केंद्र सरकार का राज्यों को निर्देश, अभियोजन की स्वीकृति देने में विलंब नहीं होना चाहिए - अब संबंधित विभाग अभियोजन की स्वीकृति को लटकाकर नहीं रख सकेंगे - कलेक्टर, एसडीएम, एसडीओ नगर निगम आयुक्त और तहसीलदार भी आरोपियों में शामिल भोपाल(ईएमएस)। राज्य में शासकीय सेवकों पर चल रहे भ्रष्टाचार के मामलों में संबंधित विभाग के आला अफसरो द्वारा द्वारा अभियोजन की स्वीकृति दिये जाने जैसै फेसले को लटकाकर नहीं रख सकेंगे। भ्रष्टाचार के मामले में केंद्र सरकार ने नई गाइडलाइन तय करते हुए इसे लेकर राज्यों को निर्देश दिए हैं, कि भ्रष्टाचार के मामलों में अभियोजन की स्वीकृति देने में विलंब नहीं होना चाहिए। भारत सरकार के कार्मिक लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय ने सभी राज्यों को इस संबंध में पत्र जारी किया है। इन निर्देशो के अुनसार मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार के मामले में अब 4 महीने के भीतर संबधित विभाग को अभियोजन की स्वीकृति देनी होगी। इसके आधार पर सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी विभाग प्रमुखों को निर्देश दिए हैं, कि भ्रष्टाचार के मामले में वैसे तो तीन माह में अभियोजन की स्वीकृति दी जानी चाहिए, पर विशेष परिस्थिति में यह अवधि अधिकतम एक माह बढ़ाई जा सकती है। गौरतलब है कि कई ऐसे अफसर है, जो सेवा में रहते हुए भ्रष्टाचार के मामले में घिरे है, लेकिन जॉच एजेंसियां संबधित विभाग से अभियोजन की स्वीकृति न मिलने के कारण उनके खिलाफ कार्यवाही को आगे नहीं बढ़ा सकी। इनमें से कई अधिकारी तो रिटायर भी हो गए। लेकिन अब केंद्र सरकार द्वरा दिये गये निर्देशो में कहा गया है, कि ऐसे मामलों में चार माह के भीतर आरोपित शासकीय सेवक के विरुद्ध अभियोजन की स्वीकृति दी जाए। जानकारी के मुताबिक मध्य प्रदेश में 27 विभागों में 290 से अधिक अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ प्रकरण लोकायुक्त और आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) में चल रहे हैं, जिनमें अभियोजन की स्वीकृति लंबित है। विभागों की तरफ से अभियोजन की स्वीकृति में देरी के चलते राज्य सरकार द्वारा मंत्री समूह की कमेटी बना चुकी है। जुनेद / 27 नवंबर