भारतीय संविधान ने सभी नागरिकों और सभी वर्गों के लिए समान अधिकार का प्रावधान संविधान में किया है। इसके बाद भी पिछले कुछ वर्षों में भारत में दो तरह के कानून देखने को मिल रहे हैं। गरीब गुरबों के लिए अलग कानून होता है। समर्थ कारोबारियों तथा विशिष्ठ वर्ग के लिए अलग तरीके के कानून बनाए जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में कुछ विशेष औद्योगिक घरानों के लिए अलग नियम और कानून बनाये जा रहे हैं। सरकार जब चाहती है नियमों को बदलकर बड़े-बड़े पूंजीपति उद्योगपतियों को लाभ पहुंचा रही है। संसद में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने गंभीर आरोप लगाया है। सरकार ने इसका कोई जवाब नहीं दिया है। मोदी सरकार के दो अर्थशास्त्रियों विरल आचार्य और अरविंद सुब्रमण्यम भी इस बात की पुष्टि कर चुके हैं। विरल आचार्य का एक लेख इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चाओं में है। जिसमें उन्होंने देश के पांच बड़े उद्योग व्यापार घरानों का उल्लेख करते हुए इसे स्पष्ट किया है। भारत में अदानी समूह, अंबानी समूह, टाटा, भारती एयरटेल और आदित्य बिड़ला समूह के लिए सरकार ने समय-समय पर उनकी मांग के अनुसार कानून और नियम बनाए हैं। जिसका लाभ इन्हीं पांचो कारोबारियों को मिला है। पिछले 10 वर्षों से कॉरपोरेट जगत के यही उद्योगपति भारतीय अर्थव्यवस्था में एकाधिकार बनाते हुए नजर आ रहे हैं। इनकी पावर जबरदस्त है। इस बात को नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने बड़ी जोर शोर से उठाना शुरू कर दिया है। उनका कहना है, सरकार अपने पसंदीदा कारोबारियों के लिए अलग नियम और कानून बनाकर फायदा पहुंचा रही है। जिसके कारण भारत में सभी को समान अवसर प्राप्त नहीं हो रहे हैं। कारपोरेट जगत में असंतोष फैला हुआ है। बड़ी संख्या में कारोबारी भारत छोड़कर विदेश में पलायन करने के लिए मजबूर हुए हैं। भारत में केवल 5 से 10 ऐसे उद्योगपति हैं। जिनके ऊपर सरकार की कृपा बरस रही है। बाकी के उद्योगपति और कारोबारी डरे हुए हैं। ना तो वह पूंजी निवेश कर रहे हैं। ना अपने काम को बढ़ा रहे हैं। उन्हें अपना अस्तित्व बनाए रखने में कठिनाई हो रही है। राहुल गांधी ने सरकार के ऊपर आरोप लगाया है। सरकार की दोहरी नीति के कारण उद्योग एवं व्यापार जगत में भय का माहौल बना हुआ है। जिसका असर भारतीय अर्थ व्यवस्था में पड़ रहा है। कुछ दिन पहले अरविंद सुब्रमण्यम ने भी समाचार पत्रों में लिखा था कि भारत में निजी निवेश के लिए भारतीय निवेशक अपनी तिजोरी नहीं खोल रहे हैं। उनका यह भी कहना था, कि भारत के निजी क्षेत्र के पास काम से कम 2 लाख करोड़ की रकम है। जो वह आसानी से निवेश कर सकते हैं। लेकिन वर्तमान स्थिति में वह अर्थव्यवस्था में निवेश नहीं कर रहे हैं। सरकारी वित्तीय संस्थाओं द्वारा ही भारत की अर्थव्यवस्था में निवेश किया जा रहा है। भारत के उद्योगपति मैन्युफैक्चरिंग एवं अन्य क्षेत्रों में नया निवेश नहीं कर रहे हैं। सुब्रमण्यम ने भी माना है, कि भारत के उद्योगपति इन दोनों डरे हुए हैं। अगर यह डर और भय खत्म नहीं किया गया, तो भारतीय अर्थव्यवस्था को बनाए रखना बड़ा मुश्किल होगा। पिछले 10 वर्षों में जिस तरह से गरीबों के लिए अलग तरह के कानून और नियम बनाने जा रहे हैं। बड़े-बड़े कारोबारी और उद्योगपतियों के लिए आर्थिक आधार पर बैंक वित्तीय संस्थान सरकार अलग तरह के कानून बनाकर उनकी मदद करने के लिए एक पैर पर खड़ी रहती है। वहीं छोटे किसानों, छोटे एवं मध्यम कारोबारी, महंगी ब्याज दर और वित्तीय संस्थाओं के जुर्माने और शुल्क के कारण आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। बैंकों और सरकारी समितियों द्वारा किसानों और छोटे उद्योगों को जो लोन दिया जा रहा है। उनसे मूल रकम की तुलना में 5 से 6 गुना ज्यादा राशि वसूल की जा रही है। उनके ऊपर ब्याज, ब्याज के ऊपर चक्रवृद्धि ब्याज जुर्माना और अन्य शुल्क लगाकर उनकी संपत्तियों को नीलाम किया जा रहा है। वहीं बड़े-बड़े कारपेट जगत के लोगों को बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थाओं द्वारा जो ऋण दिया जाता है। उनसे मूल का 25 फीसदी भी वसूल नहीं हो पा रहा है। उनके लिए सरकार बड़े-बड़े पैकेज लाकर लाखों करोड़ रुपए का कर्ज माफ कर रही है। इसको लेकर अब यह कहा जाने लगा है। कि संविधान में समानता का अधिकार होने के बाद, जिस तरह से सरकार अमीरों और गरीबों के लिए अलग-अलग कानून बनाकर भेदभाव कर रही हैं। न्यायपालिका भी आंख बंद करके नागरिकों के मौलिक अधिकारों और संवैधानिक अधिकारों का हनन होते हुए देख रही है। न्यायपालिका की चुप्पी सभी को हैरान कर रही है। यदि इसी तरीके का एकाधिकार कुछ उद्योगपतियों का बना रहा। तो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आने वाला समय बड़ा कष्टकारी साबित होगा। वहीं भारत में कानून व्यवस्था की स्थिति भी बद से बदहाल होगी। बेरोजगारी आज की तारीख में बहुत बड़ी समस्या है। सरकार ने इस समस्या पर आंख मूंद रखी हैं। महंगाई और बेरोजगारी जल्द ही भारत में कोई बड़ा धमाका कर सकती है। 1975 जैसा छात्र आंदोलन उप्र के प्रयागराज से शुरू हो चुका है। सरकार के लिये भविष्य में लोकतंत्र और कानून व्यवस्था की स्थिति सबसे चुनौती पूर्ण होगी। हैं। ईएमएस / 12 नवम्बर 24