महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव का प्रचार चरम पर है। पिछले 10 वर्षों में पहली बार विपक्ष और मतदाता अब मुखर होकर सामने आ रहा है। भारतीय जनता पार्टी द्वारा विपक्ष के ऊपर जो आरोप लगाती हैं। विपक्ष अब उसका न केवल जवाब देना, सीख गया है। बरन भाजपा और केंद्र सरकार के ऊपर दमदारी के साथ आरोप लगाना भी सीख गया है।पिछले 10 वर्षों में इंडिया गठबंधन के राजनीतिक दलों और विपक्ष ने भाजपा की हर रणनीति को समझ लिया है। जिस तरह से भाजपा चुनाव के दौरान जो घोषणा करती है। वह चुनाव के बाद जुमले बनकर रह जाते हैं। पिछले 10 साल के वादों को लेकर अब विपक्षी दलों ने भाजपा नेताओं के ऊपर हमला करना सीख लिया है। हाल ही में महाराष्ट्र के चुनाव में बंटेंगे तो कटेंगे, जैसे नारों पर भाजपा के ही सहयोगी दलों ने आपत्ति जताते हुए खुलकर विरोध जताया है। असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्वा शर्मा झारखंड में जाकर जिस तरह से बंगाली घुसपेठियों को लेकर झारखंड सरकार को घेरने की कोशिश की। उसका जवाब भी उन्हें बड़े तगड़े तरीके से मिला है। झारखंड मुक्ति मोर्चा और इंडिया गठबंधन ने हेमंत विश्वा शर्मा और भाजपा को यह कहकर घेर लिया है। झारखंड की कोई भी सीमा बांग्लादेश से नहीं लगती है। बांग्लादेश के घुसपेठिये यदि झारखंड में आ रहे हैं, तो यह केंद्र सरकार की नाकामी है। केंद्र सरकार अपनी नाकामी का ठीक कर झारखंड सरकार पर कैसे फोड़ सकती है जो आरोप भाजपा नेताओं द्वारा विपक्ष के ऊपर लगाए जाते हैं। विपक्ष अब उसका जवाब देने और भाजपा को घेरने का कोई मौका नहीं चूक रहा है। जिसके कारण भारतीय जनता पार्टी को अब चुनाव के दौरान जवाब देना मुश्किल हो रहा है। महाराष्ट्र में धार्मिक धुर्वीकरण का कोई भी प्रयास सफल होता हुआ नहीं दिख रहा है। उल्टे एनडीए गठबंधन के सहयोगी अजीत पवार और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे दोनों ने विरोध जताया है। भाजपा के बाहरी नेता महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार कर रहे हैं। सार्वजनिक रूप से यह कहा गया, कि इस तरह के बिगड़े बोल महाराष्ट्र के चुनाव में उल्टा असर दिखाएंगे। भाजपा नेताओं के बयान से अजीत पवार और एकनाथ शिंदे ने अपने आप को दूर कर लिया है। इसी तरह से झारखंड में भी बांग्लादेशी घुसपैठिए के नाम पर जो धार्मिक ध्रुवीकरण का वातावरण बनाया जा रहा था। उससे भी आम जनता प्रभावित होती हुई नजर नहीं आ रही है। पिछले 10 वर्षों से भाजपा ने चुनाव लड़ने का ट्रेंड बदल दिया है। वह मतदाताओं की जरूरतों, महंगाई, बेरोजगारी जैसे विषयों को छोड़कर अब केवल धार्मिक ध्रुवीकरण की बात करते हैं। विकास की कोई बात नहीं करते हैं। भाजपा नेताओं के पास केवल दो मुद्दे चुनाव प्रचार के लिए होते हैं। एक तो हिंदू मुसलमान का धार्मिक ध्रुवीकरण और विपक्षी नेताओं के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर चुनाव को जीतने की कोशिश बीजेपी करती है। पिछले 10 वर्षों से यही सब होते हुए जनता देख रही है। भारतीय जनता पार्टी सही मायने में मतदाताओं को विश्वास नहीं दिला पा रही है। भाजपा जो बोल रही है उसे पूरा किया जाएगा। भारतीय जनता पार्टी को भी पता है, उसे चुनाव किस तरह से जीतना है। इसके लिए वह समय-समय पर चुनाव आयोग, ईड़ी, स्थानीय प्रशासन, पुलिस और न्यायपालिका का उपयोग कर चुनाव जीतने के लिए सुनयोजित प्रयास करती है। जिसका फायदा चुनाव परिणाम में भाजपा के पक्ष में ही निकालकर सामने आता है। हरियाणा विधानसभा का चुनाव जिस तरीके से भारतीय जनता पार्टी ने जीता है। उसके बाद यह आम धारणा बन चली है, परिणाम तो भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में ही आएंगे। जनता और विपक्षी दल खुलकर यह कहने लगे हैं, जिसके कारण चुनाव की विश्वसनीयता घटती चली जा रही है। झारखंड में पहले चरण का मतदान दो दिन बाद होना है। आयकर विभाग की टीम ने जब मतदान होने में इतना कम समय रह गया है। तब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के आसपास के लोगों पर जो चुनाव में काम कर रहे थे। उनके यहां आयकर का छापा डलवा दिया। उन्हें चुनाव मैं काम करने से एक तरह से रोककर चुनाव को प्रभावित किया है। मतदाता अब इन सब बातों को समझने लगा है। इससे भाजपा को फायदा होगा या हेमंत सोरेन के पक्ष में सहानुभूति लहर बनेगी, यह कहना मुश्किल है। चुनाव परिणाम में यह स्पष्ट हो जाएगा चुनाव के दौरान इस तरह से विपक्ष को आतंकित और प्रताड़ित करने से चुनाव परिणाम में क्या असर पड़ा है। बड़े बुजुर्ग यह कहते हैं। जिन कारणों से सफलता मिलती है, वही असफलता के कारण भी होते हैं। धार्मिक ध्रुवीकरण को लेकर पिछले वर्षों में भाजपा को बहुत सफलता मिली है। भाजपा की केंद्र और कई राज्यों में सरकार भी बन गई। सरकार बनने के बाद भारतीय जनता पार्टी आज भी धार्मिक धुव्रीकरण को ही अपनी सफलता का आधार मानती है, तो वह गलती कर रही है। 10 साल के शासन में रहने के बाद अब आम जनता के लिए सरकार ने क्या काम किए हैं। इस आधार पर जनता वोट करेगी। जो वादे मतदाताओं को पहिले प्रभावित कर देते थे। यदि वह वास्तविक स्वरूप में जमीन पर नहीं उतरते हैं। सपने दिखाकर मतदाताओं को ज्यादा समय तक जोड़कर नहीं रखा जा सकता है। बार-बार प्रबंधन से चुनाव भी नहीं जीते जा सकते हैं। भाजपा और विपक्ष को यह समझना होगा। समय तेजी के साथ बदलता है, समय के साथ सब कुछ बदल जाता है। इस बदलाव को यदि समझने में भूल होती है, तो वही असफलता का सबसे बड़ा कारण बनती है। ईएमएस / 09 नवम्बर 24