लेख
04-Dec-2024
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| आपने यदि गौर किया हो तो आप पाएंगे कि आजकल संसद के दोनों सदनों में पीठासीन प्रमुखों की आत्माएं अचानक करवटें बदलती दिखाई दे रहीं हैं । सदन चलने को लेकर दुनिया भर से मिल रही लानत मलानत के बाद लोकसभा हो या राज्य सभा अब केंद्रीय मंत्रियों को लताड़ मिलती दिखाई दे रहीी है। लोकसभा में यदि स्पीकर श्री ओम बिरला जी यदि संसदीय कार्यकमंत्री पर बिफरे तो राजयसभा कि सभापति माननीय धनकड़ जी ने सदन कि बाहर एक कार्यक्रम में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की क्लास ले ली। मंगलवार लोकसभा में शून्यकाल शुरू होने से पहले कार्यसूची में तमाम मंत्रियों के नाम से अंकित दस्तावेज संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल की ओर से प्रस्तुत किए जाने पर स्पीकर ने नाराजगी जताई. उन्होंने कहा कि जिन मंत्रियों के नाम कार्यसूची में हैं, वे सदन में उपस्थित रहें. दरअसल, सदन में प्रश्नकाल खत्म होने के बाद दोपहर 12 बजे कार्यसूची में अंकित जरूरी कागजात संबंधित मंत्रियों की ओर से सदन के पटल पर रखे जाते हैं। हालांकि अगर कोई मंत्री सदन में उपस्थित नहीं रहता तो उनकी तरफ से संसदीय कार्य राज्य मंत्री इन्हें प्रस्तुत करते आये हैं। संसद में बहुत दिनों बाद स्पीकर को बदली हुई मुद्रा में देश ने देखा है। लगता है कि अब उन्हें उनकी आत्मा कचोटने लगी है। अहसास करने लगी है कि वे केवल सत्तापक्ष के लिए ही नहीं बने हैं। सदन में जरूरी प्रपत्र पेश किए जाने के दौरान वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री जितिन प्रसाद के नाम पर अंकित एक दस्तावेज को संसदीय कार्य राज्य मंत्री मेघवाल ने रखा. इस पर स्पीकर बिरला ने कहा कि उद्योग मंत्री पीयूष गोयल सदन में बैठे हैं और उन्हें दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए कहा जाना चाहिए था। इसके बाद गृह राज्य मंत्री बंडी संजय कुमार अपने नाम से अंकित दस्तावेज सदन के पटल पर रख रहे थे. उन्हें कठिनाई होने पर अन्य मंत्री उनकी मदद करते नजर आए. इस पर लोकसभा अध्यक्ष ने इन मंत्रियों से कहा, ‘‘आप एक-दूसरे को मत समझाओ.’’ फिर स्पीकर ने संसदीय राज्य मंत्री मेघवाल से ही संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत करने को कहा। लोकसभा की ही तरह राज्य सभा के बाहर एक समारोह में सभापति जयदीप धनकड़ अचानक किसान आंदोलन का प्रश्न आते ही केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान पर पिल पड़े। किसान आंदोलन को लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को सीधे कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से कई सवाल किए।उन्होंने शिवराज की ओर इशारा करते हुए कहा, कृषि मंत्री जी, आपका एक-एक पल भारी है। मेरा आपसे आग्रह है और भारत के संविधान के तहत दूसरे पद पर विराजमान व्यक्ति आपसे अनुरोध कर रहा है कि कृपया करके मुझे बताइए कि किसान से क्या वादा किया गया था? और जो वादा किया गया था, वह क्यों नहीं निभाया गया ? आपको बता दें कि देश कि किसान एक बार फिर आंदोलित हो रहे हैं। धनकड़ का रूप विपक्ष के किसी संसद जैसा था । उन्होंने सवाल किया कि - वादा निभाने के लिए हम क्या कर रहे हैं? बीते साल भी आंदोलन था, इस साल भी आंदोलन है। कालचक्र घूम रहा है। हम कुछ नहीं कर रहे हैं।