साल 2055 तक कई देशों में जन्मदर का स्तर काफी गिर जाएगा नई दिल्ली (ईएमएस)। वर्तमान में दुनिया की आबदी तेजी से बढ़ रही है। इंसानों की जनसंख्या 8 अरब पार हो चुकी हैं। इतना ही नहीं दुनिया के कई देशों में अधिक जनसंख्या बड़ी चुनौती बनाती जा रही है। पिछली एक सदी में दुनिया की आबादी में बहुत ही तेजी से उछाल आया है। हाल ही में एक अध्ययन में बताया गया है कि अभी भले ही दुनिया की आबादी बढ़ रही है। लेकिन आने वाले सालों में आबादी तेजी से घटने वाली है। इसके बाद वैज्ञानिकों ने कई तरह के खतरों से आगाह किया है। इसका सबसे ज्यादा असर दुनिया की सारी अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ेगा। भारत भी इससे अछूता नहीं रहेगा। इतिहासकार बताते हैं कि होमोसेपियन्स बनने के बाद से इंसानों की आबादी बढ़ रही है, और दसवीं सदी तक यह कुछ करोड़ हो गई थी। लेकिन औद्योगिक क्रांति के बाद से लोगों का जीवन स्तर सुधरा और उसके बाद जनसंख्या में तेजी देखने को मिली 20वीं सदी में रफ्तार बहुत ही तेज हुई और 1900 में जो आबादी एक अरब थी, साल 2000 तक 6 अरब हो गई, जो साल 2022 में 8 अरब हो गई। लेकिन अध्ययन बता रहे हैं कि अब दुनिया की बढ़ती आबादी की रफ्तार उलट जाएगी और तेजी से घटेगी। नए अध्ययन के मुताबिक साल 2055 में दुनिया के 204 में 155 देशों में इतने बच्चे पैदा नहीं हो सकते हैं, कि दुनिया की आबादी स्थिर रह सके और 2100 तक दुनिया का 198 देशों का यह हाल हो जाएगा। और इसका सबसे बड़ा कारण एक ही है, तेजी से गिरती जन्म दर! शोधकर्ताओं का कहना है की उनके अब तक के सबसे व्यापक विश्लेषण के अनुसार हर साल मरने वालों की संख्या पैदा होने वालों से ज्यादा होगी। हो सकता है कि कम जनसंख्या दुनिया के कई इलाकों को रहने के लिहाज से बेहतर जगह बना देगी, यहां तक कि संसाधनों पर पड़ रहा बहुत ज्यादा दबाव कम होगा। लेकिन इसके बावजूद बात चिंता की है क्योंकि बहुत सी जगहों पर प्रजनन दर बहुत ज्याद गिर गई है और इसके इसतरह रहने की संभावना अधिक है। बूढ़ी होती आबादी के से श्रम शक्ति कमजोर होगी ही, इस आबादी का भी ख्याल रखना खर्चीला होगा। चिकित्सा क्षेत्र पर दबाव बढ़ेगा, वहां सक्षम कामगारों की भारी कमी होगी। बेशक संसाधनों पर दबाव कम होगा और प्रदूषण भी कम होगा, लेकिन जनसंख्या का असामान्य वितरण एक नई तरह की चुनौती ला देगा और संसाधन प्रबंधन कठिन होगा। दुनिया भर में राजनैतिक स्तर पर इन बदलावों का असर साफ दिखेगा। भारत नहीं रहेगा अछूता ऐसा नहीं है कि इसका असर भारत पर नहीं पड़ेगा, बल्कि भारत उन चिंताओं से घिर जाएगा, जिन परेशानियों से आज चीन और जापान और कोरिया जैसे देश परेशान हैं। भारत में बूढ़ी आबादी बहुत ही अधिक होगी, इस बूढी आबादी को संभालना मुश्किल होगा। लेकिन भारत जैसे देश में ऐसी समस्याओं के अलावा और भी चुनौतियां देखने को मिलेंगी। दुनिया भर में महिलाओं पर ज्यादा बच्चे पैदा करने का दबाव बढ़ाया जाएगा। परिवार, खास तौर से संयुक्त परिवार बचाने पर ज्यादा जोर होगा। आशीष/ईएमएस 22 दिसंबर 2024