महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के साथ ही लोकसभा के लिए भी एक सीट पर उपचुनाव हुआ था। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने नांदेड़ सीट पर विजय हासिल की है। नांदेड लोकसभा सीट की सभी 6 विधानसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी को विजय प्राप्त हुई है। लोकसभा और विधानसभा सीटों के लिए एक साथ मतदाताओं ने मतदान किया था। लोकसभा में कांग्रेस का जीतना और विधानसभा की सभी सीटों पर हार जाना सभी को आश्चर्यचकित कर रहा है। इस तरह के चुनाव परिणाम ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। नांदेड़ परंपरागत रूप से कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। भारतीय जनता पार्टी, शिवसेना शिंदे गुट और अजीत पवार की राकांपा ने इस लोकसभा सीट को जीतने के लिए अपनी सारी ताकत लगा दी थी। उसके बाद भी उपचुनाव में लोकसभा की यह सीट कांग्रेस उम्मीदवार ने जीतकर अपने गढ़ को बचाए रखने में सफलता हासिल की है। सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है, इसी लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली 6 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस बुरी तरह से पराजित हुई है। सभी 6 सीटों पर एनडीए की महायुती गठबंधन ने चुनाव जीता है। इसको लेकर महाराष्ट्र की राजनीति में बवाल मच गया है। विधानसभा चुनाव के मतदान और मतगणना को लेकर बार-बार चुनाव आयोग ने मतदान का प्रतिशत बढ़ाया। नांदेड लोकसभा सीट के मतदाता ही विधानसभा सीट के मतदाता थे। एक ही समय पर मतदाताओं ने लोकसभा के लिए कांग्रेस को वोट देकर अपना भरोसा जताया। वहीं मतदाता विधानसभा के लिए कांग्रेस को छोड़कर यदि महायुती गठबंधन के लिए वोट कर रहा था, ऐसी स्थिति जमीनी स्तर पर नही दिख रही थी। ना ही मतदाता इस चुनाव परिणाम को स्वीकार कर पा रहा है। इस चुनाव में महंगाई, बेरोजगारी और किसानो की समस्या महाराष्ट्र चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा था। अभी तक केंद्रीय चुनाव आयोग को लेकर जो आरोप और प्रत्यारोप लग रहे थे। नांदेड़ लोकसभा सीट और उसी की 6 विधानसभा सीट के चुनाव परिणाम एक दूसरे के विपरीत होने के कारण, मतदाता भी सड़कों पर आकर चुनाव परिणाम को लेकर अपनी नाराजी जता रहा है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम में महा विकास अघाड़ी की करारी पराजय ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है। ईवीएम मशीन बार-बार चुनाव आयोग द्वारा परसेंटेज बढाए जाने मतगणना के समय 99 फ़ीसदी बैटरी चार्ज का मामला एक बार फिर विवादों में आ गया है। शिवसेना उद्धव ठाकरे के सांसद संजय राउत ने ईवीएम मशीन और मतगणना पर सवाल उठाते हुए महाराष्ट्र के घोषित चुनाव परिणाम को मानने से इनकार कर दिया है। संजय राउत ने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा, हम इस परिणाम को नहीं मानते हैं। वैलेट पेपर से ही चुनाव कराए जाएं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा ईवीएम मशीनों से छेड़छाड़ कर चुनाव परिणामों को प्रभावित किया गया है। महाराष्ट्र के पत्रकारों ने भी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणामों को लेकर नए-नए सवाल खड़े किए हैं। जिस तरह की सवाल राजनीतिक दलों और मतदाताओं की ओर से आ रहे हैं। केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा उन सवालों का जवाब नहीं दिया जा रहा है। महाराष्ट्र के पत्रकारों का कहना है, कि यह केवल तकनीकि मामला नहीं है। चुनाव आयोग को चुनाव प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने की जरूरत है। जब तक जनता और राजनीतिक दलों को ईवीएम मशीन की प्रक्रिया पर पूरी तरह से विश्वास नहीं होगा। इसी तरह से विवाद होते रहेंगे। आयोग अपने जवाब में बार-बार यही कहता है, हेर-फेर की गुंजाइश नहीं है। पिछले कई चुनाव से चुनाव आयोग द्वारा परसेंटेज पर मतदान की स्थिति बताना, बार-बार उसमें बदलाव करना, मतदान के दो दिन बाद और मतगणना के पहले, मतदान का परसेंटेज बदल जाना, 99 फ़ीसदी चार्ज बैटरी में भाजपा के पक्ष में मतदान होना। ऐसे कई सवाल पिछले दो चुनाव से सामने आ रहे हैं। चुनाव आयोग द्वारा फार्म 17 सी की जानकारी और मतगणना स्थल पर ईवीएम मशीनों के सीरियल नंबर नहीं दिखाना। फार्म सी की जानकारी मतगणना स्थल पर उपलब्ध नहीं कराना। प्रत्येक चरण की मतगणना की जानकारी दिए बिना, अगले चरण की मतगणना शुरू कर देना, कई चरण की मतगणना का परिणाम एक साथ घोषित करना। चुनाव आचार संहिता का पालन नहीं करने जैसे कई गंभीर आरोप चुनाव आयोग पर लगातार लग रहे हैं। चुनाव आयोग द्वारा ना तो उनका जवाब दिया जा रहा है। इस तरह की शिकायतों पर जिस तरह की धमकी चुनाव आयोग द्वारा शिकायतकर्ता को दी जाती है। उसको लेकर अब जनरोष भी देखने को मिलने लगा है। जो चुनाव परिणाम हरियाणा और महाराष्ट्र के घोषित हुए हैं। वह जमीनी हकीकत के ठीक विपरीत हैं। मतदाता नाराजी में वोट डाल रहा था, उसने भाजपा को वोट ही नहीं दिया, लेकिन वहाँ उम्मीदवार बीजेपी का जीत रहा है। इसको लेकर अब आम जनता भी अपना विरोध दर्ज करने सड़कों पर आने लगी है। मतदान केंद्र के मतदाता जब अपने मतदान केंद्र का परिणाम देखते हैं। तो वह आश्चर्य प्रकट करते हैं, चुनाव परिणाम ऐसा हो ही नहीं सकता है। कई मतदान केंद्रों में यह भी स्थिति देखने को मिली है। चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर जिस तरह के सवाल उठे हैं, उसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में भी नहीं होने के कारण अब जनता बगावत के मूड में आई हुई दिख रही है। सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग के खिलाफ किसी भी याचिका को स्वीकार नहीं करता है। जिसके कारण अब राजनीतिक दलों और मतदाताओं के विद्रोही तेवर देखने को मिलने लगे हैं। यदि यही स्थिति रही तो जिस तरह की स्थिति बांग्लादेश में देखने को मिली है उसी तरीके के हालात भारत में भी बनते हुए दिख रहे हैं। न्याय पालिका द्वारा जिस तरह से चुनाव आयोग और सरकार का बचाव किया जा रहा है, उसके बाद से अब न्यायपालिका भी आलोचनाओं की शिकार हो गई है। सोशल मीडिया पर जिस तरह से पूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं वर्तमान न्यायाधीशों के बारे में जिस तरह से लिखा और बोला जा रहा है। अब राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी सार्वजनिक रूप से विरोध किया जा रहा है उससे न्यायपालिका की साख भी दिनों-दिन कमजोर हो रही है। यह चिंता का विषय है। एसजे/ 27 नवम्बर/2024