हैदराबाद (ईएमएस)। भारत के भूले हुए गौरव को फिर से पेश किया जाना चाहिए। भारत की मूल्य प्रणाली व्यक्ति की बुद्धिमता पर जोर देती है। मुद्दों के प्रति भारत के दृष्टिकोण में तर्क और बुद्धि है। ऐसे में देश को समस्याओं के लिए अन्य दृष्टिकोणों का पालन करने की जरूरत नहीं है। भारत विदेशों से अच्छी चीजें ले सकता है लेकिन इसकी अपनी आत्मा और संरचना होनी चाहिए। यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने हैदराबाद में लोकमंथन 2024 कार्यक्रम में कही। मोहन भागवत ने देश के विज्ञान के महत्व पर बात की। मोहन भागवत ने कहा कि भागवत ने कहा कि हमें सनातन धर्म और संस्कृति को समकालीन रूप देने के बारे में सोचना होगा। इसके लिए हमें भारत के भूले हुए गौरव को फिर से पेश करना होगा। भागवत ने कहा कि विविधता में भी एकता का समावेश है। एकता है तो सब अपना है। सब सुखी होंगे तो हम भी खुश होंगे। उन्होंने कहा कि एक समय में देश में सभी संसाधनों पर समाज का स्वामित्व था, लेकिन फिर विदेश शासक आए और हमारे संसाधनों पर कब्जा कर लिया। इसके चलते हम ऐसी स्थिति में पहुंच गए। हम इसलिए ऐसे हुए क्योंकि हम अधर्मपति हो गए थे। हम अपना स्वाभिमान गवां बैठे। अपने जीवन का लक्ष्य भूल गए। मगर अब हमको अपने धर्म को अपनाने की जरूरत है। इसके लिए हमको संस्कृति को सहेजना होगा। बालेन्द्र/ईएमएस 24 नवंबर २०२४