क्षेत्रीय
30-Oct-2024
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बिलासपुर (ईएमएस)। धोखा देकर अधिक उम्र के पति द्वारा विवाह करने के मामले में हाईकोर्ट ने पत्नी की अपील स्वीकार कर विवाह को भंग कर दिया। पारिवारिक न्यायालय, जांजगीर ने अपीलकर्ता पत्नी की तलाक की अर्जी खारिज कर दी थी । इसे ही हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। जांजगीर निवासी युवती की 5 मई .2011 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह संपन्न हुआ, लेकिन विवाह के तुरंत बाद, पति और उसके परिवार के सदस्यों ने अपीलकर्ता के साथ क्रूरता करना शुरू कर दिया। पति ने विवाह के समय अपनी वास्तविक आयु भी छिपाई थी और झूठा बयान दिया था कि वह एक सरकारी कर्मचारी है,। विवाह के बाद पत्नी अलग रहने लगी। इसके बाद पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत पारिवारिक न्यायालय, जांजगीर-चांपा के समक्ष आवेदन दायर किया और 26.09.2018 के आदेश के अनुसार, पति के पक्ष में निर्णय दिया गया और अपीलकर्ता को उसके साथ रहने का निर्देश दिया गया। अपीलकर्ता द्वारा भी एक याचिका दायर की गई थी, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया था, क्योंकि पारिवारिक न्यायालय में, दोनों के बीच समझौता हो गया था। इसके बाद, अपीलकर्ता पत्नी ने पारिवारिक न्यायालय के समक्ष हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) (बी) के तहत आवेदन दायर किया, जिसे आरोपित निर्णय और डिक्री द्वारा खारिज कर दिया गया, जिसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की गई। जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस संजय जायसवाल की डीबी में हुई सुनवाई में अपीलकर्ताओं के वकील ने कहा कि विवादित निर्णय और डिक्री कानून और तथ्यों दोनों की दृष्टि से त्रुटिपूर्ण है और इसे रद्द किया जाना चाहिए। कोर्ट इस बात पर विचार करने में विफल रहा है कि अपीलकर्ता पत्नी और प्रतिवादी पति अपनी शादी के तुरंत बाद अलग-अलग रह रहे हैं और उनके साथ रहने की कोई संभावना नहीं है। इस कोर्ट ने यह भी नहीं माना कि पति ने शादी के समय अपनी वास्तविक उम्र छिपाई थी और झूठा बयान दिया था कि, वह एक सरकारी कर्मचारी है, इस तरह उसने उसके साथ धोखाधड़ी की। विवाह के समय पति ने अपनी उम्र 28 वर्ष बताया था जबकि उसकी वास्तविक उम्र 40 वर्ष रहा वही पत्नी 18 वर्ष की थी। कोर्ट के आदेश से उद्देश्यों को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता सभी पक्षों को सुनाने के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि, हम इस बात से संतुष्ट हैं कि यह विवाह पूरी तरह से टूट चुका है हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत विवाह का पूरी तरह से टूट जाना तलाक का आधार नहीं है मगर एक ऐसा विवाह जो सभी के लिए ख़त्म हो चुका है न्यायालय के आदेश से उसके उद्देश्यों को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता दोनों पक्षों के बयान के साथ-साथ दस्तावेज़ के अनुसार, वे 2011-12 से अलग-अलग रह रहे हैं, इसे पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता है, जैसा कि के. श्रीनिवास राव (सुप्रा) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना है डीबी ने इसके साथ ही हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) (बी) के तहत पत्नी द्वारा दायर आवेदन को अनुमति देकर 5.मई 2011 को इनके बीच संपन्न विवाह को भंग कर, अपील स्वीकार कर ली। मनोज राज/योगेश विश्वकर्मा 30 अक्टूबर 2024