धनखड़ ने मुंबई में केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान के शताब्दी समारोह के में ये बातें कहीं। कार्यक्रम में शिवराज भी मौजूद थे।हालांकि, उन्होंने उपराष्ट्रपति के सवालों का जवाब नहीं दिया।आपको याद होगा कि किसान आंदोलन को लेकर पूर्व में भाजपा के वरिष्ठ नेता और राजयपाल रहे सत्यपाल मलिक भी आग -बबूला हो चुके हैं और इसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा है ,लेकिन धनकड़ को पता है कि अब उनका कुछ बिगड़ने वाला नहीं है । भाजपा उन्हें राष्ट्रपति तो बनाने से रही। दुर्भाग्य ये है कि संसद को हंगामे से उबरने के लिए हुई बैठक भी बहुत ज्यादा कामयाब नजर नहीं आयी,क्योंकि मंगलवार को संसद में अडानी का नाम आते ही फिर हंगामा हुआ था। कांग्रेस के गौरव गोगोई द्वारा अडानी और मोदी का नाम लेते ही सत्तापक्ष बिफर गया था और उसने गौरव के शब्दों को सदन की कार्रवाई से निकलवाकर ही चैन की सांस ली थी। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर लोकसभा की कार्रवाई का न सिर्फ बहिष्कार किया ब्लल्कि बैनर लेकर ये संदेश भी दिया की मोदी जी और अडानी जी एक हैं। कांग्रेस के इस कदम का साथ हालाँकि उनके सहयोगी समाजवादी दल और तृणमूल कांग्रेस ने नहीं दिया। मुझे लगता है कि यदि लोकसभा और राजयसभा का संचालन निष्पक्षता से किया जाये तो सदन की तस्वीर बदल सकती है। लोकसभा अध्यक्ष को भी मान लेना चाहिए कि ये उनका दूसरा और अंतिम कार्यकाल है,वे चाहें तो इसका इस्तेमाल अतीत में बिगड़ी अपनी छवि को सूधारने में कर सकते हैं। वे अगर संगमा बनना चाहें तो बन सकते है। वे यदि सोमनाथ चटर्जी बनना चाहें तो उन्हें कोई नहीं रोक सकता । यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी जी भी। कोई उन्हें पदच्युत करने की स्थिति में नहीं है। यही बात राज्य सभा के सभापति माननीय धनकड़ साहब पर लागू होती है। उन्होंने बंगाल के राजयपाल के रूप में ही नहीं बल्कि राजयसभा के सभापति के रूप में भी भाजपा के लिए जितना समर्पण किया जा सकता था, वे कर चुके है। अब उन्हें अपनी छवि सुधारने के लिए सदन के बाहर ही नहीं बल्कि भीतर भी विपक्ष के साथ होई सत्तापक्ष की कान -कुच्ची [ कान खिंचाई ] करना चाहिए। देश ने एक लम्बे अरसे से लोकसभा और राजयसभामें पहले की तरह किसी भी मुद्दे पर कोई गंभीर बहस नहीं हुई है । ऐसी बहस जिसे देखने -सुनने के लिए देश दो-चार घंटे टीवी स्क्रीन के सामने बैठने को मजबूर हो। ये तीसरी लोकसभा है जिसमें कोई सारगर्भित बहस होती नजर नहीं आय। पिछले दस साल में प्रधानमंत्री जी भी जितनी बार सदन में बोले वे राष्ट्रनायक के रूप में नहीं बोले । उन्होने हमेशा किसी विपक्षी नेता की तरह भाषण दिया और असली विपक्ष की बखिया उधेड़ने की कोशिश की ।मुझे एक बार भी नहीं लगा कि वे देश को चलाने के लिए विपक्ष की किसी भूमिका को सराहने का माद्दा रखते हैं। उन्हें विपक्ष अपना सनातन शत्रु नजर आता है। वे पंडित जवाहर लाल नेहरू की तरह आज के विपक्ष में बैठे किसी अटल बिहारी बाजपेयी को अपना आशीर्वाद नहीं दे सकते। बहरहाल जो परिवर्तन फिलहाल दिखाई दे रहा है वो सुखद है। भगवान ,अल्लाह करे की आने वाले दिन सदन के लिए शुभ हों।