लंदन,(ईएमएस)। बर्फ से ढका रहने वाला आर्कटिक अब इसका समुद्री बर्फ का 10-12 फीसदी हिस्सा पिघल रहा है, जो पिछले 1500 सालों में सबसे तेज़ दर है। यह पर्यावरणीय बदलाव न केवल आर्कटिक क्षेत्र तक सीमित है, बल्कि पूरे ग्रह पर इसका असर पड़ रहा है। धरती का तापमान बढ़ने के कारण आर्कटिक की बर्फ तेजी से पिघल रही है। ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता स्तर तापमान को और बढ़ा रहा है। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण आर्कटिक क्षेत्र में तापमान वृद्धि की दर अन्य स्थानों से दोगुनी तेज़ है। तेल और गैस का दोहन, शिपिंग और आर्कटिक क्षेत्र में बढ़ती मानव गतिविधियां बर्फ के पिघलने में योगदान कर रही हैं। बर्फ के पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, जिससे तटीय क्षेत्रों और द्वीप देशों को डूबने का खतरा है। बर्फ पिघलने से पृथ्वी की जलवायु प्रणाली पर असर पड़ रहा है। इसका परिणाम अनियमित मानसून, बाढ़, और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाएं हैं। आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ पिघलने से ध्रुवीय भालू, सील, और अन्य आर्कटिक जीवों के आवास नष्ट हो रहे हैं। आर्कटिक की बर्फ सूरज की किरणों को वापस अंतरिक्ष में भेजने में मदद करती है। इसके पिघलने से ग्लोबल वॉर्मिंग और तेज़ हो रही है। बर्फ पिघलने से पूरी दुनिया के लिए खतरा बढ़ गया है। बर्फ पिघलने से नए समुद्री रास्ते बन रहे हैं, लेकिन इससे पर्यावरणीय जोखिम बढ़ रहा है। बर्फ पिघलने से तेल और गैस भंडार तक पहुंच आसान हो रही है, जिससे पारिस्थितिक तंत्र को खतरा है। आर्कटिक क्षेत्र में हो रहे बदलाव वैश्विक जलवायु संतुलन को प्रभावित कर रहे हैं। कार्बन फुटप्रिंट को कम करना और नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना। पेरिस समझौते जैसे अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को सख्ती से लागू करना होगा। आर्कटिक क्षेत्र में हो रहे बदलावों पर निरंतर शोध और डेटा संग्रह करना जरुरी है। ध्रुवीय जीव-जंतुओं और उनके आवासों की रक्षा के लिए सख्त नीतियां। आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ पिघलने की दर पूरी मानवता के लिए चेतावनी है। यह सिर्फ एक क्षेत्रीय समस्या नहीं, बल्कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन का संकेत है। इसे रोकने के लिए तुरंत और सामूहिक प्रयासों की जरुरत है। सिराज/ईएमएस 25 दिसंबर 2024