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22-Dec-2024
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नई दिल्ली,(ईएमएस)। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने चुनाव नियमों में संशोधन को लेकर केंद्र सरकार पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने इसे चुनाव आयोग की निष्पक्षता और लोकतंत्र को कमजोर करने की एक सोची-समझी साजिश करार दिया। खड़गे ने केंद्र सरकार पर चुनाव आयोग की स्वतंत्रता खत्म करने का आरोप लगाते हुए इसे संविधान और लोकतंत्र पर सीधा हमला बताया। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को चुनाव आयोग की सिफारिश पर चुनाव नियम, 1961 में संशोधन किया है। इसके तहत सीसीटीवी फुटेज, वेबकास्टिंग, और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों को सार्वजनिक निरीक्षण से बाहर रखा गया है। केंद्र का तर्क है कि यह कदम इन दस्तावेजों के दुरुपयोग को रोकने के लिए उठाया गया है। कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट करते हुए कहा कि चुनाव नियमों में संशोधन भारत के चुनाव आयोग की संस्थागत अखंडता को नष्ट करने की एक व्यवस्थित साजिश है। उन्होंने आरोप लगाया कि इससे पहले मोदी सरकार ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से संबंधित चयन पैनल से मुख्य न्यायाधीश को हटा दिया था, और अब हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद चुनावी जानकारी को सार्वजनिक करने से रोकने का प्रयास किया जा रहा है। कांग्रेस की आपत्तियां चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल: खड़गे ने कहा कि जब भी कांग्रेस ने चुनाव में अनियमितताओं, मतदाता सूची से नाम हटाने, और ईवीएम की पारदर्शिता को लेकर शिकायत की, चुनाव आयोग ने उन्हें खारिज कर दिया। संविधान पर हमला: उन्होंने कहा कि यह कदम चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को कमजोर कर संविधान और लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से उठाया गया है। रूल 93 का उल्लंघन: खड़गे ने बताया कि चुनाव से जुड़े सभी कागजात सार्वजनिक निरीक्षण के लिए उपलब्ध होने चाहिए। हालांकि, नए नियमों के तहत इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को इससे बाहर रखा गया है। खड़गे ने स्पष्ट किया कि कांग्रेस लोकतंत्र और संविधान की सुरक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएगी। उन्होंने कहा कि यह संशोधन लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर हमला है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। सरकार का पक्ष केंद्र सरकार का कहना है कि यह संशोधन चुनावी दस्तावेजों के दुरुपयोग को रोकने के लिए किया गया है और यह पारदर्शिता को प्रभावित नहीं करेगा। राजनीतिक विवाद की शुरुआत चुनाव नियमों में यह बदलाव एक नई बहस को जन्म दे चुका है। जहां सरकार इसे एक सुधार के रूप में देख रही है, वहीं विपक्ष इसे लोकतंत्र पर खतरा मान रहा है। आगामी चुनावों में यह मुद्दा राजनीतिक चर्चा का केंद्र बन सकता है। हिदायत/ईएमएस 22दिसंबर24