भारत का वर्तमान टैक्स सिस्टम आम नागरिकों की जिंदगी को बोझिल और कठिन बना रहा है। जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) को लेकर भारतीय जनता का आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा है। यही वजह है कि सोशल मीडिया पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और जीएसटी दरों को लेकर मीम्स की बाढ़ आ गई। जनता ने जीएसटी की जटिलताओं और बढ़ते टैक्स के बोझ को हास्य के जरिए व्यक्त कर अपनी नाराजगी को व्यक्त किया है। पॉपकॉर्न पर तीन तरह के टैक्स और सेकंड हैंड कार से जुड़े टैक्स को लेकर हाल ही में बनाए गए मीम्स ने खासतौर पर सभी का ध्यान आकर्षित किया है। पॉपकॉर्न जैसी छोटी वस्तुओं पर भारी जीएसटी और सेकंड हैंड कार की खरीद-फरोख्त पर जटिल टैक्स नियमों के कारण लोगों की जिंदगी हताशा से भर गई है। ऐसे में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर वित्त मंत्री पर तीखे कटाक्ष करने वाले मीम्स ट्रेंड कर रहे हैं। चाहे जीएसटी हो, इनकम टैक्स हो, या फिर रोजमर्रा के जीवन पर लगने वाले कई अप्रत्यक्ष कर, सभी तरह से आम भारतीय करदाताओं को हर कदम पर सरकार को भारी टैक्स चुकाना पड़ता है। जनता कहती है कि जीएसटी का उद्देश्य तो कर प्रणाली को सरल बनाना था, लेकिन यह तो उल्टा जटिल और बोझिल हो गया है। सोशल मीडिया के जरिए अपना गुस्सा प्रकट करने वाले लोग सरकार से बदलाव की मांग कर रहे हैं। यह जनता की निराशा ही नहीं बल्कि उनके अंदर सरकार की नीतियों के खिलाफ पनप रहे आक्रोष का भी प्रतीक है, जिसे सरकार को गंभीरता से लेना होगा और समय रहते टैक्स सुधारों पर काम करना होगा। टैक्स टेररिज्म भारत में सरकार करदाताओं की आय का बड़ा हिस्सा अपने पास रख लेती है। इनकम टैक्स, जीएसटी, हाउस टैक्स, रोड टैक्स, टोल टैक्स और यहां तक कि कपड़े या खाना खरीदने पर भी टैक्स देना पड़ता है। ऐसे में एक साधारण भारतीय करदाता के लिए बचत करना या बेहतर जीवन स्तर बनाए रखना मुश्किल हो गया है। करदाताओं के लिए अब यह प्रणाली किसी टैक्स टेररिज्म से कम नजर नहीं आ रही है। ‘टैक्स टेररिज्म’ का मुद्दा पिछले कुछ वर्षों में प्रमुखता से उभरा है। भारी टैक्स दरों और अप्रत्याशित कर नियमों ने करदाताओं को असमंजस में डाल दिया है। इसके परिणामस्वरूप, भारत के कई सुपर रिच नागरिक देश छोड़ने पर मजबूर हुए और आगे भी ऐसी ही स्थिति देखने को मिलती रहने वाली है। आंकड़ों के अनुसार, 2011 से अब तक 17.50 लाख से अधिक भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी है। विदेश पलायन विदेश मंत्री एस. जयशंकर के अनुसार, 2023 में जून तक 87,026 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ी। 2022 में यह संख्या 2,25,620 थी। ये आंकड़े बताते हैं कि भारतीय नागरिक, विशेष रूप से धनी और उच्च वर्ग, भारत छोड़कर उन देशों में जा रहे हैं जहां टैक्स सिस्टम सरल और कम बोझिल है। इस रुझान के पीछे सबसे बड़ी वजह है, टैक्स के बदले मिलने वाली सुविधाओं की कमी। भारतीय करदाता सरकार को भारी टैक्स तो चुकाते हैं, लेकिन उन्हें बदले में शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, और बुनियादी सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार देखने को नहीं मिलता। यह स्थिति न केवल आम नागरिकों के लिए चुनौतीपूर्ण है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी एक बड़ा खतरा है। जीएसटी और मध्यम वर्ग की समस्याएं मौजूदा सरकार ने जीएसटी को एक सरल और प्रभावी टैक्स सिस्टम के रूप में पेश किया था, लेकिन इसके क्रियान्वयन ने मध्यम वर्ग और छोटे व्यवसायों पर भारी बोझ डाला है। वस्तुओं और सेवाओं पर उच्च दर से कर वसूली ने महंगाई को बढ़ाया है। आम आदमी के लिए रेस्टोरेंट में खाना, कपड़े खरीदना, या छोटे-मोटे व्यापार करना अब पहले की तुलना में महंगा हो गया है। सरकार की जिम्मेदारी टैक्स का मकसद देश की भलाई के लिए धन जुटाना है, लेकिन यह तभी सार्थक है जब जनता को उसके बदले बेहतर सुविधाएं मिलें। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी ढांचे में सुधार के बिना टैक्स वसूली केवल जनता में नाराजगी और असंतोष बढ़ा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को इस पर ध्यान देना होगा। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि टैक्स का बोझ जनता के जीवन को आसान बनाए, न कि और कठिन बना जीना ही दूभर कर दे। टैक्स दरों में कमी, कर प्रणाली का सरलीकरण, और सरकारी सेवाओं में सुधार जैसे कदम जनता का भरोसा बहाल कर सकते हैं। एक प्रभावी और सुविधाजनक कर प्रणाली से भारत के नागरिकों को यह महसूस होना चाहिए कि उनके टैक्स का देश में सही उपयोग हो रहा है। सरकार को टैक्स सिस्टम को पारदर्शी, न्यायसंगत और कम बोझिल बनाना होगा। साथ ही, आम जनता के लिए बेहतर सुविधाएं सुनिश्चित करनी होंगी। यदि इस दिशा में तुरंत ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो ‘टैक्स टेररिज्म’ का यह मुद्दा और गहराता जाएगा, जिससे न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा, बल्कि देश के विकास की गति भी बाधित होगी। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार है। ) ईएमएस / 30 दिसम्बर 24