लेख
22-Dec-2024
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(23 दिसंबर राष्ट्रीय किसान दिवस विशेष) आज का मेरा यह लेख बदलते मौसम जीवन और मृत्यु के चक्र और प्रकृति के खिलाफ़ निरंतर संघर्ष को झेलने वाले हमारे उन गुमनाम नायकों को समर्पित है जिनकी खुशियाँ सरल हैं -अच्छा मानसून भरपूर फसल और अपने बच्चों के चेहरे पर मुस्कान हालांकि उनके दुख गहरे हैं - बंजर खेत और बढ़ता कर्ज। राष्ट्रीय किसान दिवस यानी एक ऐसे राजनीतिक व्यक्तित्व की जयंती का दिन जिन्होंने भारतीय राजनीति के जाने कितने ही बड़े संवैधानिक पदों पर रहकर ये दिखा गया कि कतार में खड़े आखिरी व्यक्ति के जीवन में कैसै बदलाव लाया जा सकता है। जी हां मैं बात कर रही हूं किसानों के मसीहा कहे जाने वाले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जिन्होंने 1979 से 1980 तक के अपने कार्यकाल के दौरान ना केवल किसानों की स्थिति में सुधार लाने का प्रयास किया बल्कि देश की कृषि नीतियों को आकार देने में बेहद अहम भूमिका निभाई और कई कल्याणकारी कार्यक्रम विकसित किए। भारत की ग्रामीण आबादी का अधिकांश हिस्सा जो देश के सकल घरेलू उत्पाद का 20% हिस्सा है अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है जो कि आबादी का लगभग 50% है लिहाजा दसवीं भारतीय सरकार ने कृषि उद्योग और किसानों के कल्याण में चौधरी चरण singhke योगदान का सम्मान करने के लिए 2001 में उनकी जयंती को किसान दिवस के रूप में नामित करने का फैसला किया। 23 दिसंबर 1902 को गाजियाबाद ( पश्चिम उत्तर प्रदेश) के नूरपूर गांव में जन्मे चौधरी चरण सिंह बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव के रहे हैं। बचपन से ही देश के लिए कुछ करने की ललक रखने वाले चरण सिंह अपने अक्खंड़ रवैये और सिद्धांतों से समझौता न करने के लिए मशहूर थे। कांग्रेस में ही रहते हुए उन्होंनने नेहरू के विचारों, योजनाओं और उनकी संकल्पंनाओं को गलत कहने का साहस दिखाया। उनकी शिक्षा सरकारी उच्च विद्यालय और विश्वविद्यालय मेरठ से पूरी हुई। उन्होंने विज्ञान स्नातक कला स्नातकोत्तर और विधि स्नातक की पढ़ाई की थी। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पारित हुआ जिससे प्रभावित होकर युवा चौधरी चरण सिंह राजनीति में सक्रिय हो गए। उन्होंने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया। 1930 में जब महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया तो उन्होंने हिंडन नदी पर नमक बनाने के प्रयास के क्रम में उन्हे जेल भी जाना पड़ा। 1937 में छपरौली (उत्तर प्रदेश) विधानसभा के लिए चुने गए एवं 1946, 1952, 1962 एवं 1967 में विधानसभा में अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। उनके निर्देशन में ऋण मोचन विधेयक 1939 का मसौदा तैयार किया गया और उसे पूरा किया गया। इस विधेयक का उद्देश्य ग्रामीण आबादी को साहूकारों से बचाना था। 1946 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में वह संसदीय सचिव बने और राजस्व, चिकित्सा एवं लोक स्वास्थ्य, न्याय, सूचना इत्यादि विभिन्न विभागों में कार्य किया। जून 1951 में उन्हें राज्य के कैबिनेट मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया एवं न्याय तथा सूचना विभागों का प्रभार दिया गया। qएक जुलाई1952 को यूपी में उनके बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ। यकीनन उनके द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था। उन्होंने न केवल लेखापाल के पद का सृजन किया बल्कि किसानों के हित में उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को भी पारित कराया। बाद में 1954 में वे डॉ. सम्पूर्णानन्द के मंत्रिमंडल में राजस्व एवं कृषि मंत्री बने। अप्रैल 1959 में जब उन्होंने पद से इस्तीफा दिया, उस समय उन्होंने राजस्व एवं परिवहन विभाग का प्रभार संभाला हुआ था। श्री सी.