। बर्फबारी के कारण हवाई अड्डों के रनवे खतरनाक हो सकते हैं, और विमान के वॉटर सिस्टम में भी तकनीकी खराबी आ सकती है। इससे एयरलाइनों के संचालन में देरी होती है और यात्रियों के लिए असुविधा पैदा होती है। बर्फ की जमी हुई परतें छतों और पाइपलाइनों को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं, जो इमारतों के ढांचे के लिए खतरे का कारण बनती हैं। भारत में, 2006 के जनवरी महीने में सबसे सर्द दिन रिकॉर्ड किया गया था, जब दिल्ली का न्यूनतम तापमान 0.2 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया था। इस दिन तेज उत्तर-पश्चिमी हवाएं चल रही थीं, जिससे ठंड का असर और बढ़ गया था। आमतौर पर उत्तर भारत के राज्यों जैसे पंजाब, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और उत्तराखंड शीतलहर से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। सुदामा/ईएमएस 05 जनवरी 2025