लेख
26-Dec-2024
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| जाते हुए साल की राजनीति के कुम्भ में डुबकी लगाने वाले भारत देश में राजनीति कितनी बदली ये सभी ने देख लिया है। अब नए साल में प्रयाग में होने वाले कुम्भ के आयोजन से देश की राजनीति कितनी प्रभावित होगी कहना कठिन है। प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से महाकुंभ शुरू होने जा रहा है। आम धारणा है कि महाकुंभ के दौरान संगम में स्नान करने से पुण्यकारी फलों की प्राप्ति होती है। महाकुंभ समाप्त 26 फरवरी 2025 को होगा। महाकुम्भ के लिए उत्तरप्देश की सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। उत्तर प्रदेश धार्मिक गतिविधियों का नाभि केंद्र तो है ही साथ ही राजनीति का भी नाभि केंद्र है । देश का मुखिया बनने के लिए मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी को बह इसी उत्तर प्रदेश में आना पड़ा था। इसी उत्तर प्रदेश ने 2014 और 2019 में भाजपा को चुनावी वैतरणी पार कराई थी और इसी उत्तर प्रदेश ने 2024 में भाजपा की नाव को डुबो भी दिया था ,फलस्वरूप देश के हिस्से में एक लंगड़ी सरकार आयी। उत्तर प्रदेश में राम मंदिर तो भाजपा को 400पार नहीं करा पाया लेकिन अब देखना ये है कि महाकुम्भ भाजपा को दिल्ली जितवा सकता है या नहीं ? अजीब संयोग है कि नए साल में महाकुम्भ और दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने हैं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी पिछले 12 साल से सत्ता में है। भाजपा ने देश की सत्ता तो तीसरी बार हासिल कर ली लेकिन ख़ास दिल्ली की सत्ता आज भी भाजपा के लिए एक ख्वाब ही है। भाजपा को महाकुम्भ के जरिये अपने हिंदुत्व के एजेंडे को और मारक हथियार बनाकर दिल्ली की सत्ता हासिल करना है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार देश की लंगड़ी सरकार की मदद से महाकुम्भ के जरिये पुण्य अर्जित करना चाहती है ,लेकिन गंगा में निर्मल जल ही नहीं है। महाकुंभ के दौरान गंगा और यमुना नदियों में बगैर शोधित मल और जल यानी अनट्रीटेड वाटर छोड़े जाने से रोकने और गंगा जल की पर्याप्त उपलब्धता की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल नई दिल्ली ने बेहद महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। एनजीटी ने केंद्र व यूपी सरकार से कहा है कि महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में गंगाजल की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित की जाए. इसके साथ ही साथ ही गंगाजल की क्वालिटी पीने-आचमन करने और नहाने योग्य भी होनी चाहिए। एनजीटी ने अपने फैसले में कहा है कि महाकुंभ के दौरान जो भी श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने के लिए प्रयागराज आएं. उन्हें गंगाजल को लेकर कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए. गंगा में आस्था की डुबकी लगाने पर श्रद्धालुओं की सेहत पर कोई खराब असर कतई नहीं पड़ना चाहिए। प्रयाग में कुम्भ का आयोजन कब से हो रहा है इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है किन्तु ये एक सनातन आयोजन है। और बिना किसी के सहयोग से होता आ रहा है । ये तब भी सम्पन्न हुआ ,जब देश में मुगलों का शासन था और ये तब भी हुआ जब देश में अंग्रेजों का शासन था। आजादी के बाद से इस आयोजन को राजसत्ता की प्रत्यक्ष मदद मिलने लगी लेकिन देश की राजनीति में जब से भाजपा का जन्म हुआ है और भाजपा उत्तर प्रदेश की सत्ता में आई है तब से कुम्भ का आयोजन धार्मिक के साथ ही राजनीतिक आयोजन भी ही गया है। यानि अब महाकुम्भ के माध्यम से राजनीतिक लक्ष्य भी साधे जाने लगे हैं। इस साल उत्तर प्रदेश सरकार के कन्धों पर कुम्भ के जरिये दिल्ली की सत्ता हासिल करने का लक्ष्य है। भाजपा के लिए ये बड़ा लक्ष्य है। आपको बता दें कि प्रयागराज का कुम्भ 14 जनवरी से 10 मार्च 2013 के बीच आयोजित किया गया। यह कुल 55 दिनों के लिए था, इस दौरान इलाहाबाद (प्रयागराज) सर्वाधिक लोकसंख्या वाला शहर बन जाता है। 5 वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में 8 करोड़ से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया था। आंकड़ों के हिसाब से ये दुनिया का सबसे बड़ा जमावड़ा है ,लेकिन आबादी की दृष्टि से देखें तो 144 करोड़ के इस देश में से 1 प्रतिशत आबादी भी कुम्भ नहीं पहुँच पाती।कुम्भ के मेले एक तरफ सद्भाव के केंद्र भी बनते हैं तो अतीत में ये पारस्परिक संघर्ष के साक्षी भी रहे हैं। 1690 में नासिक में शैव और वैष्णव साम्प्रदायों में संघर्ष; 60,000 लोग मारे गए थे। 1760 - शैवों और वैष्णवों के बीच हरिद्वार मेलें में संघर्ष; 1,800 मरे।1820 के हरिद्वार मेले में हुई भगदड़ से 430 लोग मारे गए। भगदड़ की अनेक घटनाएं कुम्भ के मेलों में हो चुकी हैं। पिछले एक दशक में भाजपा ने देश के अनेक धार्मिक आयोजनों को धार्मिक पर्यटन मेलों में बदल दिया है। प्रयाग का तो नाम तक बदल दिया गया। पहले प्रयाग को अल्लाहाबाद बनाया गया ,फिर इलाहबाद और अब एक बार फिर प्रयाग बना दिया गया है। भाजपा एक बार फिर से महाकुम्भ के जरिये पुण्य के साथ सत्ता सुख भी हासिल करना चाहती है। अयोध्या में राम मंदिर भाजपा को पिछले आम चुनाव में अपेक्षित लाभ नहीं दिला पाया ,लेकिन भाजपा को उम्मीद है की कुम्भ के जरिये 2024 में हुए घाटे को पूरा किया जा सकेगा।