| झारखण्ड और महाराष्ट्र विधान सभा के चुनाव पहली बार सबसे अलग है । इन चुनावों में वोट के लिए जिहाद हो रहा है । जिहाद नहीं समझते ? यानि धर्मयुद्ध। महाराष्ट्र और झारखण्ड जीतने के लिए केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के अलावा तमाम क्षेत्रीय दलों ने वोटरों को लुभाने के लिए नैतिकता की सभी सीमाएं तोड़ दी हैं। इन दोनों राज्यों में 20 नवंबर को मतदान होना है इसलिए आज की रात सभी राजनीतिक दलों के लिए कत्ल की रात है। जिहाद इस्लामी संस्कृति का प्रचलित शब्द था,है ,लेकिन इसे भाजपा ने पहले प्रेम विवाहों के संदर्भ में लव जिहाद बनाया और अब इसका इस्तेमाल सियासत में वोट जिहाद के रूप में किया जा रहा है । ये दोनों ही नारे हालाँकि हैं अल्पसंख्यक मुसलमानों के खिलाफ किन्तु अब इनका इस्तेमाल सभी लोग कर रहे है। चुनाव को किसी धर्मयुद्ध की तरह लड़ने के लिए सारी बिसातें भाजपा की बिछाई हुई हैं। इन चुनावों में न स्थानीय मुद्दे हैं और न प्रचार अभियान में स्थानीय नेता। चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने परप्रदेशी नेताओं की फ़ौज उतार दी है जो ध्रुवीकरण के लिए अपनी सारी प्रतिभा और क्षमता का इस्तेमाल करने में लगे हुए हैं। पिछले महीने हरियाणा और जम्मू-काश्मीर के चुनाव नतीजों के बाद अचानक से महाराष्ट्र और झारखण्ड के चुनाव महत्वपूर्ण बन गए ,या कहिये बना दिए गए। प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र दामोदर दास मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा के अलावा मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का इस्तेमाल दोनों राज्यों में झूठ परोसने,मतदाताओं के बीच उत्तेजना पैदा करने के लिए किया गया। विपक्ष की और से ले-देकर राहुल गांधी तथा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ही चुनाव प्रचार में मोर्चा लेते दिखाई दिए। आईएमडीआईए गठबंधन के तमाम बड़े नेता या तो इन दोनों राज्यों के चुनाव प्रचार में इस्तेमाल नहीं किये गए और न वे आये। दोनों राज्यों के मतदाताओं,प्रत्याशियों को आतंकित करने के लिए जब नारे काम न आये तो ईडी यानि प्रवर्तन निदेशालय तक ने खुलकर भाजपा के लिए काम किया। भाजपा के लिए दुर्भाग्य ये रहा कि चुनाव के अंतिम चरण में जहा एक बार फिर मणिपुर धधका वहीं प्रधानमंत्री जी को चुनाव प्रचार छोड़कर नाइजीरिया और ब्रिक्स की बैठक में शामिल होने के लिए जाना पड़ा । केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को मणिपुर की हिंसा ने मैदान छोड़ने के लिए विवश कर दिया ,लेकिन योगी,सरमा और चौहान मोर्चे पर डटे हुए हैं। भाजपा ने लगता है कि इन दोनों राज्यों को जीतने के लिए हरियाणा की तरह इंतजाम कर लिया है। लेकिन मशीन और मशीनरी पर कितना भरोसा किया जा सकता है। कभी-कभी नेता ही नहीं मशीने भी बगावत कर जाती है। इन दोनों राज्यों को जीतने से केंद्र की बैशखियों पर टिकी भाजपा गठबंधन की सरकार की ताकत में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी हो सकती है । यदि 23 नवमबर को चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में आये तो भाजपा को 25 नवमबर से शुरू हो रहे संसद के शीत सत्र में लंबित विधेयकों को पारित करने में आसानी हो सकती है और यदि भाजपा ने ये चुनाव न जीते तो उसकी मुसीबतें संसद और संसद के बाहर बढ़ सकती है। इन दो राज्यों के चुनाव में यदि विपक्ष जीतता है तो विपक्ष को एक नयी संजीवनी मिल सकती है। महाराष्ट्र और झारखण्ड के चुनाव सत्ता और विपक्ष के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। महाराष्ट्र और झारखण्ड विधानसभा के चुनावों को लेकर पहली बार आम आदमी पार्टी परिदृश्य से बाहर दिखाई दे रही है किन्तु औबेदुल्ला औवेसी मैदान में मौजूद हैं। वे अपनी पार्टी के फायदे के लिए मौजूद हैं या भाजपा की मदद के लिए ये कहना कठिन है। इस चुनाव में बटने और न बंटने के बीच संघर्ष है। जो एक रहेगा ,वो सेफ रहेगा। जो बंटेगा वो कटेगा। कत्ल की रात में दोनों पक्षों की और से वोट जिहाद के लिए जी-तोड़ परिश्रम किया जा रहा है पहली बार केंचुआ ने भी इन चुनावों में बहुत सक्रियता दिखाई है । सभी दलों के नेताओं के उड़नखटोलों के साथ ही वाहनों की भी जमकर जांच की है। इन दो राज्यों के विधानसभा चुनाव इसलिए भी याद किये जायेंगे क्योंकि इन चुनावों में मुद्दों से ज्यादा मुर्दे काम आये हैं। काले खां घाटे में रहे लेकिन बिरसा मुंडा को फायदा हो गया।