ज़रा हटके
05-Dec-2024
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न्यूर्याक (ईएमएस)। अमेरिका में एक ऐसा प्रयोग 87 सालों से चल रहा है। यह प्रयोग है खुशी को लेकर। हार्वर्ड स्टडी ऑफ एडल्ट डिवेलपमेंट ने इस प्रयोग को दो अलग अलग अध्ययन के तौर पर साल 1938 में शुरू किया था। इनमें से पहले को विलियम टी ग्रांट फाउंडेशन ने आर्थिक मदद दी थी और इसे डॉ जॉर्ज ई वायलेंट ने शुरू किया था। इसमें हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के स्नातक कक्षों के 268 पुरुषों को शामिल किया गया था। उसी समय ग्लूएक स्टडी ने भी 456 पुरुष प्रतिभागियों के साथ बोस्टन के आसपास के इलाके में एक स्टडी की शुरुआत की थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी भी इस प्रयोग का हिस्सा रहे थे। दोनों ही प्रयोगों का मकसद भाग लेने वालों की पूरी जिंदगी के बारे में जानकर उन सारी बातों को जानना था जो उनके बढ़ती उम्र के साथ उनकी सेहत और खुशी पर असर डालते हैं। पर आज मूल प्रयोग में भाग लेने वालों में से कुछ ही जिंदा बचे है। अब यह अध्ययन संयुक्त रूप से दूसरी पीढ़ी के मोड में प्रवेश कर चुका है जहां मूल प्रतिभागियों के बच्चों पर निगरानी रखी जा रही है। आज मनोवैज्ञानिक डॉ रोबर्ट वाल्डिंगर इस अध्ययन की अगुआई कर रहे हैं। उन्होंने अपने साथी निदेशक डॉ मार्क शुल्ज के साथ इस अध्ययन के नतीजे एक किताब के तौर पर प्रकाशित किए हैं जिसका शीर्षक है ”द गुड लाइफ: द लेसन्स फ्रॉम द वर्ल्ड्स लॉन्गेंस्ट साइंटिफिक स्टडी ऑफ हैप्पीनेस” अध्ययन का सबसे बड़ा खुलाया यही है कि रिश्ते सबसे ज़्यादा मायने रखते हैं। वाल्डिंगर ने 2017 में द हार्वर्ड गज़ेट को बताया कि “हमारे रिश्ते और हम अपने रिश्तों में कितने खुश हैं, इसका हमारे स्वास्थ्य पर बहुत गहरा असर पड़ता है। अपने शरीर की देखभाल करना ज़रूरी है, लेकिन अपने रिश्तों को संभालना भी एक तरह से खुद की ही देखभाल है।” अध्ययन में, विशेष रूप से कोविड-19 के समय को ध्यान में रखते हुए पाया गया कि अकेलापन सेहत पर खासा असर डालता है। कुछ दूसरे अध्ययनों के अनुसार, अलगाव के प्रभाव धूम्रपान या मोटापे के तरह हैं। यह बुज़ुर्गों में, अकेलापन दिल की बीमारी का कारण बन सकता है। वहीं, सामाजिक संबंध बेहतर दिमागी सेहत की ओर ले जा सकते हैं। “अकेलेपन की महामारी” को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी एक गंभीर मामले के रूप में जाहिर किया है। संस्था ने मांग की है कि समस्या को वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता के तौर पर पहचाना और संसाधन उपलब्ध कराए जाए। वाल्डिंगर ये भी साफ करते हैं कि इसका मतलब यह नहीं है कि अंतर्मुखी अस्वस्थ हैं। “उन्हें बस एक या दो बहुत ही ठोस रिश्तों की ज़रूरत हो सकती है और वे ज़्यादा लोगों को नहीं चाहते। इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है। असल में यह रिश्तों की संख्या से ज़्यादा उनकी गुणवत्ता के बारे में है। बता दें कि दुनिया में बहुत सारे प्रयोग हैं जो बहुत लंबे समय से चले आ रहे हैं। यह आगे भी जारी रहने की संभावना है। रोचक बात ये है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति कैनेडी भी इसका हिस्सा रह चुके हैं। सुदामा/ईएमएस 05 दिसंबर 2024