पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों में बुलडोजर एक्शन के माध्यम से तुरंत न्याय करने के कई मामले सामने आए हैं। राज्य सरकारों और स्थानीय अधिकारियों ने कथित अवैध निर्माण के नाम पर अपराधियों के घरों को गिराने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल किया था। किसी भी अपराध में पकड़े गए अपराधी के मकान को अवैध बताकर बुलडोजर से तोड़ दिया जाता था। मीडिया में इसे त्वरित न्याय के नाम पर प्रचारित किया जा रहा था। बुलडोजर की कार्रवाई उत्तर प्रदेश से शुरू हुई थी। धीरे-धीरे अन्य राज्यों में भी पहुंच गई। बुलडोजर कार्रवाईं के पीछे सरकारी पक्ष अक्सर अवैध निर्माण को हटाना बताता था। इस प्रक्रिया में न्यायिक अधिकारों का उल्लंघन और नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का हनन हो रहा था। आरोप के आधार पर तुरंत सजा दी जा रही थी। जिन्हें सजा देने का अधिकार नहीं था, वह न्यायाधीश बन गए। किसी एक व्यक्ति के अपराध के आरोप की सजा पूरे परिवार को दी जा रही थी। इस स्थिति को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सख्त रुख अपनाया है। बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए हैं। जो सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होंगे। सरकार और अधिकारियों पर न्याय का अंकुश लगा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया, कोई भी कार्रवाई बिना न्यायिक प्रक्रिया के नहीं की जा सकती है । कोर्ट का कहना है, किसी व्यक्ति के घर को केवल आरोप या अपराधी होने के आधार पर गिराना अनुचित और गैर कानूनी है। जब तक सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन न किया जाए। वैध या अवैध का फैसला करना न्यायालयों का काम है। तब तक अतिक्रमण मानकर किसी भी निर्माण को हटाना गैर कानूनी है। प्रत्येक नागरिक का अधिकार है,वह अपने घर को सुरक्षित रखे। कानून के राज में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। किसी भी कार्रवाई से पहले उसके अधिकारों का सम्मान किया जाना आवश्यक है। न्यायिक प्रक्रिया के पालन का अर्थ है, किसी भी अवैध निर्माण पर कार्रवाई से पहले अदालतों के माध्यम से कार्यवाही को सही ठहराया जाए। सभी पक्षों को सुनवाई का अवसर दिया जाए। कोर्ट ने इस दिशा में अधिकारियों के लिए जिम्मेदारी तय की है। अगर कोई निर्माण अवैध रूप से गिराया जाता है। तो संबंधित जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकेगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है, बुलडोजर एक्शन सामूहिक दंड जैसा होता है। जो संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। इस अधिकार का उपयोग केवल उन संरचनाओं पर लागू किया जाना चाहिए। जो सार्वजनिक उपयोग के मार्गों पर स्थित हों। जहां अन्य समाधान संभव न हो। इसके साथ अगर किसी संपत्ति के मालिक को नुकसान उठाना पड़ता है। तो उन्हें वैकल्पिक आश्रय की व्यवस्था पहिले करनी चाहिए। रातों-रात किसी को भी अपने घर से बाहर ना निकाला जाए। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला देश के नागरिकों के अधिकारों की रक्षा और प्रशासनिक शक्तियों के दुरुपयोग पर कड़ी निगरानी और रोक का प्रतीक है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह संदेश दिया है। सरकारों को कार्यपालिका की शक्तियों का दुरुपयोग नहीं करने दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के इस स्पष्ट दिशा-निर्देश से कानून के शासन को मजबूती मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय नागरिकों की सुरक्षा और मूल अधिकारों को बनाए रखने की दिशा में महत्वपूर्ण निर्णय है। इस फैसले से यह भी स्पष्ट हुआ है,भारत एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश है। यहां पर कोई भी विशेष समुदाय या वर्ग कानून से ऊपर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम भारतीय न्याय व्यवस्था की मजबूती को दर्शाने वाला है। जहां हर नागरिक को न्याय का समान अवसर संविधान में तय किया है। राज्य सरकारों द्वारा बुलडोजर को भय और आतंक का प्रतीक बना दिया गया था। निश्चित रूप से सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से सरकारें और जिला प्रशासन अपने अधिकारों के कारण मनमानी नहीं कर पाएंगी। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से कार्यपालिका के उन अधिकारियों की जिम्मेदारी बढ़ जाएगी। जिनके आदेश पर बुलडोजर से अवैध तरीके से निर्माण हटाया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से न्यायपालिका पर लोगों का विश्वास बढ़ेगा। बुलडोजर राज के कारण न्यायपालिका से लोगों का विश्वास उठ रहा था। इस निर्णय की जितनी सराहना की जाए, कम है। एसजे/ 13 नवम्बर/2024