लेख
21-Dec-2024
...


भारत में लोकतांत्रिक प्रणाली का आधार संघीय ढांचा है, जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन है। वन नेशन, वन इलेक्शन की अवधारणा देश में चुनावी प्रक्रिया को एकीकृत और सरल बनाने की कोशिश है। इस विचार का उद्देश्य लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराना है। इस पहल के समर्थक इसे समय, संसाधन और धन की बचत के साथ-साथ विकास कार्यों में बाधा कम करने का जरिया मानते हैं। हालांकि, यह विषय विवादास्पद है और इसे लेकर छत्तीसगढ़ सहित देश के सभी राज्यों में गहन चर्चा हो रही है। इसके समर्थकों का मानना है कि यह प्रशासनिक स्थिरता और विकास कार्यों में तेजी लाएगा, जबकि विरोधी इसे संघीय ढांचे और क्षेत्रीय मुद्दों के लिए हानिकारक मानते हैं। उनका मानना है कि वन नेशन, वन इलेक्शन की अवधारणा को लागू करना भारतीय संघीय ढांचे के खिलाफ है। केंद्र के साथ भाजपा शासित राज्य इस पहल का समर्थन करते है। भाजपा यह कह रही है कि इससे विकास कार्यों में तेजी आएगी और भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी। बार-बार चुनाव होने के कारण राज्य की प्रशासनिक कामकाज प्रभावित होता है। आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य रुक जाते हैं। यदि चुनाव एक साथ हों, तो विकास योजनाओं में रुकावट कम होगी और सरकारी धन का दुरुपयोग रोका जा सकेगा। कांग्रेस और गैर भाजपा शासित राज्य की पार्टियां तथा कुछ क्षेत्रीय दलों द्वारा विरोध देखने को मिल रहा है। उनका मानना है कि यह एक राजनीतिक एजेंडा है, जो क्षेत्रीय दलों को कमजोर करेगा इसके साथ ही यह राज्य की स्वायत्तता और संघीय ढांचे पर आघात है। एक साथ चुनाव होने से उन्हें बड़े राष्ट्रीय दलों के सामने संसाधनों और ध्यान के अभाव में नुकसान हो सकता है। छत्तीसगढ़ जैसे अन्य राज्यों में कई छोटे और क्षेत्रीय दल हैं, जिनका आधार स्थानीय मुद्दे होते हैं। क्षेत्रीय मुद्दे, जैसे आदिवासी अधिकार, खनन उद्योग के पर्यावरणीय प्रभाव, और किसानों की समस्याएं, राष्ट्रीय राजनीति के दबाव में दब सकते हैं। राष्ट्रीय मुद्दे चुनाव प्रचार में हावी हो सकते हैं, जिससे स्थानीय समस्याओं पर चर्चा सीमित हो जाएगी। देश में छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी बहुल राज्य भी है जिनमें बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय निवास करती है। छत्तीसगढ की राजनीति अक्सर क्षेत्रीय मुद्दों जैसे किसानों की समस्याएं, आदिवासी अधिकार, खनिज संसाधनों का उपयोग, और स्थानीय विकास परियोजनाओं के इर्द-गिर्द घूमती है। छत्तीसगढ़ जैसे विकासशील राज्य में वन नेशन, वन इलेक्शन से विकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी आ सकती है। यह शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे और रोजगार सृजन से संबंधित परियोजनाओं को समय पर पूरा करने में सहायक हो सकता है। यदि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं, तो राज्य और केंद्र सरकारों के बीच बेहतर तालमेल बन सकता है। यदि वन नेशन, वन इलेक्शन लागू होती है तो यह छत्तीसगढ़ के विकास और राजनीति पर गहरा प्रभाव डाल सकता है इससे छत्तीसगढ़ को केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ आगामी चुनावों में भी देखने को मिल सकता है। केन्द्र सरकार यदि वन नेशन, वन इलेक्शन को लागू करती हैं तो उसे कई संवैधानिक और प्रशासनिक बदलावों की आवश्यकता होगी। जैसे संविधान में संशोधन। चुनाव आयोग को अतिरिक्त अधिकार और संसाधन देना। राज्यों और राजनीतिक दलों की व्यापक सहमति तथा क्षेत्रीय और राष्ट्रीय मुद्दों के बीच संतुलन बनाना होगा। इसलिए इसे लागू करने से पहले छत्तीसगढ़ जैसे अन्य राज्यों के क्षेत्रीय हितधारकों, राजनीतिक दलों और जनता की राय लेना आवश्यक है साथ ही राज्य में क्षेत्रीय जरूरतों और संवेदनाओं का ध्यान रखना अत्यंत महत्वपूर्ण होगा। ईएमएस / 21 दिसम्बर 24