-वर्मा ने कहा था-गरीब आदमी प्याज खाता ही नहीं बयान का हुआ था विरोध नई दिल्ली,(ईएमएस)। दिल्ली में अगले साल विधानसभा होना है। बात साल 1977 की है, जब देश में मोरार जी देसाई की सरकार थी। उसी समय दिल्ली में स्थानीय निकाय के चुनाव हुए थे। इस चुनाव में साहिब सिंह वर्मा ने अपना राजनीतिक डेब्यू किया था। वह केशवपुरम वॉर्ड से पार्षद चुने गए। इसके बाद दिल्ली की स्थानीय राजनीति में साहिब सिंह वर्मा का नाम चलने लगा था। दिल्ली में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्याज की किल्लत हो गई। दाम आसमान छू रहे थे। प्याज 60-80 रुपए किलो बिक रही थी। इसी बीच पत्रकारों ने जब सीएम से पूछा कि गरीब आदमी प्याज के बारे में सोच भी नहीं सकता? तो साहिब सिंह वर्मा ने कहा कि गरीब आदमी प्याज खाता ही नहीं है। सीएम के इस बयान को कांग्रेस ने लपक लिया। शीला दीक्षित ने इसका विरोध किया। महंगाई के खिलाफ लोगों का गुस्सा और चुनाव देखते हुए बीजेपी ने एक दांव चला। विधानसभा चुनाव से ठीक दो महीने पहले ही साहिब सिंह वर्मा को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा। प्याज की महंगाई के विरोध में साहिब सिंह वर्मा ने इस्तीफा दे दिया तो 12 अक्टूबर 1998 को सुषमा स्वराज सीएम बना दिया गया। साहिब सिंह वर्मा ने उनके नाम का प्रस्ताव रखा। दिल्ली के चौथे मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा थे। साहिब सिंह का जन्म दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर बसे मुंडका गांव में एक जाट परिवार में हुआ था। उन्होंने लाइब्रेरी साइंस में पीएचडी की थी और लाइब्रेरियन का काम भी किया था। बताते हैं कि एक प्रोफेसर की सलाह पर साहिब सिंह ने अपने नाम के आगे वर्मा जोड़ा था। साहिब सिंह वर्मा शुरुआत से ही आरएसएस से जुड़े थे साथ ही वह वर्ल्ड जाट आर्यन फाउंडेशन के अध्यक्ष भी थे। दिल्ली में साहिब सिंह वर्मा की मजबूत पकड़ को देखते हुए उन्हें 1991 में बाहरी दिल्ली लोकसभा सीट से टिकट दिया। उनके सामने चुनाव लड़ रहे थे संजय गांधी के करीबी सज्जन कुमार थे। इस चुनाव में सज्जन कुमार ने भारी मतों से जीत हासिल की लेकिन चुनाव हार कर भी साहिब सिंह वर्मा छा गए। इस चुनाव ने साहिब सिंह वर्मा को दिल्ली के गांवों के नेता के रूप में पहचान मिली। लोकसभा चुनाव के बाद दिल्ली में साल 1993 में विधानसभा के चुनाव होने थे। साहिब सिंह वर्मा को शालीमार बाग से टिकट मिला। साहिब सिंह ने कांग्रेस उम्मीदवार को 21 हजार वोटों से हरा दिया। इस चुनाव में बीजेपी ने दिल्ली में कमाल का प्रदर्शन किया और 70 में से 49 सीटों पर जीत हासिल की। बीजेपी की जीत के बाद मदन लाल खुराना को दिल्ली का सीएम बनाया गया लेकिन साहिब सिंह वर्मा के कद को देखते हुए उन्हें नंबर-2 की पोस्ट शिक्षा और विकास मंत्री बनाया था, लेकिन सरकार के गठन के कुछ दिन बाद से ही खुराना और साहिब सिंह के बीच पटरी नहीं बैठी। शिक्षकों की भर्ती और नेताओं की खेमेबाजी को लेकर दोनों के बीच सियासी रस्साकसी शुरु हो गई थी। 1996 में दिल्ली की सियासत में भूचाल आ गया। 16 जनवरी 1996 को जैन हवाला केस में चार्जशीट दाखिल की गई। इसके बाद बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी को सांसद पद से इस्तीफा देना पड़ा था, इसमें दिल्ली के सीएम खुराना का नाम भी सामने आया। आरोप था कि डायरी में खुराना के नाम के आगे 3 लाख रुपए की एंट्री थी। अब मदनलाल खुराना पर भी इस्तीफे का दबाव बढ़ने लगा। आखिरकार उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था। खुराना के इस्तीफे के बाद साहिब सिंह वर्मा की सियासी किस्मत चमकी। उस वक्त सीएम को लेकर दो नामों पर सबसे ज्यादा बहस चल रही थी। एक नाम था सुषमा स्वराज तो दूसरा नाम था हर्षवर्धन का। वर्मा के सामने बड़ी चुनौती तब आई जब खुराना को जैन हवाला मामले में क्लीनचिट मिल गई। अब उनके समर्थकों ने फिर सीएम को लेकर दबाव डालना शुरू कर दिया लेकिन अब साहिब सिंह वर्मा अपनी जड़े जमा चुके थे। दोनों नेताओं में फिर टकराव तेज हो गया। खुराना और साहिब गुट खुलकर एक दूसरे पर आरोप लगा रहे थे। इसी बीच दिल्ली में उपहार सिनेमा, यमुना में स्कूली बच्चों की बस गिरना समेत कई बड़े हादसे हुए जिसने साहिब सरकार की छवि को धूमिल कर दिया लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा महंगाई को लेकर शुरू हो गई थी। केंद्रीय आला कमान में कुछ लोग सुषमा का नाम आगे बढ़ा रहे थे, जबकि खुराना खेमा हर्षवर्धन को सीएम बनाने के पक्ष में था। 23 फरवरी को विधायकों की बैठक बुलाई गई, लेकिन यहां कहानी कुछ और ही सामने आई। बैठक में 31 विधायकों ने तीसरे विकल्प को चुना और साहिब सिंह वर्मा के नाम पर मुहर लगा दी गई। आखिरकार आलाकमान को झुकना पड़ा। इस तरह से साहिब सिंह वर्मा दिल्ली के चौथे मुख्यमंत्री चुने गए थे। 26 फरवरी 1996 को साहिब सिंह वर्मा ने सीएम पद की शपथ ली, लेकिन बीजेपी ने मदनलाल खुराना को दिल्ली बीजेपी विधायक दल का चेयरमैन बना दिया गया। वहीं, साहिब सिंह वर्मा ने सरकार से कहा कि खुराना के समय जो मंत्रिमंडल था उससे छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। कुछ ही महीनों बाद जब लोकसभा के चुनाव हुए तो बीजेपी ने दिल्ली की सभी 7 सीटें जीत लीं। इसमें एक नाम साहिब सिंह वर्मा का भी था। जो बाहरी दिल्ली से सांसद बन चुके थे और 2 लाख के अंतर से कांग्रेस उम्मीदवार को हराया था। लेकिन केंद्रीय मंत्री बनने के लिए उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ा। वाजपेई सरकार में 2002 में उन्हें श्रम मंत्री बनाया गया। 2004 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2007 में एक सड़क हादसे में साहिब सिंह वर्मा का 64 साल की उम्र में निधन हो गया। सिराज/ईएमएस 26दिसंबर24