दीपावली ३१ अक्टूबर २०२४ पर विशेष लेख कम्ब रामायण संभवत आधुनिक भारतीय अहिन्दी भाषाओं में सबसे पहला श्रीरामकथा महाकाव्य है। इस रामायण की रचना ९वीं शती में महर्षि कम्बन ने दक्षिण भारत में प्रमुख रूप से बोली जाने वाली तमिल भाषा में की थी। इसमें श्रीराम का रावण वध कर लंका से अयोध्या लौटने का वर्णन अन्य श्रीरामकथाओं से अलग होने एवं भ्रातृ प्रेम से ओत प्रोत होने से जिज्ञासु सुधीजनों को समर्पित है। तमिल भाषा की कम्ब रामायण के युद्धकाण्ड में लंका से श्रीराम के अयोध्या आगमन का वर्णन बड़े रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। श्रीरामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में अयोध्या आगमन के वर्णन में भिन्नता दिखाई देती है। कहीं-कहीं यह प्रसंग पाठकों के अन्तर्मन को उद्वेलित कर देता है। रावण विजय के बाद भगवान् श्रीराम पुष्पक विमान से वापस आ रहे हैं। विजय के उल्लास से सभी उल्लसित थे। सभी शीघ्रताशीघ्र अयोध्या लौटना चाहते थे। कम्ब रामायण के अनुसार अशोक वाटिका में सीताजी का विशेष ध्यान रखने वाली त्रिजटा को सीताजी आशीर्वाद देती है कि तुम संकट रहित हो। अब तुम लंका में देवी के समान रहो। पुष्पक विमान अंडाकार था और अनेक लोगों के बैठने पर भी खाली रहता था। श्रीराम ने विभीषण को सलाह दी कि तुम लंका पर राज्य करते हुए अपने देशवासियों की प्रशंसा के पात्र बनों। श्रीराम ने सुग्रीव, जाम्बवान्, नील तथा हनुमान् आदि सभी वानर समूहों को अपने अपने स्थान पर जाने को कहा तो वे सभी रोने लगे और दुरूखी हो गए। सुग्रीव आदि वानरों ने कहा कि वे आपका अयोध्या में राज्याभिषेक का उत्सव देखना चाहते हैं। इस उत्सव को देखकर ही हमारी थकान दूर होगी- पार मामदि लयोत्तियि नय्दिनिन् पैम्बान् आर मामुदिक् कोलमुअ् जब्वियु मळ्हुम् शोर्वि लादियाड गाणगुरु मळवैयुन दौडन्र्दु पेर वेयरु ळनर्न रुळळनबु पिणिप्पार् (कम्ब रामायण-तमिळ युद्धकांड उत्तरार्द्ध ४०४५) श्रीराम ने उन सभी को विमान में बैठा लिया। श्रीराम सीताजी सहित पुष्पक विमान में सुशोभित दिखाई दे रहे हैं। सीताजी पूछती हैं कि ये हनुमान् आपको कहाँ मिले। श्रीराम उन्हें कहते हैं कि यहीं किष्किंधा पर। यह सुन कर सीताजी कहती हैं कि विमान में पुरुषों की संख्या अधिक है। जब मैं अयोध्या में पहुँचूँगी तो मेरे स्त्रीत्व की कमी मानी जाएगी। यदि पुष्प गुच्छों से सुसज्जित केश वाली तन्वियाँ साथ रहेगी तो उचित रहेगा। सुग्रीव ने हनुमान्जी से कह कर असीम वानरियों को बुला भेजा। वे सभी स्त्रीत्व के शृंगार में सीताजी के सम्मुख उपस्थित हो गईं और नमस्कार करके उनके चारों ओर खड़ी हो गईं। पुष्पक विमान चलता गया। भरद्वाज आश्रम आया। वहाँ श्रीराम के विमान को आता देख गुरु भरद्वाज उनके स्वागत के लिए अन्य सन्तों के साथ आगे आए। पुष्पक विमान वहाँ रुका। श्रीराम ने भरद्वाज के चरणों में नमस्कार किया। मुनि ने उन्हें उठाया और उनकी जटा की धूल हटाई। विमान स्थित सभी यात्रियों ने गुरु वन्दन किया। गुरुजी उन्हें आश्रम में लाए और प्राचीन स्मृतियों को स्मरण किया। उन्होंने सूचित किया कि भरत फलाहार लेता है और घास की शय्या पर सोता है। भरद्वाज मुनि ने वानर दलों को आशीर्वाद दिया कि उन्हें हमेशा