न्यूयॉर्क (ईएमएस)। इन्फ्लूएंजा वायरस, विशेषकर फ्लू वायरस, रेफ्रिजरेटर में रखे कच्चे दूध में पांच दिनों तक जीवित रह सकते हैं। यह दावा किया है स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने। स्टैनफोर्ड डोएर स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी की वरिष्ठ लेखिका एलेक्जेंड्रिया बोहम के अनुसार, यह अध्ययन कच्चे दूध के सेवन से एवियन इन्फ्लूएंजा के जोखिम को और पाश्चराइजेशन के महत्व को उजागर करता है। कच्चे दूध के समर्थकों का कहना है कि यह पाश्चराइज्ड दूध से अधिक लाभकारी होता है क्योंकि इसमें अधिक पोषक तत्व, एंजाइम और प्रोबायोटिक्स होते हैं, जो प्रतिरक्षा और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं। हालांकि, यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने कच्चे दूध से संबंधित 200 से अधिक बीमारियों की चेतावनी दी है, जिसमें ई. कोली और साल्मोनेला जैसे खतरनाक कीटाणु शामिल हैं, जो बच्चों, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों के लिए गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकते हैं। इस अध्ययन में पाया गया कि कच्चे गाय के दूध में मानव इन्फ्लूएंजा वायरस का एक प्रकार सामान्य रेफ्रिजरेशन तापमान पर पांच दिनों तक जीवित रहा और संक्रामक भी बना रहा। अध्ययन के सह-प्रमुख लेखक मेंगयांग झांग ने बताया कि यह इन्फ्लूएंजा वायरस कच्चे दूध के संपर्क में आने वाली सतहों और पर्यावरणीय सामग्रियों को भी दूषित कर सकता है, जिससे जानवरों और मनुष्यों के लिए जोखिम पैदा हो सकता है। विशेष रूप से, शोधकर्ताओं ने पाया कि फ्लू वायरस का आरएनए अणु, जो आनुवंशिक जानकारी रखते हैं, कच्चे दूध में कम से कम 57 दिनों तक मौजूद रहा। हालांकि, पाश्चराइजेशन प्रक्रिया ने दूध में संक्रामक इन्फ्लूएंजा वायरस को पूरी तरह नष्ट कर दिया, और वायरल आरएनए की मात्रा को लगभग 90 प्रतिशत तक कम कर दिया। इस अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ कि कच्चे दूध और इसके संपर्क में आने वाली वस्तुओं से वायरस के फैलने का खतरा है, खासकर जब बर्ड फ्लू मवेशियों के बीच फैल रहा है। यह नया अध्ययन उस समय सामने आया है जब डेयरी मवेशियों में बर्ड फ्लू के प्रकोप ने महामारी के खतरे को बढ़ा दिया है। सुदामा/ईएमएस 19 दिसंबर 2024