रूस और पश्चिमी देशों के बीच बढ़ते तनाव और परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की बढ़ती आशंका के चलते तृतीय विश्व युद्ध के खतरे की घंटी बजती नजर आ रही है। रूस और नाटो के बीच लगातार बढ़ते विवाद ने युद्ध के भयावह होने की आशंका को भी बल दे दिया है। अब जबकि पुतिन की नई परमाणु नीति से यह स्पष्ट हो गया है कि रूस किसी भी परिस्थिति में अपने खिलाफ होने वाले किसी भी हमले को अब बर्दाश्त नहीं करेगा और जवाब में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल वह कर सकता है। इस घोषणा ने रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को एक नए मोड़ में लाकर खड़ा कर दिया है। यूक्रेन का हमला और रुस की जवाबी कार्रवाई अब संभावित परमाणु हथियारों के इस्तेमाल ने दुनियां के लिए खतरा पैदा कर दिया है। सवाल यही है कि आखिर रुस को इस सख्त कदम के लिए क्यों मजबूर होना पड़ा है? विशेषज्ञों की मानें तो इसके लिए कहीं न कहीं सामरिक हथियारों की खरीद-फरोख्त का बाजार जिम्मेदार है। दरअसल यूक्रेन को पश्चिमी देशों द्वारा दी जा रही सैन्य सहायता, खासकर अमेरिका द्वारा लंबी दूरी की मिसाइलों की आपूर्ति, ने रूस को अपनी परमाणु नीति में बदलाव करने के लिए मजबूर कर दिया है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपने देश की परमाणु सिद्धांत में ऐसे परिवर्तन किए हैं, जिनसे तृतीय विश्व युद्ध का खतरा मंडराने लगा है। ऐसा नहीं है कि इससे विश्व अनभिज्ञ है, बल्कि सभी देश जान रहे हैं कि दुनिया उस दौर में पहुंच चुकी है, जहां युद्ध को विकल्प मान मानव सभ्यता को ही नष्ट करने का इरादा कर्ता-धर्ताओं और जिम्मेदारों ने पाल रखा है। भले ही इस जमाने में तानाशाह हिटलर का सशरीर वजूद नहीं है, लेकिन उसकी सोच लगातार फलिभूत हो रही है। शांति-सहअस्तित्व की बात करने वाले लगातार युद्ध के विनाश से चेताने की कोशिश भी कर रहे हैं। यही वजह है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक मंच पर शांति के साथ बातचीत के जरिए युद्ध का समाधान तलाशने की बात पूरी दमदारी से रखी है। इस समय जहां-जहां भी युद्ध हो रहे हैं और युद्ध के हालात बनते चले जा रहे हैं उन्हें मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए बातचीत से समस्या का समाधान तलाशने और बीच का रास्ता निकालने की समझाइश दी जा रही है। परमाणु नीति के साथ छेड़छाड़ से बचने और विश्व को भयावह युद्ध की आग में झौंकने से गुरेज करने को कहा जा रहा है। बावजूद इसके पुतिन का कहना है कि रूस के खिलाफ नाटो की मिसाइलों का इस्तेमाल रूस पर हमला माना जाएगा, और इसके जवाब में रूस परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। इससे पहले पुतिन ने हाल ही में एक डिक्री पर हस्ताक्षर किए, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि रूस किन परिस्थितियों में परमाणु हथियारों का उपयोग करेगा। उनके अनुसार, यदि कोई देश, जो परमाणु शक्ति नहीं रखता, रूस के खिलाफ हमला करता है और वह हमला किसी परमाणु शक्ति वाले देश के समर्थन से होता है, तो इसे रूस पर युद्ध घोषित करना माना जाएगा। अब चूंकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूक्रेन को रूस पर हमले के लिए अमेरिकी हथियारों का इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी है। अत: रूस को यह खतरा महसूस हुआ है कि यूक्रेन अब रूस के भीतर स्थित सैन्य ठिकानों पर भी हमले कर सकता है। अमेरिका के इस फैसले का रूस पर गहरा असर पड़ा है और देश की सुरक्षा को प्रथमत: मानते हुए उसने अपनी परमाणु नीति में बदलाव किए हैं। यही वजह है कि पुतिन ने यह सुनिश्चित किया कि यदि रूस के खिलाफ बैलिस्टिक मिसाइल या ड्रोन का इस्तेमाल होता है, तो जवाब में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा, यदि रूस के खिलाफ कोई अंतरिक्ष से हमला करता है, तो रूस इसका भी जवाब परमाणु हथियारों से दे सकता है। इस प्रकार पुतिन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि रूस किसी भी हालत में अपनी सुरक्षा से समझौता नहीं करेगा और उसे अपनी सीमा के भीतर या बाहर किसी भी हमले का जवाब देने का अधिकार है। इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि यदि युद्ध अब आगे जारी रहता है तो अन्य देशों के इसमें शामिल होने से कोई रोक नहीं सकेगा। रुस समर्थित देश भी सैन्य साजो-सामान के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराते नजर आएंगे। उत्तर कोरिया के प्रमुख किम जोंग उन तो पहले से ही युद्ध में उतरने के लिए अपनी सेना को तैयार रहने की निर्देश दे चुके हैं। ऐसे में अन्य देश भी इसी तरह से युद्ध की आग में घी डालने का काम करेंगे तो वह समय दूर नहीं जबकि तृतीय विश्व युद्ध का आगाज हो। यह स्थिति किसी के लिए भी बेहतर सिद्ध नहीं हो सकती है। भले ही कोई सैन्य सामान बेचकर खुश हो ले, और कोई युद्ध का हिस्सा बने या खुद को इन सब से अलग-थलग रखे, लेकिन बारूद की गंध और बेरहम चीत्कारों से खुद को बचा नहीं सकेगा। अंतत: रूस के नए परमाणु सिद्धांत ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नई चुनौतियां उत्पन्न कर दी हैं। दोनों महाशक्तियों, रूस और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव और परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की संभावना से तीसरे विश्व युद्ध का खतरा और भी ज्यादा बढ़ गया है। यह दो महीने का समय बहुत ही उलट-फेर करने वाला है। ऐसे समय में सभी शांतिप्रिय देशों के एकजुट होने की आवश्यकता है, ताकि वैश्विक युद्ध के खतरे को टाला जा सके और देश व दुनियां को शांति-सहअस्तित्व वाला सही रास्ता दिखाया जा सके। .../ 20 नवम्बर/2024