जल, मधु, कन्द, मूल फल मिलते रहे। उन्होंने राम से कहा कि वे यहाँ अपनी सम्पूर्ण सेना के साथ भोजन ग्रहण करें। श्रीराम ने हनुमान् जी को भाई भरत के पास जाने को कहा कि तुम जाकर हमारे आगमन की सूचना दो। भरत के बारे में जानकारी लेकर यहाँ आ जाना। भरत ने जो आग लगाई है उसे बुझा देना क्योंकि मेरे समय पर न पहुँचने पर वह दुरूखी है। श्रीराम ने हनुमान्जी को एक अँगूठी दी कि तुम भरत को यह दे देना। इन्रु नाम्बदि वरदुमुन् मारुदि यीण् डच् चन्रु तीदिन् मैं शप्पियत् तीयवित् तीळयोन् निन्र नीर्मैयु निनैवुनी तेर्नदम्मि नेर्दल् नन्र नाववन् मोदिरङ् गैकाडु नडन्दान् कम्ब रामायण (तमिल) युद्धकाण्ड उत्तरार्द्ध ४०८८ श्रीराम नियत समयावधि में अयोध्या नहीं पहुँचे तो भरतजी ने सोचा किसी निरोधक घटना से ही वे नहीं आए हैं। भरतजी की व्यग्रता बढ़ने लगी। उन्होंने छोटे भाई शत्रुघ्न को बुलाने को कहा। शत्रुघ्न के आने पर उसे कसकर गले लगाया। श्रीराम नहीं आए हैं। इसलिए मैं जलती हुई आग में कूदकर प्राण त्याग दूँगा। तुम राजा बन जाओ। छोटे भाई ने कहा कि क्या मैं निर्लज्ज होकर राजा बनूँगा। माता कौसल्या समाचार सुन कर विलाप करती हुई आईं। अन्य अयोध्यावासी भी वहाँ आए। कौसल्या ने कहा कि ऐसा मत सोचो कि श्रीराम की मृत्यु हो गई। आज नहीं तो कल वह अवश्य आएंगे। भरत अग्नि के निकट पहुँच गए। इतने में भीड़ में हनुमान्जी ने जोर से कहा, आर्य पधार चुके हैं। हनुमान्जी ने दोनों हाथों से आग बुझा दी और बोले कि अभी दिन बीत जाने में चालीस घड़ी बाकी है। सूर्य उदयगिरि पर उदित न हो तब तक मेरी बात पर विश्वास कीजिए। यदि यह समय बीत गया तो आप क्या सारा लोक नष्ट हो जाएगा। भरद्वाज आश्रम के मधुर भोज के कारण श्रीराम को वहाँ रुकना पड़ा। श्रीराम ने आपके लिए यह अभिज्ञान दिया है। अँगूठी को भरतजी ने मुँह पर लगाया। उनका शरीर एकदम फूल गया। भरत आनंदित हो गए। भरत हनुमान्जी से पूछते हैं कि ब्राह्मणवेश धारी आप कौन हैं? हनुमान्जी उन्हें अपना परिचय देते हैं। अपना ब्राह्मण वेष छोड़ कर अपना भव्य रूप धारण कर लेते हैं। सभी उन्हें विस्मय से देखते हैं। भरत उनसे कहते हैं कि आप पर्वताकार रूप बदलकर छोटा रूप धारण कर लीजिए। भाई शत्रुघ्न से कहा कि अयोध्या की सजावट करो और श्रीराम के आगमन की मुनादी पिटवा दो। पुष्पक विमान का आगमन हुआ। सभी अतिहर्ष से मिले और श्रीराम भरत, माताओं, गुरुओं सभी अयोध्यावासियों का मिलन हुआ। श्रीरामचरितमानस में हमें श्रीराम का हनुमानजी को भरत के लिए अँगूठी देने का वर्णन नहीं मिलता है। भरतजी का अग्नि में कूदने जाने का वर्णन भी अन्यत्र नहीं है। पुष्पक विमान में सीताजी अपने स्त्रीत्व के लिए वानरियों को बैठाने को कहती है यह वर्णन भी श्रीरामचरितमानस में नहीं है। अँगूठी के प्रभाव से भरत का दौर्बल्य समाप्त होना भी एक आश्चर्यजनक घटना है। श्रीरामचरितमानस में समस्त माताएँ अयोध्यापुरी के द्वार पर श्रीराम के स्वागत में तत्पर रहती हैं, किन्तु कम्ब रामायण में कौसल्या नन्दीग्राम में भरत के अग्रि प्रवेश का समाचार सुनकर विलाप करते हुए अयोध्यावासियों के साथ आती हैं। सुधीजन को कम्ब रामायण के युद्धकाण्ड का उत्तरार्द्ध एक अलग कथानक के साथ पढ़ने को प्राप्त होता है। ईएमएस/30/10/2024