लेख
26-Nov-2024
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पाकिस्तान में राजनीतिक संकट खड़ा हो जाना आश्चर्यजनक बात नहीं है। फिलहाल दुनियां में जिस तरह की उथल-पुथल मची हुई है, उस स्थिति में पाकिस्तानी आवाम का सड़कों पर उतर आना वाकई चिंता की बात है। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को रिहा किए जाने की मांग को लेकर सरकार के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शन अपने चरम पर है। हिंसक प्रदर्शन के बीच करीब 6 लोगों की मौत होने की भी खबर है। यह प्रदर्शन देश ही नहीं बल्कि पड़ोसी मुल्कों समेत अमेरिका तक को सोचने पर मजबूर कर रहा है। पड़ोसी देश इसलिए चिंतित होते हैं क्योंकि पाकिस्तान में हिंसा होने के बाद सीमा पर घुसपैठ जारी हो जाती है। इससे निपटने के लिए सीमा पर अलर्ट रहना होता है। बहरहाल पाकिस्तान में इमरान समर्थक बड़ी संख्या में सड़क पर उतर कर सरकार के खिलाफ विरोध कर रहे हैं। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) कार्यकर्ताओं ने आंदोलन को असरकारी बनाने के लिए इस्लामाबाद कूच किया, इससे हिंसा और टकराव की घटनाएं सामने आई हैं। इमरान की पत्नी बुशरा बीबी पहले ही ऐलान कर चुकी हैं कि पति की रिहाई तक इस्लामाबाद में जमी रहेंगी। इससे जनता और सरकार में टकराव की स्थिति बनती जा रही है। इसके चलते शहबाज सरकार ने सुरक्षा के मद्देनजर इस्लामाबाद को रेड जोन घोषित कर प्रदर्शनकारियों को हद में रहने का संदेश दे दिया है। रेड जोन एरिया में प्रधानमंत्री आवास, संसद और दूतावास समेत महत्वपूर्ण सरकारी दफ्तरों को शामिल किया गया है। पाकिस्तानी सेना की तैनाती कर दी गई है और सरकार ने आदेश जारी किया है कि अगर किसी प्रदर्शनकारी को रेड जोन के अंदर देखा गया तो उसे गोली मार दी जाएगी। खास बात यह है कि मौजूदा प्रदर्शन के दौरान करीब 30,000 से ज्यादा इमरान समर्थक राजधानी में मौजूद हैं। प्रदर्शनकारियों के हिंसक होने की वजह से कई स्थानों पर झड़पें भी हुई हैं, और इसमें जहां करीब आधा दर्जन लोगों के मारे जाने की खबर है तो वहीं एक पुलिसकर्मी की मौत की भी खबर आई है। ऐसे में कब स्थिति विस्फोटक हो जाए कहा नहीं जा सकता है। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पिछले साल से ही रावलपिंडी की अदियाला जेल में बंद हैं। उन्होंने जेल के अंदर से ही 24 नवंबर को विरोध प्रदर्शन के लिए करो या मरो का आह्वान किया था। इसी के साथ ही इमरान ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान की सरकार ने संविधान का उल्लंघन किया है। उन्होंने 26वें संशोधन को तानाशाही शासन को बढ़ावा देने वाला बताया। इस समय इमरान के खिलाफ 200 से अधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें से कुछ में उन्हें दोषी भी ठहरा दिया गया है, जबकि कुछ मामलों में सुनवाई जारी है। ऐसे में जारी विरोध प्रदर्शनों का पाकिस्तान के सियासी हलके में खासा असर देखने को मिल रहा है। फिलहाल प्रदर्शनकारियों का मुख्य उद्देश्य इमरान की रिहाई है, लेकिन कब यह वर्तमान सरकार को सत्ता से हटाने वाला बन जाए कहा नहीं जा सकता है। यही वजह है कि पंजाब और इस्लामाबाद में पुलिस ने पीटीआई के 3500 से ज्यादा नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस की इस कार्रवाई का प्रदर्शन पर उल्टा ही असर पड़ा है। यही वजह है कि गिरफ्तारियों के बावजूद, प्रदर्शनकारी सरकार के खिलाफ संघर्ष जारी रखे हुए हैं। प्रभावी विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए अब अमेरिका ने भी पाकिस्तान सरकार को नसीहत देनी शुरु कर दी है। अमेरिकी विदेश विभाग ने स्पष्ट कहा है कि पाकिस्तान में प्रदर्शन करने वालों के मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं का सम्मान किया जाना चाहिए। बात साफ है कि जब प्रदर्शन शांतिमय ढंग से हो रहा है तो उन पर जोर-जबरदस्ती करने की आवश्यकता नहीं है। बल्कि सरकार को चाहिए कि वह प्रदर्शनकारियों से बात-चीत के रास्ते खोले, जैसा कि अमेरिका ने पाकिस्तान से अपील की है। पाकिस्तान सरकार प्रदर्शनकारियों को शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात रखने का अधिकार दे और हिंसा से बचने का आग्रह करे। सवाल यह है कि इमरान की रिहाई के बगैर प्रदर्शनकारी मानने को तैयार नहीं हैं और सरकार ऐसा कोई कदम उठा नहीं सकती, जिससे उसकी अपनी पकड़ सत्ता पर कमजोर पड़ने लग जाए। इस स्थिति में पाकिस्तान का वर्तमान राजनीतिक संकट और विरोध प्रदर्शनों का बढ़ना देश की राजनीतिक अस्थिरता को उजागर कर रहा है। एक तरफ इमरान समर्थकों का सरकार के खिलाफ आंदोलन, जो पाकिस्तान में लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्थिरता पर सवालिया निशान लगा रहा तो दूसरी तरफ हिंसा और गिरफ्तारियों की बढ़ती घटनाएं देश की कानून-व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी न साबित हो जाएं, इसकी चिंता भी मौजूदा सरकार को करनी होगी। पाकिस्तान में राजनीतिक असंतोष और विरोध प्रदर्शन के बीच इस्लामाबाद को छावनी में तब्दील कर दिया जाना अपने आप में संकट को उजागर करने जैसा ही है। चूंकि दुनियां में अनेक देशों के हालात भी सही नहीं चल रहे हैं। तृतीय विश्वयुद्ध के मुहाने पर दुनिया खड़ी नजर आ रही है। ऐसे में पाकिस्तान में जो घटनाएं घट रही हैं, वे केवल राजनीतिक असंतोष की नहीं, बल्कि एक देश की कानून-व्यवस्था और लोकतांत्रिक प्रणाली की स्थिरता पर गंभीर सवाल खड़ा कर रही हैं। देखने वाली बात यह है कि पाकिस्तान की सरकार इस विकट स्थिति को कैसे संभालती है और क्या यह विरोध प्रदर्शनों को शांतिपूर्ण तरीके से हल कर पाती है या फिर पाकिस्तानी आवाम और अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। यह विस्फोटक स्थिति पाकिस्तान को किसी बड़े संकट में डाले उससे पहले शहबाज शरीफ सरकार को चाहिए कि वह बीच का कोई रास्ता निकाले, फिर चाहे इमरान को रिहा ही क्यों न करना पड़े। ईएमएस / 26 नवम्बर 24