बी. गुप्ता के मंत्रालय में वे गृह एवं कृषि मंत्री थे। 1960 में भूमि जोत अधिनियम लाने में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिसका उद्देश्य भूमि जोत की अधिकतम सीमा को कम करके उसे पूरे राज्य में एक समान बनाना था। श्रीमती सुचेता कृपलानी के मंत्रालय में वे कृषि एवं वन मंत्री (1962-63) रहे। उन्होंने 1965 में कृषि विभाग छोड़ दिया एवं 1966 में स्थानीय स्वशासन विभाग का प्रभार संभाल लिया। कांग्रेस विभाजन के बाद फरवरी 1970 में दूसरी बार वे कांग्रेस पार्टी के समर्थन से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हालांकि राज्य में 2 अक्टूबर 1970 को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। निसंदेह एक कठोर कार्यपालक के रूप में ख्याति अर्जित करने वाले चौधरी चरण सिंह प्रशासन में अकुशलता भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करते थे। 28 जुलाई 1979 विषम परिस्थितियों में चौधरी चरण सिंह के सिर पर प्रधानमंत्री का ताज सजा। मगर यह ताज कांटों भरा था। सदन में बहुमत साबित करने के दौरान इंदिरा गांधी ने अपना समर्थन वापस ले लिया और उनकी सरकार गिर गई। मजह 23 दिनों तक प्रधानमंत्री के पद पर काबिज रहे चौधरी चरण सिंह संसद का मुंह नहीं देख पाए। चौधरी चरण सिंह को 20 अगस्त 1979 को अपना इस्तीफा देना पड़ा लेकिन 14 जनवरी 1980 तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने रहे। वह सामाजिक न्याय में दृढ़ विश्वास रखते थे और लाखों किसानों के बीच उनका विश्वास कायम था। समाज में हाशिए पर पड़े लोगों के सशक्तिकरण के लिए किए गए उनके अथक प्रयास को याद करते हुए फरवरी 2024 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा की गयी। सादा जीवन उच्च विचार वाले चौधरी चरण सिंह ने अपने खाली समय में कई किताबें एवं पुस्तिकाएं भी लिखी जिसमें ‘ज़मींदारी उन्मूलन’, ‘भारत की गरीबी और उसका समाधान’, ‘किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि, ‘प्रिवेंशन ऑफ़ डिवीज़न ऑफ़ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम’, ‘को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रयेद्’ आदि प्रमुख हैं। यकीनन आज राष्ट्रीय किसान दिवस के मौके पर देश भर में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों की योजना बनाई गई होगी जिनमें कार्यक्रम, वाद-विवाद, सेमिनार, प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता, चर्चाएं, कार्यशालाएं, प्रदर्शनियां और समारोह शामिल होंगे पर क्या इन सभी आयोजनों से हमारे किसान भाइयों के जीवन शैली में कुछ परिवर्तन आएगा। अत्यंत दुखद है कि नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चरल एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) की एक रिपोर्ट में किसान परिवारों की आय के बारे में चौकाने वाले खुलासे किए गए हैं। इसमें बताया गया है कि 2021-22 में प्रति किसान परिवार सभी स्रोतों से औसत मासिक कमाई स‍िर्फ 13,661 रुपये है। किसान फिर सड़क पर है और एक बार फिर किसान की आय और एमएसपी की कानूनी गारंटी पर बहस छिड़ चुकी है।किसानों पर बढ़ता कर्ज उपज का सही दाम।ना मिलना,बिजली के बढ़ते बिल आदि उनके प्रमुख मुद्दे हैं लेकिन किसानों की प्रमुख मांगें पूरी होना तो दूर उनकी हालत और खराब होती जा रही है। यकीनन जरूरत एक ऐसे माहौल की जिसमें किसानों में प्रगतिशील सोच विकसित हो और वे अपनी फसलों पर ऊँचा मुनाफा पा सकें। ईएमएस / 22 दिसम्बर 24