अंतर्राष्ट्रीय
14-Nov-2024
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वॉशिंगटन (ईएमएस)। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, समय के साथ हमारी धारणा में बदलाव आता है, और दिन और साल तेजी से खत्म होते हुए दिखाई देते हैं। आखिर ऐसा क्यों लगने लगता है? इस सवाल का उत्तर ढूंढ़ते हुए ड्यूक विश्वविद्यालय के शोधकर्ता एड्रियन बेजान ने एक दिलचस्प नजरिया प्रस्तुत किया है। उनका कहना है कि जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, दिमाग और शरीर में शारीरिक परिवर्तन होते हैं, जो हमारी समय की समझ को प्रभावित करते हैं। उनके अनुसार, समय की दो प्रमुख धारणाएँ होती हैं घड़ी का समय और मन का समय। घड़ी के समय को मापना आसान है, लेकिन मानसिक अनुभव का समय कुछ और होता है। बेजान के अनुसार, हम जो कुछ देखते, सुनते और महसूस करते हैं, वह हमारे दिमाग में एक मानसिक चित्र की तरह संग्रहित हो जाता है। जब हम युवा होते हैं, हमारा दिमाग अधिक तेजी से इन छवियों को प्रोसेस करता है, जबकि उम्र बढ़ने के साथ तंत्रिका मार्गों के क्षरण के कारण यह प्रोसेस धीमा हो जाता है। इसी वजह से समय जल्दी बीतता हुआ महसूस होता है। इसके अलावा, मिशिगन विश्वविद्यालय की मनोविज्ञान प्रोफेसर सिंडी लस्टिग का कहना है कि जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, हमारा जीवन अधिक दिनचर्या पर आधारित हो जाता है। जब हमारे जीवन में नए और रोमांचक अनुभव कम होते हैं, तो समय का एहसास भी तेज़ी से बीतने का लगता है। हम दिनचर्या में इतने लीन हो जाते हैं कि हमारे दिमाग को कम नए अनुभव मिलते हैं, जिससे समय को अलग-अलग रूपों में महसूस करने की क्षमता कम हो जाती है। फिर सवाल उठता है कि क्या हम अपनी समय की समझ को बदल सकते हैं? लस्टिग और बेजान दोनों का मानना है कि जीवन में विविधता और मस्तिष्क को चुनौतियाँ देने से समय की धारणा में बदलाव लाया जा सकता है। संक्षेप में, उम्र बढ़ने के साथ दिमाग की सूचनाओं को प्रोसेस करने की गति धीमी हो जाती है, लेकिन हम सक्रिय रहकर और नई चीजें अपनाकर इस प्रक्रिया को कुछ हद तक धीमा कर सकते हैं।नए अनुभवों और रुचियों को अपनाकर हम अपनी समय की धारणा को ताजगी और उत्साह से भर सकते हैं, जैसे हम युवा अवस्था में महसूस करते थे। सुदामा/ईएमएस 14 नवंबर 2024